एमएसपी गारंटी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार वीएम सिंह ने चेतावनी दी है कि अगर केंद्र सरकार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने वाला कानून नहीं बनाती है तो किसान वोट नहीं देंगे। एमएसपी गारंटी किसान मोर्चा की समन्वय समिति की शनिवार को हुई बैठक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने यह बात कही। इस मोर्चा में 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश के 260 से अधिक किसान संगठन शामिल हैं।
वीएम सिंह ने कहा कि किसान केवल सरकार द्वारा निर्धारित एमएसपी पर अपनी फसल का भुगतान चाहते हैं, चाहे इसकी खरीद सरकार करे या फिर कोई निजी कंपनी। हमारी मांग है कि एमएसपी की गारंटी का कानून बनाकर एमएसपी से कम कीमत पर फसलों की खरीद को अवैध बनाया जाए। ऐसा नहीं है कि इस कानून से एमएसपी पर खरीद का पूरा बोझ सरकार पर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जुलाई 2018 में एमएसपी प्राइवेट मेंबर बिल संसद में पेश किया गया था। उसमें भी यह बताया गया था कि एमएसपी पर खरीद का पूरा भार न तो राज्यों पर पड़ेगा और न ही केंद्र सरकार पर। हमारी मांग सिर्फ यही है कि कानून के जरिये यह तय किया जाए कि एमएसपी से कम पर देश में फसलों की खरीद नहीं होगी।
फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग दो दशक से भी अधिक पुरानी है। इसकी शुरुआत अक्टूबर 2000 में उत्तर प्रदेश के किसानों ने एक बड़े राज्यव्यापी आंदोलन से की थी। यह आंदोलन पीलीभीत से शुरू हुआ था और राज्य के अन्य हिस्सों में फैल गया था। इस दौरान एक सप्ताह तक रेल एवं सड़क यातायात पूरी तरह बाधित रहा था। आंदोलन के एक सप्ताह बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री राम प्रकाश गुप्ता को पद छोड़ना पड़ा था और राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही घंटों के भीतर उन्होंने किसानों की मांग मान ली और राज्य में एमएसपी पर धान खरीद शुरू हो गई थी।
वीएम सिंह ने कहा कि 2017 में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने देश भर का दौरा किया था और समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि यदि किसानों के लिए कर्ज माफी और एमएसपी गारंटी के दो कानून बना दिए जाएं तो उनकी दुर्दशा को कम किया जा सकता है। इस क्रम में मार्च 2018 में 20 से अधिक राजनीतिक दलों ने इन विधेयकों के प्रस्ताव को समर्थन करते हुए हस्ताक्षर किए जिसके बाद संसद के दोनों सदनों में इन्हें बतौर "निजी सदस्य विधेयक" पेश किया गया था।