आगामी खरीफ मार्केटिंग सीजन की शुरुआत से पहले ही बासमती धान की कीमतों में आई गिरावट से किसानों की चिंताएं बढ़ गई हैं। किसानों ने केंद्र सरकार से बासमती धान के लिए अलग से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित करने और निर्यात के लिए तय 950 डॉलर प्रति टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को कम करने की मांग की है। इस संदर्भ में पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री प्रल्हाद जोशी को पत्र लिखा है।
एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक बालियान द्वारा केंद्रीय खाद्य मंत्री को लिखे पत्र में कहा गया है कि बासमती धान की कीमतों में 27-28 फीसदी तक की गिरावट आई है और यह 2500 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गई हैं। पिछले साल इसी समय बासमती की कीमतें 3200-3500 रुपये प्रति क्विंटल के बीच थीं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने सामान्य धान के लिए 2300 रुपये और ग्रेड-ए धान के लिए 2320 रुपये प्रति क्विंटल का एमएसपी निर्धारित किया है, जबकि बासमती के लिए कोई एमएसपी नहीं है, जिससे किसान बाजार की गिरती कीमतों के सामने मजबूर हो जाते हैं।
बालियान ने कहा कि भारत सरकार ने बासमती के निर्यात पर 950 डॉलर प्रति टन का एमईपी लागू किया हुआ है, जिससे निर्यात प्रभावित हो रहा है। दूसरी ओर, पाकिस्तान में बासमती निर्यात के लिए एमईपी केवल 700 डॉलर प्रति टन है, जिससे उनके बासमती की अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक मांग है। उन्होंने कहा कि प्रमुख निर्यात बाजार जैसे सऊदी अरब, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, इराक और कुवैत में भारतीय बासमती की भारी मांग है, लेकिन उच्च एमईपी के कारण निर्यात में कमी आई है।
बालियान ने कहा कि भारत में बासमती धान जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है, जबकि पंजाब में इसकी सबसे अधिक खेती होती है। बासमती की उपज सामान्य चावल की तुलना में कम होती है, लेकिन किसानों को इसकी उच्च कीमत मिलने की उम्मीद रहती है।
बालियान ने कहा कि अगर बासमती के लिए भी अगस से एमएसपी घोषित किया जाए और एमईपी में कटौती की जाए, तो इससे किसानों को बेहतर दाम मिलेंगे और चावल उद्योग को भी लाभ होगा। उन्होंने केंद्र सरकार से बासमती के लिए एमएसपी तय करने और एमईपी को कम करने के लिए त्वरित कदम उठाने की मांग की है।