न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी से धान, मक्का और कपास जैसी फसलों की पैदावार प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है। पैदावार घटने का सीधा असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा। पंजाब कृषि विश्विद्यालय (पीएयू) के कृषि वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों के नए अध्ययन में यह बात सामने आई है। इस अध्ययन में सबसे चिंताजनक बात यह है कि हर बदलते मौसम के साथ न्यूनतम तापमान में वृद्धि हुई है जिससे औसत तापमान बढ़ा है।
खरीफ और रबी सीजन की फसलों पर जलवायु परिवर्तन का असर अलग-अलग होगा। खरीफ फसलों में धान और कपास की तुलना में मक्का की पैदावार तापमान और बारिश पर ज्यादा निर्भर करती है। अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से वर्ष 2050 तक मक्के की पैदावार में 13 फीसदी की कमी आएगी। जबकि कपास में लगभग 11 फीसदी और चावल की पैदावार में लगभग 1 फीसदी की कमी आएगी। जबकि 2080 तक यह कमी और बढ़ती जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक, 2080 तक मक्के की पैदावार में कमी 13 फीसदी से बढ़कर 24 फीसदी पर पहुंच जाएगी। इसी तरह कपास की पैदावार घटने की दर 11 फीसदी बढ़कर 24 फीसदी और धान की 1 फीसदी से बढ़कर 2 फीसदी पर पहुंच जाएगी।
राहत की बात यह है कि 2050 तक गेहूं और आलू पैदावार में खास कमी नहीं आएगी और यह लगभग समान रहेगी, बल्कि दिलचस्प यह है कि जलवायु परिवर्तन के बावजूद वर्ष 2080 तक गेहूं और आलू की उपज में लगभग 1 फीसदी की वृद्धि होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी आलू और गेहूं की पैदावार के लिए फायदेमंद है। जबकि विभिन्न अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि औसत तापमान में वृद्धि से अधिकांश फसलों की पैदावार घट जाती है। कृषि उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल प्रभाव खाद्य सुरक्षा के खतरे का संकेत है।
पंजाब कृषि विश्विद्यालय का यह नया अध्ययन इस दावे को पुख्ता करता है कि भविष्य का जलवायु परिदृश्य बहुत स्वागत योग्य नहीं है। इस अध्ययन के निष्कर्षों में यह संकेत दिया गया है कि क्लाइमेट-स्मार्ट पैकेजों (जलवायु के मुताबिक टेक्नोलॉजी युक्त खेती) को नीतिगत स्तर पर कृषि विकास एजेंडे में शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही किसानों को वित्तीय संस्थानों से जोड़ने पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया गया है ताकि क्लाइमेट-स्मार्ट टेक्नोलॉजी को अपनाने के अनुकूल होने की उनकी क्षमता को बढ़ाया जा सके। अध्ययन रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक पंजाब में मक्का और कपास की पैदावार क्रमशः 13 और 11 फीसदी घटने का अनुमान लगाया गया है। पंजाब देश के कुल अनाज उत्पादन में लगभग 12 फीसदी की भागीदारी रखता है।
यह अध्ययन भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मौसम जर्नल में इसी महीने की शुरुआत में प्रकाशित हुआ है। 1986 से 2020 के बीच इकट्ठा किए गए वर्षा और तापमान के आंकड़ों का इस्तेमाल इस अध्ययन में किया गया है जिसके जरिये पांच प्रमुख फसलों- धान, मक्का, कपास, गेहूं और आलू पर जलवायु परिवर्तन का पंजाब में हुए असर का अनुमान लगाया गया है। शोधकर्ताओं ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय यानी लुधियाना, पटियाला, फरीदकोट, बठिंडा और एसबीएस नगर की पांच मौसम वेधशालाओं से जलवायु के ये आंकड़े इकट्ठा किए हैं। शोधकर्ताओं ने कहा है कि जलवायु में दीर्घकालिक परिवर्तन से पता चलता है कि बारिश के पैटर्न में बदलाव की बजाय तापमान में वृद्धि की वजह से अधिकांश परिवर्तन हो रहे हैं।