ऐसे में जब सरकार कोविड-19 के असर से अर्थव्यवस्था के निकलने का दावा कर रही है, रिजर्व बैंक ने कहा है कि महामारी के असर को पूरी तरह पीछे छोड़ने में एक दशक से भी अधिक समय लगेगा। करेंसी और फाइनेंस पर अपनी एक रिपोर्ट में केंद्रीय बैंक ने कहा है कि कोविड-19 की वजह से जो नुकसान हुआ है उससे पूरी तरह उबरने में 2034-35 तक का वक्त लगेगा। आरबीआई ने 2020-21 में 6.6 फ़ीसदी की नेगेटिव ग्रोथ, 2021-22 में 8.9 फीसदी और 2022-23 में 7.2 फीसदी ग्रोथ तथा उसके बाद 7.5 फ़ीसदी ग्रोथ के अनुमान के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है।
आरबीआई का कहना है कि महामारी के कारण 2020-21 में उत्पादन में 19.1 लाख करोड़, 2021-22 में 17.1 लाख करोड़ और 2022-23 में 16.4 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इसने कहा है कि महामारी अभी खत्म नहीं हुई है। चीन, दक्षिण कोरिया और यूरोप के कई हिस्से में इसकी नई लहर दिख रही है। हालांकि सभी देशों ने इस पर अलग-अलग प्रतिक्रिया दिखाई है। भारत में प्रतिबंध का असर सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही है।
इसने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण घरेलू और वैश्विक विकास दर घटने का जोखिम बढ़ गया है क्योंकि युद्ध के कारण कमोडिटी के दाम बढ़े हैं और सप्लाई चेन बाधित हुई है। सप्लाई की दिक्कतों और डिलीवरी में ज्यादा वक्त लगने के कारण शिपिंग का खर्च और कमोडिटी के दाम दोनों में इजाफा हुआ है। इससे महंगाई पर प्रभाव हुआ है और भारत समेत पूरी दुनिया में आर्थिक रिकवरी, जो अभी शुरुआती चरण में है, वह खतरे में पड़ गई है।
रिपोर्ट में इसने आर्थिक सुधारों का एक ब्लूप्रिंट भी दिया है। इसने कहा है कि मध्यम अवधि में जीडीपी ग्रोथ 6.5 से 8.5 फ़ीसदी रहने की उम्मीद ज्यादा है। मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों में समय पर रिबैलेंसिंग करना इस दिशा में पहला कदम होगा। मजबूत और टिकाऊ ग्रोथ के लिए कीमतों में स्थिरता पहली आवश्यकता है। मध्यम अवधि में विकास की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए यह जरूरी है कि सरकार का कर्ज अगले 5 वर्षों में जीडीपी के 66 फ़ीसदी से नीचे लाया जाए।