चालू मानसून सीजन में सामान्य बारिश के अनुमान के उलट देश के चावल उत्पादन करने वाले क्षेत्र में स्थिति सामान्य नहीं है। सबसे अधिक चावल उत्पादन वाले उत्तर प्रदेश में स्थिति प्रतिकूल है। वहीं बिहार, बंगाल, छत्तीगसढ़ और तेलंगाना में धान का क्षेत्रफल पिछले साल के मुकाबले काफी पिछड़ गया है। मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक 15 जुलाई, 2022 तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बारिश सामान्य के मुकाबले 58.58 फीसदी कम बनी हुई है। वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में बारिश में कमी (घाटा) सामान्य के मुकाबले 68.30 फीसदी है। उत्तर प्रदेश में 15 जुलाई तक धान का रकबा 26.98 लाख हैक्टेयर पर है जो पिछले साल इसी अवधि तक 35.29 लाख हैक्टेयर था। यानी पिछले साल के मुकाबले इसमें 23.8 फीसदी की कमी बनी हुई है। जहां तक पूरे देश में धान के रकबे की बात है तो 15 जुलाई तक वह पिछले साल के मुकाबले 17.38 फीसदी कम है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 15 जुलाई तक धान का रकबा 155.53 लाख हैक्टेयर था जबकि चालू खरीफ सीजन में यह 15 जुलाई तक केवल 128.501 लाख हैक्टेयर पर ही पहुंचा है।
आईएमडी के मुताबिक 15 जुलाई तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 77.5 मिलीमीटर बारिश हुई है जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए 15 जुलाई तक 187.1 मिलीमीटर बारिश का लॉन्ग पीरियड एवरेज (एलपीए) है जिसे सामान्य बारिश कहा जाता है। यानी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बारिश का घाटा 58.88 फीसदी है। पूर्वी उत्तर प्रदेश की स्थिति इससे भी खराब है। यहां 15 जुलाई तक 77.2 मिलीमीटर बारिश हुई जबकि यहां का 15 जुलाई तक का एलपीए 243.5 मिलीमीटर है। यानी यहां सामान्य से 68.30 फीसदी कम बारिश हुई है। बारिश का यह स्तर 1जून से 15 जुलाई तक का है । मानसून सीजन एक जून से शुरू होता है । कम बारिश के चलते उत्तर प्रदेश में धान का रकबा 23.8 फीसदी कम बना हुआ है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सिंचाई सुविधाएं पूर्वी उत्तर प्रदेश के मुकाबले बेहतर हैं। लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में बिजली के ट्यूबवैल भी कम हैं और डीजल के सहारे करीब 20 सिंचाई वाली धान की फसल को बचाने की वहां के किसानों की आर्थिक स्थिति नहीं है।
जहां तक बिहार की बात है तो वहां 15 जुलाई तक 194.80 मिलीमीटर बारिश हुई जो 335.6 मिलीमीटर की सामान्य बारिश के मुकाबले 41.95 फीसदी कम है। बिहार में धान का रकबा पिछले साल के 8.77 लाख हैक्टेयर के मुकाबले 15 जुलाई तक केवल 6.06 लाख हैक्टेयर पर ही पहुंचा है। धान का रकबा पश्चिम बंगाल में भी कम बारिश के चलते 3.94 लाख हैक्टेयर पर पहुंचा है जो पिछले साल इसी अवधि में 4.68 लाख हैक्टेयर पर था। वहां बारिश सामान्य से 45.36 फीसदी कम हुई है। इस साल 15 जुलाई तक पश्चिम बंगाल में 221.3 मिलीमीटर की बारिश हुई जबकि इस समय तक वहां सामान्य बारिश का स्तर 405 मिलीमीटर है।
अन्य राज्यों में तेलंगाना में धान का रकबा पिछले साल के 3.25 लाख हैक्टेयर के मुकाबले केवल 1.046 लाख हैक्टेयर पर पहुंचा है। छत्तीसगढ़ में भी धान का रकबा काफी कम है। वहां 15 जुलाई तक धान का रकबा 16.38 लाख हैक्टेयर पर पहुंचा है जो पिछले साल इसी अवधि तक 19.69 लाख हैक्टेयर रहा था। पंजाब में धान का रकबा मामूली रूप से कम है। वहां यह 27.8 लाख हैक्टेयर है जो पिछले साल 15 जुलाई तक 29.47 लाख हैक्टेयर रहा था।
जून के शुरू में ही धान की नर्सरी की बुआई उत्तर प्रदेश में हो जाती है और जून के अंतिम सप्ताह से 15 जुलाई तक का समय धान की रिप्लांटिंग का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है। ऐसे में 45 दिन का यह समय काफी महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में अगर आने वाले दिनों में धान की फसल के बड़े क्षेत्र में बारिश में सुधार नहीं होता है तो देश में चावल उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। गेहूं उत्पादन में गिरावट के बाद चावल का उत्पादन घटता है तो सरकार को खाद्यान्नों की खरीद और उपलब्धता को लेकर काफी गंभीरता से काम करना पड़ सकता है।
जहां तक केंद्रीय पूल में खाद्यान्न भंडार की बात है तो स्थिति अभी बेहतर है। खासतौर से चावल के भंडार के मामले में स्थिति काफी संतोषजनक है। यह 1 जुलाई के बफर मानक से साढ़े तीन गुना है। केंद्रीय पूल में 1 जुलाई को चावल का स्टॉक 472.18 लाख टन था जो पिछले साल के 491.10 लाख टन के मुकाबले मामूली कम है। एक जुलाई के लिए केंद्रीय पूल में चावल का बफर मानक 135.4 लाख है। लेकिन गेहूं के मामले में स्थिति बेहतर नहीं है। एक जुलाई को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 285.10 लाख टन था जो 275.80 लाख टन के बफर मानक के लगभग करीब है। पिछले साल एक जुलाई को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 603.56 लाख टन था। एक जुलाई, 2022 को केंद्रीय पूल में गेहूं और चावल का कुल स्टॉक 757.28 लाख टन था जबकि पिछले साल एक जुलाई को केंद्रीय पूल में खाद्यान्नों का स्टॉक 1094.66 लाख टन था।
जहां तक देश के दक्षिणी, मध्य और पश्चिमी हिस्से की बात है तो वहां बारिश अच्छी हुई है। लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार के धान उत्पादक क्षेत्र की स्थिति काफी मुश्किल बनी हुई है। अगर आने वाले दिनों में बारिश में सुधार नहीं आता है तो चावल उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। वहीं धान की नर्सरी को एक माह के भीतर ट्रांसप्लांट करना बेहतर रहता है लेकिन अब करीब 45 दिन हो रहे हैं। इसमें देरी होने से ट्रांसप्लांट की जाने वाली पौध से तैयार होने वाली फसल की उत्पादकता पर प्रतिकूल असर पड़ना तय है। इसलिए आने वाले कुछ दिन किसानों और सरकार दोनों के लिए अहम हैं। वैश्विक स्तर पर खाद्यान्नों की उपलब्धता का संकट बना हुआ है और इसका फायदा भारत को मिला है। चावल के निर्यात बाजार में भारत की हिस्सेदारी 40 फीसदी तक पहुंच गई है। ऐसे में अगर घरेलू मोर्चे पर उत्पादन घटता है तो इसका असर निर्यात पर भी पड़ेगा।