मानसून अब आधा बीत चुका है, लेकिन देश के कई हिस्सों में अभी भी कम बारिश हुई है। जिससे सूखे जैसे हालात बने हुए हैं और खेती-किसानी पर प्रतिकूल असर पड़ा है। कम बारिश के कारण खरीफ फसलों की बुवाई में देरी हुई है और सिंचाई भी समय पर नहीं हो पाई। उत्तर पश्चिम भारत और उत्तर पूर्व भारत के किसान कम बारिश होने से खासे परेशान हैं। देश में 1 जून से 8 अगस्त तक भले ही सामान्य से 7 फीसदी अधिक बारिश हो चुकी हो, लेकिन उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में मानसून की बारिश अभी भी सामान्य से कम है। पूर्व और उत्तर पूर्व भारत में 8 अगस्त तक 11 फीसदी कम बारिश हुई है। जबकि उत्तर पश्चिम भारत में मानसून के बादल 5 फीसदी कम बरसे हैं।
पंजाब-हरियाणा में सबसे कम बारिश
उत्तर पश्चिम भारत की बात करें तो यहां पंजाब-हरियाणा और हिमाचल में सबसे कम बारिश हुई है। आईएमडी के आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में 42, हरियाणा-चंडीगढ़ और दिल्ली में 27, हिमाचल प्रदेश में 28 फीसदी, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में 33 फीसदी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 4 फीसदी, पूर्वी उत्तर प्रदेश में 14 और उत्तराखंड में 1 फीसदी कम बारिश हुई है।
कुछ ऐसा ही हाल पूर्व और उत्तर पूर्व भारत का भी है। यहां, अरुणाचल प्रदेश में 17 फीसदी, मणिपुर-नागालैंड-त्रिपुरा में 24 फीसदी, पश्चिम बंगाल में 21 फीसदी, झारखंड में 13 फीसदी, बिहार में 25 फीसदी और असम में 2 फीसदीकम बारिश हुई है। मध्य और दक्षिण भारत की बात करें तो इन क्षेत्रों में इस वर्ष मानसून काफी अच्छा रहा है। मध्य भारत में 8 अगस्त तक सामान्य से 19 फीसदी और दक्षिण भारत में सामान्य से 25 फीसदी अधिक बारिश हो चुकी है।
देश के कई क्षेत्रों में आज भी किसान खेती-बाढ़ी के लिए बारिश के पानी पर निर्भर हैं। लेकिन, बारिश नहीं होने से उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। देश में इस साल मानसून की शुरुआत अच्छी रही थी, खासकर मध्य और दक्षिण भारत में भारी बारिश हुई थी। लेकिन उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में मानसून की रफ्तार धीमी पड़ गई, जिसका असर अब स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है।
अगस्त-सितंबर में अधिक बारिश का अनुमान
आईएमडी ने अगस्त और सितंबर के महीनों में सामान्य से अधिक बारिश का अनुमान जताया है। अगस्त के अंत तक अनुकूल ला नीना स्थितियों के विकसित होने की संभावना है, जिससे मानसूनी बारिश बढ़ सकती है। हालांकि, मानसून के दूसरे हिस्से में कुछ क्षेत्रों में सामान्य से कम बारिश की संभावना बनी हुई है, विशेषकर पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में।