नई दिल्ली, 12 अक्तूबर, 2021
पराली जलाने की चुनौती से निपटने के लिए किसानों के साथ मिलकर काम करने वाले एक सामाजिक उद्यम रूट्स फाउंडेशन ने हरियाणा और पंजाब के किसानों के सेंसिटाइजेशन एंड ट्रेनिंगप्रोग्राम की घोषणा की है । फाउंडेशन 2017 से वजीर एडवायजर्स और एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज के विशेषज्ञों के साथ इस क्षेत्र में दो लाख से अधिक किसानों के साथ काम कर चुका है। इस प्रोग्राम का उद्देश्य विभिन्न बेस्ट एग्रीकल्चर प्रैक्टिसेस को बढ़ावा देने के साथ-साथ किसानों को पराली न जलाने के लिए प्रोत्साहित करना भी है ।
रूट्स फाउंडेशन के अनुसार पराली जलाने की चुनौती से निपटने के लिए अगले तीन महीनों में इन दोनों राज्यों सेलगभग 50,000 किसानों को संवेदनशील बनाने, शिक्षित करने, प्रशिक्षित करने और समर्थन देने के उद्देश्य से सामाजिक उद्यम द्वारा तीन महीने का एक व्यापक कार्यक्रम शुरू किया गया है। यह कार्यक्रम आने वाले वर्षों में अपनी पहुंच बढ़ाएगा और इसका उद्देश्य किसानों को संवेदनशील बनाने से जिससे आगे जाकर विकल्प के तौर पर प्रशिक्षण देना है।
एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रूट्स फाउंडेशन की संस्थापक ऋत्विक बहुगुणा और पार्टनर वजीर एडवायजर्स, ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के रिस्पॉन्सिबल कंजम्प्शन एंड प्रोडक्शन के सतत विकास लक्ष्य की तर्ज पर कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को पराली जलाने के खिलाफ शिक्षित कर और उसके लिए पराली की खरीद-बिक्री का अवसर उपलब्ध करना है। हमारा लक्ष्य पराली जलाने की समस्या को दूर करने के लिएविभिन्न टेक्नोलॉजीकल हस्तक्षेपों, सरकारी योजनाओं और सब्सिडी के बारे में जागरूकता पैदा करना और किसानों को कचरे को नष्ट करने के वैकल्पिक तरीकों से प्रशिक्षित करने की दिशा एक कदम आगे बढ़ना है। ऋत्विक बहुगुणा ने कहा कि हम विभिन्न हितधारकों से निवेश आकर्षित करने के लिए संभावित कमर्शियल यूज के लिए वैकल्पिक तरीकों की मांग पैदा करने के प्रयास कर रहे हैं उन्होंने यह भी कहा कि बिजली और पैकेजिंग जैसे स्टबल के वैकल्पिक बाजार विकसित करने के लिए विभिन्न हितधारकों को व्यवस्थित योजना बनाने की आवश्यकता है।
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना में कृषि विज्ञान विभाग के प्रमुख और प्रमुख कृषि विज्ञानी डॉ. माखन सिंह भुल्लर ने कहा, “पराली जलाने की समस्या के लिए सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी कीआवश्यकता है। हम एक आधार के रूप में, किसानों को ज्ञान का बिना किसी बाधा के हस्तांतरण सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। फाउंडेशन वैकल्पिक प्रथाओं पर ज्ञान का प्रसार करने के लिएविश्वविद्यालयों के मैसेंजर के रूप में कार्य करेगा और विश्वविद्यालय इस प्रयास में तकनीकी भागीदार के रूप में कार्य करेंगे।
पराली जलाने के मामले में पंजाब और हरियाणा उत्तर भारत के दो प्रमुख राज्य हैं, और किसानों के पास व्यवहारिक एंड-यूज और खेतों के कचरे के प्रबंधन के साधनों की कमी के कारण पराली जलाना प्रदूषण फैलाने वाली मुख्य गतिविधि के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक चिंता का विषय भी बन चुका है।
हर साल सर्दियों में मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में तीन करोड़ टन से अधिक के फसल के कचरे को जलाने से प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ता है। पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 2.5 और 10 का स्तर गंभीर श्रेणी में पहुंच जाता है। अकेले पंजाब में हर साल दो करोड़ टन धान की पराली में से 80 फीसदी को खेत पर ही जलाया जाता है। हरियाणा और पंजाब के साथ-साथ दिल्ली-एनसीआर में भी पराली जलाने की समस्या है। दिल्लीमें सर्दियों में पीएम 2.5 का स्तर बार-बार लगभग 1000 तक बढ़ जाता है। यह आंकड़ा इतना अधिक हैकि यह कई प्रदूषण निगरानी उपकरणों की तुलना में चार्ट से दूर है। दिल्ली का पीएम 2.5 स्तर डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों से 15 गुना अधिक है।