औसत तापमान सामान्य से ज्यादा रहने की वजह से फरवरी में ही मार्च की गर्मी महसूस होने लगी है। जनवरी और फरवरी के पहले हफ्ते में पड़ी ठंड को देखते हुए सरकार ने इस साल गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार होने का अनुमान एक हफ्ते पहले ही लगाया था। मगर जैसे-जैसे गर्मी सामान्य से ज्यादा बढ़ती जा रही है पैदावार को लेकर सरकार की चिंता भी बढ़ती जा रही है। यही वजह है कि पिछले शुक्रवार को भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (आईआईडब्ल्यूबीआर) की ओर से गेहूं की फसल को लेकर एडवाइजरी जारी किए जाने के बाद सोमवार को सरकार ने एक समिति गठित करने का ऐलान कर दिया। यह समिति गेहूं की फसल पर तापमान में वृद्धि के प्रभाव की निगरानी करेगी। इस समिति की अध्यक्षता केंद्रीय कृषि आयुक्त करेंगे। पिछले साल भी तापमान सामान्य से ज्यादा रहने की वजह से गेहूं उत्पादन घटकर 10.68 करोड़ टन रह गया था।
नेशनल क्रॉप फोरकास्ट सेंटर (एनसीएफसी) द्वारा फरवरी में तापमान सामान्य से ज्यादा रहने के पूर्वानुमान के बाद केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया है। एनसीएफसी ने कहा है कि मध्य प्रदेश को छोड़कर प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में अधिकतम तापमान फरवरी के पहले हफ्ते में पिछले सात वर्षों के औसत से अधिक था। भारतीय मौसम विभाग ने भी अपने पूर्वानुमान में कहा है कि उत्तर भारत में 9 मार्च तक अधिकतम तापमान सामान्य से 2-3 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहेगा, जबकि 10-16 मार्च तक अधिकतम तापमान सामान्य से नीचे रहेगा। उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में पारा सामान्य से ऊपर है। इस बार जनवरी का महीना सबसे ठंडा और फरवरी सबसे गर्म हो गई है। इससे गेहूं की उत्पादकता प्रभावित होने का गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
केंद्रीय कृषि सचिव मनोज आहूजा ने कहा, 'तापमान बढ़ने से गेहूं की फसल पर पड़ने वाले प्रभाव पर नजर रखने के लिए एक समिति का गठन किया गया है। यह समिति सूक्ष्म सिंचाई को अपनाने के लिए किसानों को परामर्श जारी करेगी। इस समिति की अध्यक्षता केंद्रीय कृषि आयुक्त डॉ. प्रवीण कुमार करेंगे। समिति के सदस्यों में करनाल स्थित गेहूं अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक और गेहूं उत्पादक प्रमुख राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।' हालांकि उन्होंने कहा कि तापमान बढ़ने का ज्यादा असर पैदावार पर नहीं पड़ेगा क्योंकि इस साल गेहूं की अगैती खेती ज्यादा रकबे में हुई है। ऐसी प्रजाति के गेहूं भी बोए गए हैं जो जिसकी उत्पादकता ज्यादा तापमान में भी प्रभावित नहीं होती है।
उत्तर भारत में यह भी देखने में आ रहा है कि दिन में भले ही तापमान सामान्य से ज्यादा रहता हो लेकिन रात में तापमान सामान्य रहता है। साथ ही सुबह के समय हल्का कुहासा रहता है जिससे गेहूं के खेत ओस की बूंदों से पटे रहते हैं। इस वजह से भी अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि तापमान बढ़ने से गेहूं की पैदावार प्रभावित होगी। सरकार ने अपने दूसरे अग्रिम अनुमान में चालू साल 2022-23 में गेहूं का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 44.40 लाख टन ज्यादा रहने और रिकॉर्ड 11.21 करोड़ टन पर पहुंचने का अनुमान लगया है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, फसल वर्ष 2021-22 में प्रमुख उत्पादक राज्यों में तापमान सामान्य से ज्यादा रहने के कारण गेहूं का उत्पादन घटकर 10.68 करोड़ टन रह गया था, जबकि अनुमान 10.77 करोड़ टन रहने का लगाया गया था। वर्ष 2020-21 में देश ने रिकॉर्ड 10.95 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन किया था।
2022-23 में कुल खाद्यान्न उत्पादन 32.35 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर पर रहने का सरकार को अनुमान है। पिछले वर्ष की तुलना में इस बार खाद्यान्न उत्पादन 80 लाख टन बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। 2021-22 के चौथे अग्रिम अनुमान में 31.56 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान लगाया गया था।