आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने आगामी रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 के लिए रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को मंजूरी दे दी। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सीसीईए की बैठक में रबी फसलों के एमएसपी को मंजूरी दी गई। रबी सीजन की सबसे अहम फसल गेहूं का एमएसपी 40 रुपये प्रति क्विटंल बढ़ाया गया जो करीब दो फीसदी है। हालांकि दालों में मसूर और सरसों के समर्थन मूल्य में 400 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी की गई है। सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि फसलों के विविधिकरण को ध्यान में रखते हुए फसलों के एमएसपी में बढ़ोतरी की गई है। हालांकि सरकार का दावा है कि फसलों की उत्पादन लागत के मुकाबले 100 फीसदी तक की बढ़ोतरी के आधार पर एमएसपी तय की गई है, लेकिन किसान संगठनों का कहना है कि यह बढ़ोतरी लागत में वृद्धि के मुकाबले बहुत कम है।
सरकार के इस फैसले के बाद गेहूं का एमएसपी 1975 रुपये प्रति क्विटंल से बढ़कर 2015 रुपये प्रति क्विटंल हो गया है। जबकि 35 रुपये की वृद्धि के साथ ज्यौं का एमएसपी 1635 रुपये प्रति क्विटंल हो गया है।
चना के एमएसपी में 130 रुपये और इसका एमएसपी अब 5230 रुपये प्रति क्विटंल हो गया है। सैफ्लावर के एमएसपी में 114 रूपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी की गई है और आगामी सीजन के लिए इसका एमएसपी 5441 रुपये प्रति क्विटंल हो गया है। सबसे अधिक 400 रुपये प्रति क्विटंल बढ़ोतरी सरसों और मसूर के एमएसपी में की गई है। इस वृद्धि के बाद सरसों का एमएसपी 5050 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है जबकि मसूर का एमएसपी 5500 रुपये प्रति क्विटंल हो गया है।
रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 के लिए फसलों का एमएसपी (रुपये प्रति क्विटंल )
फसल |
2021-22 सीजन के लिए एमएसपी
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2022-23 सीजन के लिए एमएसपी
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उत्पादन लागत * 2022-23 |
एमएसपी में वृद्धि |
लागत पर मुनाफा (फीसदी में) |
गेहूं |
1975 |
2015 |
1008 |
40 |
100 |
ज्यौं |
1600 |
1635 |
1019 |
35 |
60 |
चना |
5100 |
5230 |
3004 |
130 |
74 |
मसूर |
5100 |
5500 |
3079 |
400 |
79 |
सरसों- रेपसीड |
4650 |
5050 |
2523 |
400 |
100 |
सैफ्फलावर |
5327 |
5441 |
3627 |
114 |
50 |
* लागत की गणना ए-2 प्लस एफएल के आधार पर
सरकार का कहना है कि पिछले कुछ सरकार में उसकी कोशिश तिलहन और दालों के एमएसपी में अधिक बढ़ोतरी कर उनके उत्पादन को प्रोत्साहित करना रहा है। इन फसलों की अधिक एमएसपी के चलते फसलों का विविधिकरण बढेगा ताकि देश में दालों और तिलहन की उपलब्धता बढ़ सके। इसके साथ ही सरकारी प्रेस रिलीज में कहा गया है कि पिछले दिनों सरकार ने नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल्स -ऑयल पॉम की केंद्रीय प्रायोजित योजना घोषित की है और इसके लिए 11040 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसका मकसद खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करना है। इसके अलावा पीएम आशा और पीडीपीएस योजना भी लागहू की गई है जिसमें प्राइवेट खरीद को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि किसानों को फसलों का उचित दाम मिल सके।
सीसीईए के फैसले के बाद केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि हर बार की तरह एक बार फिर मोदी सरकार ने फसलों की एमएसपी बढाकर तय की है, इससे देश के करोड़ों किसानों को लाभ मिलेगा। सरकार के इस फैसले से उन लोगों को भी सीख लेनी चाहिए जो यह भ्रम फैला रहे हैं कि एमएसपी समाप्त कर दी जाएगी। प्रधानमंत्री के कुशल नेतृत्व में भारत सरकार देश के किसानों के कल्याण के लि पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री कई बार आश्वासित कर चुके हैं कि एमएसपी थी, है और आगे भी रहेगी। कृषि मंत्री ने कहा कि एमएसपी पर तरह-तरह के झूठ बोले गए और भ्रम फैलाने के भरसक प्रयास हुए लेकिन नए कृषि सुधार कानूनों के पारित होने के उपरांत न केवल एमएसपी की दरें बढी हैं बल्कि सरकार द्वारा खरीद में भी लगातार बढ़ोतरी हुई है। इसलिए अब एमएसपी को लेकर किसी के मन में कोई भी शंका नहीं होनी चाहिए और न ही भ्रम फैलाया जाना चाहिए।
वहीं किसान संगठनों का कहना है कि सरकार द्वारा घोषित की गई गेहूं की एमएसपी एक दशक में सबसे कम है। डीजल कीमतों के बढ़ने और दूसरी लागतों के बढ़ने से किसानों पर आये आर्थिक दबाव को इस कीमत वृद्धि से कम नहीं किया जा सकता है। वहीं किसानों का कहना है कि वह एमएस स्वामीनाथन की सिफारिशों के आधार पर सी-2 लागत पर 50 फीसदी मुनाफा देने की मांग कर रहे हैं जबकि सरकार ए2 प्लस एफएल के आधार पर तय कीमत के आधार पर मुनाफा देने की बात कर रही है।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता और संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने इस वृद्धि को किसानों के साथ धोखा बताया है। उनका कहना है कि सरकार ने जो उत्पादन लागत बताई है वह पूरी तरह से गलत है। साथ ही अगर छह फीसदी महंगाई दर को भी मानकर गणना की जाए तो भी किसानों को घाटा हो रहा है। सरकार को कृषि विश्विद्यालयों की लागत को भी ध्यान में रखना चाहिए। भारतीय किसान यूनियन का कहना है कि सरकार द्वारा बताई गई लागत उचित नहीं है और यह वास्तविक लागत से बहुत कम है।