एमएसपी से नीचे सरसों का भाव, किसानों को नुकसान पर लोस अध्यक्ष और कृषि मंत्री से सरकारी खरीद जल्द शुरू करवाने की मांग

राजस्थान के कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ में 15 मार्च से एमएसपी पर सरसों की सरकारी खरीद शुरू हो जाती है मगर इस बार इसमें देरी हो रही है। राज्य में 1 अप्रैल से इसकी शुरुआत होगी। इसी तरह, मध्य प्रदेश में भी 1 अप्रैल से और हरियाणा में 28 मार्च से सरकारी खरीद शुरू करने की घोषणा राज्य सरकारों ने कर रखी है।

प्रतीकात्मक फोटो

गुजरात को छोड़कर सरसों के बड़े उत्पादक ज्यादातर राज्यों में सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई है, जबकि मंडियों में नई फसल की आवक तेज हो चुकी है। अभी निजी व्यापारी और बड़े तेल मिल ही किसानों से उनकी फसल खरीद रहे हैं। आवक बढ़ने से नई सरसों का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,450 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे चल रहा है। ज्यादातर मंडियों में सामान्य सरसों का औसत भाव 4,800-5,200 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास चल रहा है। इसके अलावा खाद्य तेलों के आयात में बेतहाशा बढ़ोतरी का भी असर सरसों की कीमतों पर पड़ रहा है। इससे किसानों को नुकसान हो रहा है। इसे देखते हुए कोटा जिले के सांगोद के कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री भरत सिंह कुंदनपुर ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को चिट्ठी लिखकर हस्तक्षेप की अपील करते हुए राजस्थान में सरकारी खरीद जल्द शुरू करवाने की मांग की है। इस चिट्ठी की प्रतिलिपि उन्होंने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भी भेजी है। ओम बिरला कोटा से ही लोकसभा सांसद हैं।   

रूरल वॉयस को मिली जानकारी के मुताबिक, राजस्थान के दौसा जिले की लालसोट मंडी में नई सरसों का न्यूनतम भाव 4,600 रुपये और अधिकतम भाव 5,300 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास चल रहा है, जबकि औसत भाव 5,200 रुपये प्रति क्विंटल है। वहीं कोटा मंडी में न्यूनतम भाव गिरकर 4,300 रुपये तक पहुंच गया है। यहां अधिकतम भाव 5,100 रुपये और औसत भाव 4,500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास चल रहा है। राजस्थान के कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ में 15 मार्च से एमएसपी पर सरसों की सरकारी खरीद शुरू हो जाती है मगर इस बार इसमें देरी हो रही है। राज्य में 1 अप्रैल से इसकी शुरुआत होगी। इसी तरह, मध्य प्रदेश में भी 1 अप्रैल से और हरियाणा में 28 मार्च से सरकारी खरीद शुरू करने की घोषणा राज्य सरकारों ने कर रखी है। सरकारी खरीद शुरू होने से पहले ही निजी व्यापारी ज्यादा से ज्यादा माल खरीदने की कोशिश में लगे हैं।

किसानों पर पहले मौसम और अब कम भाव की दोहरी मार

सांगोद विधायक भरत सिंह कुंदनपुर ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को लिखी चिट्ठी में भी इस बात की पुष्टि की है कि कोटा मंडी में सरसों का औसत भाव घटकर 4,500 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। रूरल वॉयस को इस चिट्ठी की कॉपी मिली है। इसमें उन्होंने लिखा है कि मौसम की मार के कारण पहले ही सरसों की फसल को नुकसान पहुंचा है। अब बाजार में सरसों का भाव कम मिलने से किसानों को दोहरा नुकसान हो रहा है। एक तरफ सरकार समर्थन मूल्य पर सरसों की खरीद नहीं कर रही है, दूसरी ओर 91.7 लाख टन पाम ऑयल का रिकॉर्ड आयात कर रही है। इससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।   

नेफेड ने गुजरात में शुरू की खरीद

हालांकि, मंडियों में भाव एमएसपी से नीचे आने को देखते हुए केंद्र सरकार ने राज्यों को समय से पहले एमएसपी पर सरकारी खरीद शुरू करने के निर्देश दिए हैं लेकिन गुजरात को छोड़कर अभी तक कहीं इसकी शुरुआत नहीं हुई है। गुजरात में 10 मार्च से ही नेफेड ने एमएसपी पर सरकारी खरीद शुरू कर दी है। नेफेड ने एक ट्वीट के जरिये इसकी जानकारी दी है। 2020-21 और 2021-22 में सरसों किसानों को एमएसपी के मुकाबले कहीं ज्यादा भाव मिला था। तब उन्हें 6,000-8,000 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला था। 2021-22 में सरसों का एमएसपी 5,050 रुपये प्रति क्विंटल था जिसे केंद्र सरकार ने इस साल 400 रुपये बढ़ाकर 5,450 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। एमएसपी में इतनी बड़ी बढ़ोतरी को देखते हुए किसान उत्साहित हुए और उन्होंने इस साल रिकॉर्ड रकबे में इसकी बुवाई की है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, रबी सीजन 2022-23 में 98.02 लाख हेक्टेयर के रिकॉर्ड रकबे में सरसों की बुवाई हुई है। 2021-22 की तुलना में यह 6.77 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। सरसों उत्पादन और बुवाई रकबे के मामले में राजस्थान पहले नंबर पर है। दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश, तीसरे पर उत्तर प्रदेश और चौथे पर हरियाणा का नंबर है।    

किसानों को नहीं मिल रहा एमएसपी का फायदा

समर्थन मूल्य में वृद्धि की वजह से बुवाई का रकबा तो रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया लेकिन आयात शुल्क में छूट की वजह से खाद्य तेलों का आयात लगातार बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह से एमएसपी में बढ़ोतरी का फायदा किसानों को नहीं मिल पा रहा है और उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय कीमतें घटने की वजह से जनवरी 2023 में रिकॉर्ड 16.61 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया गया। जनवरी 2022 के मुकाबले यह 31 फीसदी ज्यादा और सितंबर 2021 के बाद सबसे ज्यादा है। भारत अपनी जरूरत का करीब 65 फीसदी खाद्य तेल का आयात करता है।