वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा मंगलवार को संसद में पेश चालू वित्त वर्ष (2022-23) के आर्थिक सर्वे के मुताबिक कृषि क्षेत्र ने पिछले छह साल में 4.6 फीसदी की वृद्धि दर हासिल तो की है लेकिन कृषि में सार्वजनिक निवेश दशक के निचले स्तर पर है। सर्वे के मुताबिक साल 2020-21 में 4.3 फीसदी फीसदी था। इसके पहले साल भी यह इसी स्तर पर रहा। इन दोनों साल सार्वजनिक निवेश का स्तर 2011-12 से अभी तक की अवधि में सबसे कम रहा है। वहीं 2020-21 में निजी निवेश 9.3 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया जो 2011-12 का स्तर है। हालांकि इसके बाद 2013-14 में कृषि निवेश का स्तर 9.6 फीसदी तक पहुंचा था। सर्वे में भारतीय अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की जो सबसे अहम वजह बताई गई हैं इनमें सार्वजनिक निवेश और घरेलू मांग को प्रमुख कारक माना गया है। लेकिन कृषि के मामले में सार्वजनिक निवेश का नहीं बढ़ना यह साबित करता है कि सरकार इसको लेकर गंभीर नहीं दिखती है। हालांकि यह आंकड़े 2020-21 तक के हैं और चालू वित्त वर्ष और 2021-22 के निवेश के आंकड़े आर्थिक सर्वे में नहीं है।
पिछले कई वर्षों से देश की कृषि वृद्धि दर को 5 से 6 फीसदी के स्तर पर लाने की कोशिश हो रही है। मगर तमाम प्रयासों के बावजूद अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा मंगलवार को संसद में पेश 2022-23 के आर्थिक सर्वे भी इसी बात की गवाही देते हैं। आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि कृषि क्षेत्र की औसत सालाना वृद्धि दर छह वर्षों में 4.6 फीसदी रही है। कृषि और संबद्ध गतिविधियों के क्षेत्र ने देश को समग्र विकास व खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम बनाया है। इसके अलावा हाल के वर्षों में देश कृषि उत्पादों के निर्यातक के रूप में उभरा है। सर्वे के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 में कृषि उत्पादों का निर्यात 50.2 अरब अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड को छू गया था। हालांकि चालू वित्त वर्ष में यह सफलता दोहराई जाएगी इसकी गुंजाइश काफी कम दिखती है।
सर्वे में कृषि क्षेत्र की वृद्धि का श्रेय फसल और पशुधन उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों को दिया गया है। इसमें कहा गया है कि फसलों के मूल्य समर्थन (न्यूनतम समर्थन मूल्य), फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने, कर्ज की उपलब्धता, मशीनीकरण की सुविधा और बागवानी व जैविक खेती जैविक खेती को प्रोत्साहित करने से किसानों की आमदनी की गारंटी सुनिश्चित हुई है और कृषि क्षेत्र में उछाल आया है। सर्वे में कहा गया है कि सरकार द्वारा किए गए ये हस्तक्षेप किसानों की आय दोगुनी करने संबंधी समिति की सिफारिशों के मुताबिक हैं। कृषि वर्ष 2018-19 के बाद से खरीफ, रबी और अन्य वाणिज्यिक फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत से कम से कम 50 फीसदी के मार्जिन के साथ बढ़ाया जा रहा है। दलहन और तिलहन को अपेक्षाकृत अधिक एमएसपी दिया गया है ताकि बदलते आहार पैटर्न के साथ तालमेल बिठाया जा सके और आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल किया जा सके।
रिकॉर्ड अनाज उत्पादन
आर्थिक समीक्षा 2022-23 में बताया गया है कि कि जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों के बावजूद 2021-22 में देश में कुल अनाज उत्पादन रिकॉर्ड 31.57 करोड़ टन तक पहुंच गया है। 2022-23 में पहले अग्रिम अनुमान (केवल खरीद) के मुताबकि कुल अनाज उत्पादन 14.99 करोड़ टन होने का अनुमान है। यह पिछले पांच वर्षों (2016-17 से 2020-21) के औसत खरीद अनाज उत्पादन से बहुत अधिक है। दालों का उत्पादन भी पिछले पांच वर्षों के औसत 2.38 करोड़ टन से अधिक रहा है। जहां तक बागवानी क्षेत्र की बात है तो तीसरे अगिम अनुमान (2021-22) के अनुसार, 34.23 करोड़ टन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ।
पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन
सर्वे के मुताबिक, कृषि से सबंद्ध क्षेत्र पशुधन, वानिकी, मछली पकड़ने और जलीय कृषि धीरे-धीरे तेजी से विकास के क्षेत्र बन रहे हैं। ये बेहतर कृषि आय के संभावित स्रोत हैं। पशुधन क्षेत्र 2014-15 से 2020-21 (स्थिर कीमतों पर) के दौरान 7.9 प्रतिशत की सीएजीआर से बढ़ा है। 2014-15 के कुल कृषि जीवीए (स्थिर कीमतों पर) में इसका योगदान 24.3 फीसदी रहा है जो 2020-21 में बढ़कर 30.1 प्रतिशत हो गया है। इसी तरह 2016-17 से मत्स्य पालन क्षेत्र की वार्षिक औसत वृद्धि दर लगभग 7 फीसदी रही है। कुल कृषि जीवीए में इसकी हिस्सेदारी लगभग 6.7 फीसदी है। डेयरी क्षेत्र पशुधन क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण घटक है जो आठ करोड़ से अधिक किसानों को सीधे रोजगार देता है। दूध उत्पादन में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है, जबकि अंडा उत्पादन में तीसरे और मांस उत्पादन में आठवें स्थान पर है। आत्मनिर्भर भारत (एएनबी) प्रोत्साहन पैकेज के एक भाग के रूप में वर्ष 2020 में 15,000 करोड़ रुपये का पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (एएचआईडीएफ) प्रारंभ किया गया था। इसके तहत कुल 3,731.4 करोड़ की लागत वाली 116 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इसी तरह 20,050 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय वाली प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना की शुरूआत की गई है। इसे वित्त वर्ष 2021 से वित्त वर्ष 2025 तक पांच वर्षों के लिए लागू किया गया है ताकि मछुवारों, मत्स्य किसानों और मत्स्य श्रमिकों के सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करते हुए मत्स्य पालन क्षेत्र का सतत और उत्तरदायी विकास किया जा सके। मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष के तहत 17 अक्टूबर, 2022 तक 4,923.9 करोड़ रुपये के प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है। मछली पकड़ने और संबद्ध गतिविधियों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के माध्यम से 9.4 लाख से अधिक लोगों को लाभान्वित किया गया है।
18.5 लाख करोड़ का कृषि कर्ज
आर्थिक सर्वे के मुताबिक, सरकार ने 2022-23 में कृषि कर्ज प्रवाह को 18.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हर साल लगातार बढ़ाया गया है। पिछले कई सालों से हर साल तय किए गए लक्ष्य को पाने में सरकार लगातार सफल रही है। 2021-22 में यह लक्ष्य 16.5 लाख करोड़ रुपये था। उसके मुकाबले 2022-23 का लक्ष्य करीब 13 फीसदी ज्यादा है। सर्वे कहता है कि यह उपलब्धि इसलिए संभव हुई है क्योंकि सरकार ने प्रतिस्पर्धी ब्याज दरों पर किसानों को कर्ज उपलब्धता सुनिश्चित करने के कई पहल किए हैं। किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना जिसके जरिये किसान किसी भी समय कर्ज ले सकते हैं और संशोधित ब्याज अनुदान योजना जिसमें रियायती ब्याज दर पर 3 लाख रुपये तक का कम समय का कृषि कर्ज मिलता है। सर्वे में बताया गया है कि दिसंबर 2022 तक 3.89 करोड़ पात्र किसानों को केसीसी जारी किए गए हैं। इसके तहत 4,51,672 करोड़ रुपये के कर्ज दिए गए हैं। 2018-19 में मत्स्य पालन और पशुपालन के लिए केसीसी सुविधा का विस्तार करने के साथ अब मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए एक लाख से अधिक केसीसी (17 अक्टूबर, 2022 तक) और पशुपालन क्षेत्र के लिए 9.5 लाख केसीसी (4 नवंबर, 2022 तक) स्वीकृत किए गए हैं।
पीएम किसान सम्मान योजना
पात्र किसानों को नगदी उपलब्ध कराने वाली योजना पीएम किसान सम्मान योजना के बारे में सर्वे में कहा गया है कि पिछले तीन वर्षों में जरूरतमंद 11.3 करोड़ किसानों को 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक की सहायता दी गई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) के अध्ययन में पाया गया है कि इस योजना ने कृषि कार्यों के लिए किसानों की तरलता की कमी को दूर करने में मदद की है, खासकर छोटे और सीमांत किसानों की जरूरतों को पूरा करने में इससे मदद मिली है।
कृषि मशीनीकरण से बढ़ेगी उत्पादकता
2022-23 के आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि कृषि जोत के औसत आकार में लगातार गिरावट देखी जा रही है। छोटी जोत वाले किसानों के लिए मशीनें व्यावहारिक, सक्षम और उत्पादकता बढ़ाने की कुंजी है। कृषि मशीनीकरण (एसएमएएम) के उपमिशन के तहत दिसंबर 2022 तक 21,628 कस्टम हायरिंग केंद्र, 467 हाईटेक केंद्र और 18,306 फार्म मशीनरी बैंक स्थापित किए गए हैं जो कृषि मशीनरी उपयोग के प्रशिक्षण और प्रदर्शन के साथ राज्य सरकारों की मदद कर रहे हैं। जैविक खेती के बारे में सर्वे कहता है कि भारत विश्व में जैविक खेती में सबसे आगे है। 2021-22 तक जैविक खेती के तहत 59.1 लाख हेक्टेयर रकबा लाया गया है। परम्परागत कृषि विकास योजना और मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह योजना कलस्टर और किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र में लागू की गई है। पीकेवीवाई के तहत नवंबर 2022 तक कुल 6.4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के 32,384 कलस्टरों और 16.1 लाख किसानों को शामिल किया गया है। जबकि एमओवीसीडीएनईआर के तहत 177 एफपीओ/एफपीसी बनाए गए हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र में फसलों की जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए डेढ़ लाख किसानों और 1.7 लाख हेक्टेयर भूमि को इस योजना में शामिल किया गया है।