प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने सरकार को मनरेगा की तर्ज पर शहरों के लिए भी रोजगार गारंटी योजना शुरू करने का सुझाव दिया है। समिति ने स्टेट ऑफ इनइक्वलिटी इन इंडिया (भारत में असमानता की स्थिति) नाम से एक रिपोर्ट बुधवार को जारी की, जिसमें यह बात कही गई है। इसमें सबके लिए न्यूनतम आय (यूनिवर्सल बेसिक इनकम) शुरू करने तथा सामाजिक क्षेत्र के लिए ज्यादा फंड आवंटित करने जैसे सुझाव भी दिए गए हैं ताकि असमानता को कम किया जा सके। गौरतलब है कि 2 साल पहले जब कोरोना लॉकडाउन लगा था उसके बाद से अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए अनेक स्वतंत्र अर्थशास्त्री शहरी रोजगार गारंटी योजना लागू करने का सुझाव दे रहे हैं। पहली बार सरकार की किसी एजेंसी ने ऐसा सुझाव दिया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी और ग्रामीण इलाकों में श्रमिकों की भागीदारी दर (लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट) को देखते हुए हमारा मानना है कि शहरों में मनरेगा जैसी स्कीम, जो मांग आधारित है और रोजगार की गारंटी देती है, लागू की जानी चाहिए। इससे शहरों में जो अतिरिक्त श्रमिक हैं उन्हें काम मिल सकेगा। यह रिपोर्ट आर्थिक सलाहकार परिषद के लिए गुड़गांव की संस्था इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटेटिवनेस ने तैयार की है। रिपोर्ट प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन बिबेक देबराय ने जारी की।
इसमें कहा गया है कि न्यूनतम आमदनी बढ़ाने और यूनिवर्सल बेसिक इनकम लागू करने से विभिन्न वर्गों में आमदनी के अंतर को कम किया जा सकता है। श्रम बाजार में कमाई का समान वितरण भी हो सकेगा। इसने आमदनी के स्लैब को बेहतर ढंग से स्थापित करने का सुझाव दिया है। इससे विभिन्न वर्गों को पहचानना आसान होगा। इसका फायदा यह है कि सामाजिक सुरक्षा स्कीमों को सही तरीके से उचित लाभार्थियों तक पहुंचाया जा सकेगा। जैसे निम्न मध्य आय वर्ग, निम्न वर्ग, गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए अनेक योजनाएं हैं जबकि उसका फायदा अन्य वर्ग के लोग भी उठाते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ एक फ़ीसदी लोग कुल आय में 6 से 7 फ़ीसदी हिस्सेदारी रखते हैं। सिर्फ 10 फ़ीसदी लोगों की आमदनी कुल आमदनी की एक तिहाई है। इसमें कहा गया है कि गरीबों को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा तक पहुंच के समान अवसर और रोजगार के अधिक मौके सृजित करना जरूरी है। इसलिए सरकार को सामाजिक क्षेत्रों में खर्च के लिए अधिक फंड मुहैया कराना चाहिए।