केंद्र सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत केंद्रीय पूल से राज्य सरकारों को चावल और गेहूं की बिक्री बंद करने का फैसला किया है। यह फैसला कर्नाटक सहित कुछ राज्यों को प्रभावित कर सकता है जो गरीबों को मुफ्त अनाज देते हैं। कर्नाटक सरकार ने बिना ई-नीलामी के ओएमएसएस के तहत जुलाई के लिए 3400 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर 13,819 टन चावल मांगा था।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या ने इस फैसले को राजनीति से प्रेरित बताते हुए केंद्र सरकार पर गरीब विरोधी और कन्नड़ विरोधी होने का आरोप लगाया है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि कर्नाटक सरकार की महत्वाकांक्षी अन्न भाग्य योजना को लागू करने से रोकने के लिए केंद्र सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को राज्य को सीधे चावल की बिक्री करने से रोक दिया है। जबकि 11 जून को राज्य सरकार और एफसीआई के बीच 2.28 लाख टन चावल की बिक्री को लेकर समझौता हो गया था। इसके अगले दिन 12 जून को सरकार ने एफसीआई को ओएमएसएस के तहत निजी व्यापारियों को चावल और गेहूं की बिक्री करने और राज्यों को बिक्री बंद करने के लिए कहा।
कर्नाटक की सिद्धारमैय्या सरकार ने 1 जुलाई से अन्न भाग्य योजना शुरू करने की घोषणा कर रखी है। इसके तहत बीपीएल परिवारों और अंतोदय कार्ड धारकों को 10 किलो चावल मुफ्त देने का वादा किया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि वे दोबारा केंद्र से अपील करेंगे लेकिन यह पूरी तरह से साजिश है।
हालांकि, केंद्र के इस फैसले से 12 जून के उस निर्णय पर असर नहीं पड़ेगा जिसके तहत केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में कीमतों को नियंत्रित करने के लिए ओएमएसएस के तहत थोक व्यापारियों, आटा एवं चावल मिलों, गेहूं उत्पाद निर्माताओं को गेहूं और चावल की बिक्री करने का फैसला किया है। ओएमएसएस के तहत ई-नीलामी के जरिये 15 लाख टन गेहूं की बिक्री 28 जून से की जाएगी। जबकि चावल की मात्रा अभी निर्धारित नहीं की गई है। मानसून की धीमी गति और गेहूं एवं चावल की घरेलू कीमतों में वृद्धि को देखते हुए यह फैसला किया गया है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले एक महीने में चावल की कीमतों में 8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। कमजोर मानसून के चलते खरीफ सीजन 2023-24 में धान का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। देश के कुल धान उत्पादन का 80 फीसदी उत्पादन खरीफ सीजन में ही होता है जो पूरी तरह से मानसून की बारिश पर निर्भर है। ऐसे में अगर कमजोर मानसून की वजह से उत्पादन प्रभावित होता है तो इसका सीधा असर चावल की कीमतों में वृद्धि पर पड़ेगा जिससे महंगाई भड़कने की आशंका है। अगर महंगाई फिर से भड़की तो इसका असर इस साल कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है। सरकार नहीं चाहेगी कि चुनावों में महंगाई मुख्य मुद्दा बने। इसे देखते हुए ही कीमतों पर अंकुश लगाने की तमाम कवायद की जा रही है।
एफसीआई ने हाल ही में एक आदेश जारी कर राज्य सरकारों के लिए ओएमएसएस के तहत गेहूं और चावल की बिक्री बंद करने की घोषणा की है। हालांकि, ओएमएसएस के तहत पूर्वोत्तर राज्यों, पहाड़ी राज्यों और कानून व्यवस्था एवं प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति का सामना कर रहे राज्यों के लिए 3400 रुपये प्रति क्विंटल की मौजूदा दर पर चावल की बिक्री जारी रहेगी।