फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की मांग किसान लंबे समय से कर रहे हैं। अब फलों और सब्जियों का भी एमएसपी तय करने की मांग उठने लगी है। इस साल आलू और प्याज की बाजार कीमतें लागत के मुकाबले काफी कम रहने और इसकी वजह से किसानों की स्थिति बदहाल होने को देखते हुए भाजपा किसान मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही का कहना है कि अब समय आ गया है कि फलों और सब्जियों का भी एमएसपी तय होना चाहिए। किसानों की स्थिति सुधारने और उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए ऐसा करना जरूरी है।
रूरल वॉयस और सॉक्रेटस फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए नरेश सिरोही ने रूरल वॉयस को दिए इंटरव्यू में कहा कि हमारी मांग बहुत पहले से रही है कि सभी फसलों का एमएसपी होना चाहिए। आलू, प्याज, टमाटर या अन्य जो भी सब्जियां हैं उसकी लागत देशभर में अमूमन 8-12 रुपये प्रति किलो है। हमलोगों ने इस पर काम करके लागत मूल्य का आकलन किया है। देश के किसी भी कोने में अगर सब्जियां 10 रुपये प्रति किलो से कम पर बिकती है तो उससे किसानों को घाटा होता है। इसे देखते हुए फलों और सब्जियों का भी न्यूनतम मूल्य होना चाहिए कि इससे कम दर पर सब्जी नहीं बिकेगी। इससे उपभोक्ताओं को महंगी सब्जी मिलने के बारे में उन्होंने कहा कि उपभोक्ता को तो अभी भी सस्ती सब्जी का लाभ नहीं मिलता है। वह तो वैसे भी किसानों को मिलने वाली कीमत के मुकाबले तिगुने-चौगुने कीमत पर सब्जी खरीदते हैं। किसानों की जो भी लागत आती है उसको ध्यान में रखते हुए, उसे लाभकारी मूल्य देने के लिहाज से सरकार को बागवानी फसलों का भी एमएसपी तय करना चाहिए।
अभी सरकार गेहूं, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, चना, दलहन और तिलहन जैसी 22 फसलों का एमएसपी तय करती है। एमएसपी पर ही इन फसलों की सरकारी खरीद होती है लेकिन निजी व्यापारियों के लिए ऐसा करने की बाध्यता नहीं है। एमएसपी तय करने को लेकर अभी कोई कानून नहीं है। बाजार के उतार-चढ़ाव और मांग-आपूर्ति को देखते हुए ही बाजार मूल्य तय होता है। बहुत कम मौके ऐसे आते हैं जब किसान एमएसपी से ज्यादा कीमत पर अपनी फसल निजी व्यापारियों को बेच पाते हैं। उनकी उपज की उचित कीमत नहीं मिलने और लगातार घाटा झेलने को देखते हुए ही किसान संगठन एमएसपी की कानूनी गारंटी चाहते हैं ताकि निजी व्यापारी भी इससे कम कीमत पर उनकी फसल न खरीद सकें। अगर कोई ऐसा करता है तो उसके लिए कानून में सजा का प्रावधान होना चाहिए।
नरेश सिरोही का यह भी कहना है कि सापेक्ष मूल्य नीति (टर्म्स ऑफ ट्रेड) भी किसानों के विपरीत है। किसानों का उत्पादन बाकी उत्पादों के मुकाबले हर साल लगभग 12-15 फीसदी कम रहता है। इसलिए हर 7 साल में किसानों की आमदनी बाकी व्यवसायों की तुलना में आधी होती चली जाती है। उन्होंने कहा, “सापेक्ष मूल्य नीति में जब तक सुधार नहीं होगा, भले ही उन्हें एमएसपी की कानूनी गारंटी भी मिल जाए, तब तक किसानों का कल्याण होने वाला नहीं है। हम बाजार से जो खरीदते हैं वह किस भाव पर मिल रहा है और किसानों की फसल किस भाव पर बिक रही है, उसकी जो वृद्धि दर है अगर उसमें बराबरी नहीं होगी तो किसानों के साथ अन्याय होगा। इसलिए टर्म्स ऑफ ट्रेड का कृषि के पक्ष में होना जरूरी है जिसके लिए नीतिगत बदलाव होने चाहिए। उसके बाद ही किसानों को उनके उत्पादों की वाजिब कीमत और उनके सही हक मिल सकेंगे।”