‘एजेंडा फॉर रूरल इंडिया’ श्रृंखला के तहत बुधवार को नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में राष्ट्रीय कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इसका मकसद ग्रामीण भारत की वर्तमान स्थिति पर अपनी राय व्यक्त करने के लिए ग्रामीण नागरिकों को एक मंच पर लाना है। इस श्रृंखला के तहत डिजिटल मीडिया संगठन रूरल वॉयस और गैर-सरकारी संगठन सॉक्रेटस ने अलग-अलग कृषि-जलवायु, आर्थिक शक्ति और फसल पैटर्न वाले पांच राज्यों में सम्मेलन का आयोजन किया था। नई दिल्ली में आयोजित हो रहा सम्मेलन इस श्रृंखला की आखिरी कड़ी है।
इस दौरान रूरल वॉयस मीडिया प्रा. लिमिटेड की ओर से कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों पर आधारित त्रैमासिक पत्रिका रूरल वर्ल्ड को भी जारी किया जाएगा। नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति इस पत्रिका का विमोचन करेंगे। इस एकदिवसीय कार्यक्रम में पैनल चर्चा के कई सत्र आयोजित किए जाएंगे। इन पैनल चर्चाओं में ‘ग्रामीण भारत कैसे बदल रहा है’, ‘ग्रामीण भारत में मीडिया और सिविल सोसायटी की भूमिका’, ‘ग्रामीण भारत अपने जनप्रतिनिधियों से क्या चाहता है’ और ‘ग्रामीण भारत में बदलाव को किसान संगठन कैसे स्वीकार कर रहे हैं’ जैसे विषय शामिल किए गए हैं।
पिछले छह माह के दौरान आयोजित ‘ग्रामीण भारत का एजेंडा’ सम्मेलनों का उद्देश्य ग्रामीण परिदृश्य में पिछले 15 वर्षों में हुए परिवर्तनों से संबंधित स्थानीय प्रतिक्रियाओं और चिंताओं का पता लगाना था। ये सम्मेलन 5 स्थानों पर आयोजित किए गए। प्रत्येक सम्मेलन में आसपास के 10-11 जिलों से लोग एकत्र हुए। ये सम्मेलन भुवनेश्वर, कोयंबटूर, जोधपुर, मुजफ्फरनगर और शिलांग में आयोजित किए गए थे जहां कृषि एवं ग्रामीण विषयों सहित ग्रामीणों को प्रभावित करने वाले विविध मुद्दों पर चर्चा की गई। जिन राज्यों में ये सम्मेलन आयोजित किए वे सांस्कृतिक, आर्थिक, कृषि-जलवायु और राजनीतिक रूप से एक दूसरे से पूरी तरह से अलग हैं। इन सम्मेलनों में देशभर के 60 जिलों से 300 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था।
इन चर्चाओं में कृषि क्षेत्र के लिए जो जोखिम उभर कर सामने आए, उनमें कर्ज का बढ़ता स्तर, श्रमिकों की मजदूरी समेत बढ़ती इनपुट लागत, नकली कीटनाशकों की बेरोकटोक बिक्री, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, उपज की उचित कीमत न मिलना और राजनीतिक उदासीनता शामिल हैं। सम्मेलनों में विभिन्न पेशे के लोगों ने भाग लिया। उनमें किसान, स्थानीय व्यापारी और व्यवसायी, स्वयं सहायता समूहों के सदस्य, स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधि, स्थानीय सरकारी अधिकारी, मजदूर और प्रवासी, कॉलेज छात्र, सामाजिक कार्यकर्ता और सेवा क्षेत्र के पेशेवर शामिल थे। सम्मेलन में यह सुनिश्चित भी किया गया कि सभी लिंग और सामाजिक समूहों के लोग उपस्थित हों।