इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी दुनिया में युद्ध हुआ तो कारपोरेट जगत ने उसका फायदा उठाया है। लेकिन रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के चलते पैदा हुई परिस्थितियों में अगर सरकार देश के तिलहन किसानों को बेहतर फसल मूल्य की गारंटी का रोडमैप बनाकर उस पर अमल करे, तो यह न केवल देश को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के करीब ले जा सकता है बल्कि देश के किसानों के लिए सालाना एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की अतिरिक्त आय का जरिया बन सकता है।
चालू साल (2021-22) में भारत का खाद्य तेल आयात 130 लाख टन के आसपास रहने के आसार हैं और ऊंची वैश्विक कीमतों के चलते आयात मूल्य एक लाख 30 हजार करोड़ रुपये को पार कर सकता है। अप्रैल, 2021 से दिसंबर, 2021 के बीच देश में 14.02 अरब डॉलर का खाद्य तेल आयात हो चुका है जबकि पूरे वित्त वर्ष में इसके करीब 18 अरब डॉलर पर पहुंचने का अनुमान है।
खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों के बीच सोमवार को भारत में आरबीडी पॉमोलीन की आयात कीमत (सीआईएफ) 1770 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई। क्रूड पॉम ऑयल (सीपीओ) की कीमत 1810 डॉलर प्रति टन और क्रूड सोयाबीन की कीमत 1777 डॉलर प्रति टन हो गई। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी रहने पर इसमें और इजाफा हो सकता है। इस कीमत में प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, ट्रांसपोर्टेशन और डीलर व रिटेलर का मार्जिन जुड़ने पर इन खाद्य तेलों की कीमत 170 से 175 रुपये प्रति लीटर हो जाती है। जबकि यह सबसे सस्ते खाद्य तेलों में शुमार होते हैं। जनवरी में आरबीडी पॉमोलीन की कीमत 1490 डॉलर प्रति टन, सीपीओ की 1510 डॉलर प्रति टन और क्रूड सोयाबीन तेल की कीमत 1506 डॉलर प्रति टन थी। क्रूड सूरजमुखी तेल की कीमत 1475 डॉलर प्रति टन थी।
भारत की सालाना खाद्य तेल खपत 220 से 230 लाख टन के बीच है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक 2020-21 में देश में खाद्य तेलों की कुल उपलब्धता 93.18 लाख टन और 2019-20 में 85.38 लाख टन रही थी। चालू साल में तिलहन और खासतौर से सरसों का उत्पादन बेहतर होने की संभावना है तो इसमें कुछ और इजाफा हो सकता है। सालाना आयात 130 लाख टन के आसपास रहता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में खाद्य तेल उत्पादन में बढ़ोतरी की कितनी बड़ी संभावना मौजूद है।
युद्ध के इस संकट को सरकार खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में जरूरी फैसले लेकर इसे देश के किसानों के लिए एक मौके के रूप में तब्दील कर सकती है। सरकार को सरसों, सोयाबीन, मूंगफली और सूरजमुखी का उत्पादन करने वाले किसानों के लिए फसल की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की गारंटी की योजना तैयार कर उसे लागू करना चाहिए। इसकी शुरुआत आगामी खरीफ सीजन में मूंगफली और सोयाबीन से की जा सकती है। हालांकि अभी सरसों की नई फसल बाजार में आना शुरू हो गई है और कीमतें 6600 रुपये प्रति क्विंटल तक चल रही हैं, जो चालू सीजन के लिए तय एमएसपी 5050 रुपये प्रति क्विटंल से काफी अधिक है। लेकिन सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि कीमतें एमएसपी से नीचे नहीं आए। चालू रबी सीजन में बेहतर दाम की उम्मीद में किसानों ने बड़े स्तर सरसों के रकबे में बढ़ोतरी की है। लेकिन केवल किसानों की उम्मीद से काम नहीं चलने वाला है। सरकार को ठोस रणनीति बनानी होगी। इसके लिए कम से कम पांच साल तक तिलहन उत्पादन में बढ़ोतरी का लक्ष्य लेकर चलने की जरूरत है। इसलिए सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि आगामी खरीफ सीजन में मूंगफली और सोयाबीन का क्षेत्रफल बढ़ाया जाए और उसके लिए किसानों को स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि उनकी फसल का एमएसपी सुनिश्चित किया जाएगा। इसके साथ ही जरूरत हो तो बोनस देने की योजना पर भी अमल किया जा सकता है। पिछले बरसों में इस तरह की रणनीति का दालों के उत्पादन पर सकारात्मक असर पड़ा है।
बेहतर दाम की उम्मीद में इस साल किसानों ने सरसों का क्षेत्रफल बढ़ाया। पिछले दिनों जब यह लेखक उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनावों की कवरेज के लिए संभल, चंदौसी और तराई के जिलों में गया तो वहां अप्रत्याशित रूप से सरसों के क्षेत्रफल में बढ़ोतरी देखने को मिली। पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहराइच, गोंडा और बस्ती जिले के किसानों ने गन्ने, गेहूं और सरसों के बीच अपने रकबे का बेहतर बंटवारा किया है। किसानों की इस उम्मीद को बढ़ावा दिया जाए तो नतीजे बेहतर हो सकते हैं। अगले साल पंजाब और हरियाणा के लिए क्षेत्रफल का लक्ष्य तय कर वहां उत्पादन बढ़ाने की रणनीति पर काम करना चाहिए।
भारत हर साल औसतन 130 लाख टन खाद्य तेल का आयात करता है। इसमें करीब 70 लाख टन पॉम ऑयल होता है। उसके बाद करीब 35 लाख टन सोयाबीन तेल और 25 लाख टन सूरजमुखी तेल का आयात होता है। इस आयात को कम करने के लिए सरकार को सरसों तेल के मौजूदा उत्पादन 25 लाख टन को बढ़ाकर 50 लाख टन तक ले जाने की रणनीति पर काम करना चाहिए। सरसों का बेहतर एमएसपी और उस पर खरीद की गारंटी इसमें कारगर साबित हो सकती है। सरसों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए नई प्रजातियों की किसानों तक पहुंच बनाना भी जरूरी है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर दीपक पेंटल ने बेहतर उत्पादकता की किस्म विकसित करने का दावा किया है लेकिन उसके लिए मुद्दा जीएम और गैर जीएम का फंसा हुआ है।
सोयाबीन किसानों को प्रोत्साहित कर सोयाबीन तेल उत्पादन को मौजूदा 13 लाख टन से बढ़ाकर 20 लाख टन ले जाया जा सकता है। इसी तरह मूंगफली उत्पादन बढ़ाकर इसके तेल का उत्पादन भी 25 लाख टन बढ़ाया जा सकता है। पॉम ऑयल का घरेलू उत्पादन भी मौजूदा तीन लाख टन से बढ़ाकर 25 लाख टन तक करने की जरूरत है। राइस ब्रान और कॉटनसीड उत्पादन को बढ़ाकर पांच लाख टन किया जाए तो खाद्य तेलों के घरेलू उत्पादन में 80 लाख टन तक की वृद्धि संभव है। मौजूदा 85 से 90 लाख टन के साथ इस संभावित उत्पादन को जोड़ें तो घरेलू उत्पादन से खाद्य तेलों की उपलब्धता 160 लाख टन तक पहुंच सकती है।
अभी सालाना खपत करीब 230 लाख टन है जो पांच साल में 250 लाख टन को पार कर सकती है। ऐसे में अगर सरकार अभी से तिलहन उत्पादन पर फोकस करे तो आयात पर निर्भरता एक तिहाई रह जाएगी। आयात पर निर्भरता पूरी तरह से खत्म करना तो संभव नहीं लगता, लेकिन अगर सरकार बेहतर योजना बनाकर काम करे तो उसका फायदा किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को होगा। इसलिए राज्यवार फसल प्लानिंग और किसानों को एमएसपी की गारंटी का फॉर्मूला काम कर सकता है।