कृषि के लिहाज से भारत के लिए विश्व व्यापार संगठन की 12वीं मंत्रिस्तरीय बैठक के नतीजे उत्साहजनक नहीं रहे हैं। जिनेवा में 12 से 17 जून तक छह दिन चली बैठक के बावजूद भारत के लिए जो समस्याएं थीं, वे बरकरार हैं। पहले यह बैठक 15 जून तक होनी थी। भारत के लिए कृषि सब्सिडी अहम मसला है, लेकिन उस दिशा में बात आगे नहीं बढ़ी। भारत सार्वजनिक भंडारण के मुद्दे का स्थायी समाधान चाहता था, लेकिन उस पर चर्चा ही नहीं हुई। भारत समुद्र में मछली पकड़ने वाले मछुआरों की सब्सिडी खत्म करने के लिए 25 साल का समय चाहता था, लेकिन उसे दो साल में ही यह सब्सिडी खत्म करनी पड़ेगी।
हालांकि केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग, उपभोक्ता मामले और खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल ने 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन को सफल बताते हुए कहा कि हमारे किसानों और मछुआरों के खिलाफ एक मजबूत वैश्विक अभियान के बावजूद भारत कई वर्षों के बाद विश्व व्यापार संगठन में अनुकूल परिणाम हासिल करने में सक्षम हुआ है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम भारत लौट रहे हैं तो कोई भी ऐसा मुद्दा नहीं है जिस पर हमें जरा सा भी चिंतित रहना चाहिए। चाहे वह कृषि से संबंधित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) हो, या फिर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम अथवा पीएम गरीब कल्याण योजना को पूरा करने के लिए सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग कार्यक्रम की प्रासंगिकता, बौद्धिक संपदा अधिकारों (ट्रिप्स) पर छूट या कोविड और मत्स्य पालन का मुद्दा होI गोयल ने कहा, भारतीय मछुआरे मछली पकड़ने को लेकर चिंतित थे लेकिन इस पर कोई अंकुश नहीं लगाया गया है। सरकार पर कोई शर्त नहीं लगाई गई है। बल्कि हम अवैध रूप से मछली पकड़ने जैसे मुद्दों पर अंकुश लगाने के उपाय लागू करने में सफल रहे हैं।
गोयल ने कहा कि भारत विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है। अफगानिस्तान को भारत की हालिया गेहूं आपूर्ति का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सरकार ने अन्य देशों में खाद्य सुरक्षा के लिए डब्ल्यूएफपी खरीद पर कोई निर्यात प्रतिबंध नहीं लगाया है। लेकिन इससे पहले घरेलू खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी। उन्होंने कहा, कुछ देशों ने शुरू में यह दुष्प्रचार अभियान चलाने का प्रयास किया कि भारत के अड़ियलपन के कारण कोई प्रगति नहीं हो रही है। वास्तविक स्थिति सबके सामने आ चुकी है।
सम्मेलन के बाद जारी बयान में डब्ल्यूटीओ की महानिदेशक डॉ. नगोजी ओकोंजो-इवीला ने कहा, “खाद्य सुरक्षा के लिए पब्लिक स्टॉक होल्डिंग, घरेलू समर्थन, कपास और बाजार पहुंच जैसे मामलों पर मतभेद थे। हम इन मुद्दों पर आगे बढ़ने के लिए किसी एक राय पर नहीं पहुंच सके।
सरकार की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, “मत्स्य दोहन पर हमारे जल क्षेत्र और अन्य जगहों पर अवैध रूप से, गैर-सूचित और अनियमित मछली पकड़ने पर रोक लगेगी। मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों पर बहुत सख्त नियंत्रण होगा ताकि मछली के स्टॉक को बहाल किया जा सके। इसके अतिरिक्त, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों (ईईजेड) या क्षेत्रीय मत्स्य प्रबन्धन संस्थानों (आरएफएमओएस) के बाहर के क्षेत्रों में मछली पकड़ने के लिए कोई अनुदान सहायता (सब्सिडी) प्रदान नहीं की जाएगी।”
दरअसल मछली पकड़ने में सब्सिडी से जुड़े दो मुद्दे हैं। एक है ‘अवैध, अनरिपोर्टेड और अनियमित’ (आईयूयू) फिशिंग का। बैठक के बाद जारी घोषणापत्र, जिसे जिनेवा पैकेज नाम दिया गया है, के मुताबिक कोई भी देश इसके लिए सब्सिडी नहीं देगा। दूसरा मुद्दा ज्यादा मछली पकड़ने (ओवरफिश्ड स्टॉक) पर सब्सिडी का। इस बारे में भी घोषणापत्र में कहा गया है कि कोई देश सब्सिडी नहीं देगा। हालांकि ओवरफिश्ड स्टॉक का निर्धारण सदस्य देश ही करेगा। समझौता लागू होने के दो वर्षों तक विकासशील और अल्पविकसित देश अपने विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में ओवरफिश्ड स्टॉक पर सब्सिडी दे सकते हैं। भारत पहले 25 साल के लिए छूट चाहता था। यही नहीं, सम्मेलन शुरू होने से पहले जो ड्राफ्ट जारी किया गया था, उसमें सात साल की बात थी। फिर भी फैसला दो साल पर हुआ, जिसे भारत ने भी स्वीकार किया है।
हालांकि इस फैसले का स्वागत करते हुए उद्योग संगठन फिक्की के अध्यक्ष संजीव मेहता ने कहा, “डब्ल्यूटीओ बैठक में लिए फैसलों से भारत और विकासशील देशों को लाभ होगा। फिशरीज सब्सिडी पर फैसले से अवैध, अनरिपोर्टेड और अनियमित मछली पकड़ने पर अंकुश लगेगा। ओवरफिशिंग वाले इलाकों में कठोर नियंत्रण से यह सुनिश्चित होगा कि मछलियों का स्टॉक तेजी से न घटे।”