रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बीच भारत के लिए गेहूं निर्यात का बहुत अच्छा मौका है, लेकिन इसमें बड़ी बाधा पश्चिमी देशों की तरफ से आ सकती है। लंबे अरसे से इन देशों का मानना रहा है कि भारत में अनाज पर जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिया जाता है वह विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सिद्धांतों के खिलाफ है, खास कर निर्यात के मामले में। रूस और यूक्रेन गेहूं के बड़े उत्पादक हैं। गेहूं के कुल वैश्विक निर्यात में इनकी हिस्सेदारी 29 से 30 फ़ीसदी तक रहती है। यूक्रेन में गेहूं की नई फसल की बुवाई का समय आने वाला है, लेकिन अभी वहां जो युद्ध के हालात हैं उसे देखकर लगता नहीं कि बुवाई हो पाएगी।
दूसरी तरफ भारत में गेहूं का पर्याप्त भंडार है। कृषि मंत्रालय ने इस वर्ष 11.13 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान जाहिर किया है जो अब तक का रिकॉर्ड होगा। पिछले वर्ष 10.92 टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। भारत दुनिया का 13.5 फ़ीसदी गेहूं उत्पादन करने के साथ इस मामले में दूसरे नंबर पर है।
बीते कुछ महीनों में भारत से गेहूं का निर्यात बढ़ा भी है। अप्रैल से दिसंबर 2021 तक करीब 50 लाख टन गेहूं का निर्यात किया गया जो एक साल पहले की तुलना में पांच गुना है। इस वर्ष रिकॉर्ड उत्पादन और आगे अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति को देखते हुए भारत के लिए निर्यात बढ़ाने का अच्छा मौका है।
फिलहाल भारत में उत्पादन का बड़ा हिस्सा घरेलू खपत में ही चला जाता है और गेहूं के कुल वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी एक फीसदी से भी कम है। युद्ध के बाद ग्लोबल मार्केट में गेहूं की मांग को देखते हुए घरेलू बाजार में भी दाम 400 से 500 रुपए प्रति क्विंटल तक बढ़े हैं और एमएसपी से ऊपर चल रहे हैं।
चाय का निर्यात भी हो सकता है प्रभावित
युद्ध के चलते रूस और अन्य राष्ट्रकुल देशों को चाय का निर्यात भी प्रभावित होने की आशंका है। इन देशों को भारत सालाना छह से साढ़े छह करोड़ किलो चाय का निर्यात करता है। निर्यातकों को सबसे ज्यादा दिक्कत रूस को निर्यात में आने वाली है। अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस और बेलारूस को बैंकिंग सिस्टम स्विफ्ट से अलग कर दिया है। इसलिए बाहर के किसी देश से रूस में भुगतान करना या उसके किसी बैंक से बाहर किसी दूसरे देश में भुगतान करना कठिन हो गया है।