भ्रामक विज्ञापन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने योग गुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक बालकृष्ण की माफी को अस्वीकार कर दिया है। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि माफीनामा केवल "कागज पर" है और कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार रहें।
सुनवाई के दौरान रामदेव और बालकृष्ण के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि रामदेव और बालकृष्ण सार्वजनिक माफी मांगने के लिए तैयार हैं। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। अदालत ने मामले की दोबारा सुनवाई 16 अप्रैल को तय की। अदालत ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि जब पतंजलि कंपनी पूरे जोर-शोर से यह कह रही थी कि एलोपैथी में कोविड का कोई इलाज नहीं है, तब केंद्र ने अपनी आंखें बंद क्यों रखीं।
रामदेव और बालकृष्ण ने अदालत की रोक के बावजूद पतंजलि की दवाओं के बारे में प्रकाशित विज्ञापनों को लेकर अदालत के समक्ष "बिना शर्त माफी" मांगी है। पीठ ने रामदेव और बालकृष्ण की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा, "हम इसे स्वीकार करने या माफ करने से इनकार करते हैं। हम इसे आदेश का जानबूझकर किया गया उल्लंघन मानते हैं।"
रामदेव और बालकृष्ण ने विदेश यात्रा के झूठे दावे कर कोर्ट के समक्ष व्यक्तिगत हाजरी से बचने की कोशिश की। लेकिन उनका यह झूठ भी कोर्ट में पकड़ा गया। कारण बताओ नोटिस जारी होने के बाद, उन्होंने इस आधार पर "व्यक्तिगत उपस्थिति से बचने" का प्रयास किया कि वे विदेश यात्रा कर रहे थे। कोर्ट ने पाया कि यद्यपि आवेदन 30 मार्च को दायर किए गए थे, लेकिन हवाई यात्रा के टिकटों पर 31 मार्च की तारीख थी।
सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि और दिव्य फार्मेसी के भ्रामक विज्ञापनों पर एक्शन ना लेने के लिए उत्तराखंड सरकार की लाइसेंस अथॉरिटी को भी फटकार लगाई। अदालत ने कहा, "हम यह जानकर चकित हैं कि फाइलों को आगे बढ़ाने के अलावा, राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने कुछ नहीं किया और चार-पांच साल से इस मुद्दे पर "गहरी नींद" में था। पीठ ने पूछा कि उसे यह क्यों नहीं सोचना चाहिए कि अधिकारी पतंजलि/दिव्य फार्मेसी के साथ ''मिले हुए'' थे। अदालत ने निर्देश दिया कि 2018 से आज तक राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण, हरिद्वार के संयुक्त निदेशक का पद संभालने वाले सभी अधिकारी निष्क्रियता को लेकर हलफनामा दाखिल करें।