पिंक बालवार्म बीमारी से बचाव वाली जीएम कॉटन की चार नई इवेंट विकसित, ट्रायल के लिए जीईएसी की मंजूरी का इंतजार

कपास की फसल के लिए घातक हो चुकी पिंक बॉलवार्म बीमारी से निपटने के लिए देश की निजी बीज कंपनियों ने जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) टेक्नोलॉजी का उपयोग कर जीएम कॉटन के चार इवेंट विकसित कर लिये हैं जो पिंक बालवार्म से कपास की फसल को सुरक्षित कर सकते हैं। टेक्नीकल और कंट्रोल्ड ट्रायल की विभिन्न स्टेज पर पहुंच चुकी यह इवेंट तभी नई जीएम कॉटन किस्मों के कमर्शियल उत्पादन की स्टेज में पहुंचेगी जब जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी (जीईएसी) की मंजूरी से इन इवेंट्स के ट्रायल समय से हो सके।

पिछले करीब एक दशक में देश में कपास की फसल को सबसे अधिक नुकसान पिंक बालवार्म (पीबीडब्लू) से हो रहा है और उसके चलते देश में कपास का उत्पादन उसके उच्चतम स्तर 2013-14 के 398 गांठ (170 किलो प्रति गांठ) से करीब एक चौथाई घटकर 2024-25 में 294 लाख गांठ पर आ गया है। कपास की फसल के लिए घातक हो चुकी पिंक बॉलवार्म बीमारी से निपटने के लिए देश की निजी बीज कंपनियों ने जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) टेक्नोलॉजी का उपयोग कर जीएम कॉटन के चार इवेंट विकसित कर लिये हैं जो पिंक बालवार्म से कपास की फसल को सुरक्षित कर सकते हैं।  उद्योग सूत्रों के मुताबिक टेक्नीकल और कंट्रोल्ड ट्रायल की विभिन्न स्टेज पर पहुंच चुकी यह इवेंट तभी नई जीएम कॉटन किस्मों के कमर्शियल उत्पादन की स्टेज में पहुंचेगी जब जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी (जीईएसी) की मंजूरी से इन इवेंट्स के ट्रायल समय से हो सके।

जहां भारत से 2013-14 में कपास का निर्यात 117 लाख गांठ तक पहुंच गया था। वहीं अब पिंक बालवार्म से कपास की फसल को नुकसान के चलते लेकिन अब 30 लाख गांठ आयात और 17 लाख गांठ निर्यात के साथ भारत कपास का शुद्ध आयातक देश बन गया है।

देश के सभी कपास उत्पादक क्षेत्रों तक अपनी जड़ जमा चुकी पिंक बालवार्म (पीबीडब्लू) की बीमारी का हल अब मोनसेंटों द्वारा अमेरिकन बालवार्म के लिए विकसित जीएम किस्मों में अब नहीं है। पिंक बालवार्म का लारवा कपास के पौधे पर लगने वाली बॉल (फल) को नुकसान पहुंचाता और उसी को खाकर जिंदा रहता है। इसी बॉल से कपास तैयार होती है। लेकिन पीबीडब्लू का लारवा पहले ही उसे नुकसान पहुंचा देता है और कपास का उत्पादन घट जाता है। बीटी जीन्स क्राईवनएसी और क्राईटूएबी जीन वाली बीटी कॉटन जीएम किस्मों का पिंक बालवार्म बीमारी रोकने का असर खत्म हो गया है। 2006 के बाद सरकार ने जीएम कॉटन की किसी किस्म को मंजूरी नहीं दी है। जबकि इस बीच पिंक बालवार्म कपास की फसल को नुकसान पहुंचाने वाली सबसे बड़ी बीमारी बन गया है।

हाल ही में साइंटिफिक जर्नल नेचर के अंक के एक लेख (https://www.nature.com/articles/s41598-025-89575-z) में बताया गया है कि किस तरह से पिंक बालवार्म में क्राईवनएसी और क्राईटूएबी टॉक्सिन के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई है। यह स्थिति बीटी कॉटन के लांच होने के 12 साल बाद 2014 में आई। साल 2014 में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात में पिंक बालवार्म में यह प्रतिरोधक क्षमता पैदा हुई। उसके बाद 2017 में तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में यह स्थिति बनी और 2021 में उत्तर भारतीय राज्यों हरियाणा, पंजाब व राजस्थान के कपास उत्पादक क्षेत्रों में पिंक बालवार्म में क्राईवनएसी और क्राईटूएबी टॉक्सिन के लिए प्रतिरोधक क्षमता पैदा हुई।

इस संकट का हल करीब दिख रहा है। देश की निजी बीज कंपनियों ने जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) टेक्नोलॉजी का उपयोग कर चार इवेंट विकसित कर लिये हैं जो पिंक बालवार्म से कपास की फसल को सुरक्षित कर सकती हैं। टेक्नीकल और कंट्रोल्ड ट्रायल की विभिन्न स्टेज पर पहुंच चुकी यह इवेंट तभी नई जीएम कॉटन किस्मों के कमर्शियल उत्पादन की स्टेज में पहुंचेगी जब जेनेटिकली इंजीनियर्स अप्रैजल कमेटी (जीईएसी) की मंजूरी से इन इवेंट्स के ट्रायल समय हो सके।

पिंक बालवार्म बीमारी पर रोक लगाने के लिए कंपनियों ने जीएम कॉटन की नई हाइब्रिड में नये बीटी जीन्स डाले हैं। इन कंपनियों में एक इवेंट डीसीएम श्रीराम समूह की हैदराबाद स्थित डिविजन बॉयोसीड रिसर्च इंडिया ने तैयार किया है। इसमें बीटी के क्राई8ईए1 (‘cry8Ea1’) जीन को लेकर बॉयोकोटएक्स24ए1 (‘BioCotX24A1’ इवेंट को ट्रांसजिनक टेक्नोलॉजी से विकसित किया गया है। पर्यावरण मंत्रालय के तहत आने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी (जीईएसी) ने पिछले साल जुलाई, 2024 में बॉयोसीड को बॉयोसेफ्टी रिसर्च लेवल-1 (बीआरएल-1) के लिए मध्य प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में छह लोकेशन पर ट्रायल की मंजूरी दी थी। इस ट्रायल के लिए फार्म का साइज एक एकड़ तक होता है। इसके तहत फूड, फीड टॉक्सिसिटी और पर्यावरण सुरक्षा का डाटा जेनरेट किया जाता है। बॉयोसीड ने जीईएसी से खरीफ 2025 में बीआरएल-1 के दूसरे साल के ट्रायल करने के लिए अनुमति मांगी है और उसमें दक्षिण, मध्य और उत्तरी जोन को शामिल किया है।

दूसरा इवेंट कोयंबतूर स्थित रासी सीड्स प्राइवेट लिमिटेड का है जिसके बीआरएल-1 के पहले साल के आगामी खरीफ सीजन में ट्रायल के लिए कंपनी ने जीईएसी के पास आवेदन किया है। पीबीडब्लू प्रतिरोधी जीएम कॉटन की इस हाइब्रिड में ट्रांसजनिक इवेंट में बीटी से मिलने वाले क्राई1सी सिंथेटिक जीन का उपयोग किया गया है।

तीसरा इवेंट नागपुर की कंपनी अंकुर सीड्स का है जो पीबीडब्लू प्रतिरोधी हाइब्रिड जीएम कॉटन किस्म विकसित कर रही है। अंकुर सीड ने नेशनल बॉटेनिकल रिसर्स इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई) लखनऊ के साथ टेक्नोलॉजी के लिए समझौता किया है। इसमें बीटी जीन के प्रोटीन का इस्तेमाल किया गया है। अंकुर सीड्स जल्दी ही डिपार्टमेंट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी की जेनेटिक मैनीपुलेशन पर रिव्यू कमेटी के पास एनबीआरआई की इवेंट 519 के बीआरएल-1 ट्रायल की मंजूरी के लिए आवेदन करने जा रही है। इस समिति की सिफारिशों के आधार पर जीईएसी ट्रायल के लिए मंजूरी दे सकती है।

इसके अलावा पिछले साल 29 जुलाई की बैठक में जीईएसी ने महाराष्ट्र की कंपनी अजित सीड्स प्राइवेट लिमिटेड को उसकी पांच जीएम कॉटन लाइंस के शुरुआती इवेंट सलेक्शन ट्रायल को मंजूरी दी थी। पीबीडब्लू के प्रतिरोध के लिए इस कंपनी ने बीटी के क्राई2एए (‘cry2Aa’ ) जीन का उपयोग किया है।

जटिल मंजूरी प्रक्रिया के तहत शुरुआती लैब रिसर्च के बाद बीआरएल-1 ट्रायल दो साल होते हैं और बीआरएल-2 ट्रायल एक साल ढाई एकड़ के प्लाट में होते हैं।

अब सवाल यह उठता है कि मोनसेंटो की जीएम बीटी कॉटन किस्म बॉलगार्ड -2 की 2006 में दी गई मंजूरी के बाद देश में कमर्शियल खेती के लिए किसी भी की जीएम किस्म को मंजूरी नहीं मिली है।  हालांकि बीज उद्योग को उम्मीद है कि जिस तरह से पिंक बालवार्म से देश में कपास के उत्पादन में भारी गिरावट के बाद कपास की फसल पर बड़ा संकट आया है उसके चलते सरकार कपास की नई जीएम किस्मों को मंजूरी दे सकती है क्योंकि यह सरसों और बैंगन की तरह खाद्य फसल नहीं है। देश में कपास के गिरते उत्पादन के चलते ही सरकार ने चालू साल (2025-26) के बजट में कॉटन मिशन शुरू करने की घोषणा की है। लेकिन यह भी सच है कि जीएम फसलों का मामला सुप्रीम कोर्ट में है और पर्यावरणविदों का जीएम फसलों को लेकर जो विरोध है उसके चलते राह बहुत आसान नहीं है। यही नहीं केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी पिछले दिनों सार्वजनिक रूप से जीएम फसलों को लेकर प्रतिकूल टिप्पणी की थी। हालांकि कपास की फसल को लेकर जो प्रतिकूल स्थिति पैदा हो गई है उसे सुधारने का दबाव भी सरकार पर है।