जीएम फ्री इंडिया गठबंधन का कहना है कि जीएम सरसों को मंजूरी देने में 15 स्तरों पर नियामक खामियां बरती गई है। गठबंधन ने शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में एक रिपोर्ट जारी कर यह दावा किया है। यह रिपोर्ट जीएम-एचटी-सरसों के अनुमोदन से संबंधित मामलों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक महत्वपूर्ण सुनवाई से पहले जारी की गई। गठबंधन ने कहा है कि यह विशेष रिपोर्ट जीएम सरसों पर नहीं बल्कि उस नियामक व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करती है जिसने जीएम सरसों का मूल्यांकन और अनुमोदन किया है।
प्रेस वार्ता में गठबंधन की कविता कुरुगंटी ने कहा कि “जीएम-सरसों के मामले की सुनवाई के दौरान यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से अटॉर्नी जनरल (एजी) 2012 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त “तकनीकी विशेषज्ञ समिति” (टीईसी) की सिफारिशों को ठीक से पेश नहीं कर रहे हैं। इस समिति ने एचटी फसलों पर हमेशा के लिए प्रतिबन्ध लगाने की सिफारिश की थीि। तकनीकी विशेषज्ञ समिति की एचटी फसलों पर प्रतिबंध की सिफारिश वैज्ञानिक प्रमाणों और भारत सरकार सहित विभिन्न हितधारकों के बयानो पर आधारित थी। तकनीकी विशेषज्ञ समिति में भारत सरकार द्वारा नामित विशेषज्ञ भी याचिकाकर्ताओं द्वारा नामित तीन अन्य स्वतंत्र विशेषज्ञों के साथ सर्वसम्मति से एचटी फसलों पर प्रतिबन्ध की मांग कर रहे थे। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित टीईसी की सिफारिश के बाद इस मामले को हमेशा के लिए विराम पर जाना चाहिए था और सरकार को इन खतरनाक फसलों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि हम पूरी निष्ठा से न्यायालय से आदेश पारित करने का आग्रह करते हैं कि वास्तव में एचटी फसलों पर प्रतिबंध लगाया जाए क्योंकि वे कई अनेक खतरों को उत्पन्न करने की क्षमता रखती हैं। इसी तरह हम आग्रह करते हैं कि उन सभी फसलों में ट्रांसजेनिक (जीएमओ) पर प्रतिबंध लगाना जरुरी है जिनके लिए भारत उत्पत्ति और/या विविधता का केंद्र हैं। सरसों एक ऐसी ही फसल है। हालाँकि, हम ए.जी. द्वारा भारत के नियामक व्यवस्था का बचाव करने वाले तर्कों से भी अवगत हैं। इसी पृष्ठभूमि में हम इस रिपोर्ट को सावर्जनिक कर रहे है जो भारत की नियामक व्यवस्था की गंभीर और आपत्तिजनक कमियों को दिखाती है और यह रिपोर्ट यह भी दर्शाती है के किस तरह जीएम सरसों की मूल्यांकन और अनुमोदन प्रक्रिया भारत में नियामक वयवसथाओं के साथ एक गंभीर समझौता की कहानी है।
गठबंधन के सह-संयोजक श्रीधर राधाकृष्णन ने कहा कि हमारी रिपोर्ट गंभीर नियामक उल्लंघनों और कमज़ोरियों के 15 उदाहरण प्रस्तुत करती है। यह दिखाने के लिए कि यूनियन ऑफ इंडिया हमारी नियामक व्यवस्था की मजबूती के बारे में जो दावा कर रहा है वह झूठ का एक पुलंदा है। ये सब उदाहरण यह दिखाने के लिए हैं कि आम नागरिकों और उनके पर्यावरण को आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के जोखिमों से बचाने के लिए नियामक और नियामक व्यवस्था कितनी अविश्वसनीय है। हम दिखाते हैं कि कैसे एक औपचारिक अनुमोदन पत्र जारी किए बिना ही, आईसीएआर एक तीसरे पक्ष के आवेदक की ओर से इस मामले में कूद पड़ता है और यह सुनिश्चित करता है की जीएम-एचटी-सरसों के बीज बड़ी जल्दी बो दिए जाये और यह काम पूरा हो जाए। हम आरटीआई प्रतिक्रियाओं के माध्यम से दिखाते हैं कि जीएम सरसों के मूल्यांकन में किसी भी (स्वतंत्र) स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कभी भाग नहीं लिया। हम दिखाते हैं कि कैसे पर्यावरण सुरक्षा के लिए जीएम सरसों का परीक्षण भारत के नियामक शासन में निर्धारित सीमित दिशानिर्देशों/प्रोटोकॉल का उल्लंघन करता है। इसी तरह खाद्य सुरक्षा के लिए भी ऐसा ही किया गया। हम दिखाते हैं कि कैसे नियामक निकाय द्वारा अध्ययनों की सिफारिश/निर्धारित और अनुमति दी जाती है, लेकिन फिर उसे नहीं किया जाता है, क्योंकि फसल आवेदक ने किसी अवैज्ञानिक आधार पर छूट की मांग की होगी और नियामकों ने इन अनुरोधों पर सहमति व्यक्त कर दी।
गठबंधन के दूसरे सह-संयोजक कपिल शाह ने कहा कि ऐसे भी उदाहरण प्रदर्शित किये गए हैं जो दिखाते हैं कि भारत जैविक विविधता कन्वेंशन के तहत बायोसेफ्टी पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल में की गई प्रतिबद्धताओं पर असंवेदनशील और लापरवाह है। हमारी नियामक व्यवस्था से गंभीर रूप से समझौता किया गया है। हम इस रिपोर्ट को सार्वजनिक कर रहे हैं ताकि नियामक और भारत सरकार दोनों भारत की नियामक व्यवस्था के मजबूत होने जैसे झूठ को न फैला सकें। हम सर्वोच्च न्यायालय से एचटी फसलों पर प्रतिबंध लगाने के लिए आदेश पारित करने का आग्रह करते हैं, जैसा कि उसके अपने स्वतंत्र तकनीकी विशेषज्ञों ने सिफारिश की है।