भारत में गेहूं व चावल के बाद मक्का तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल के तौर पर विकसित हो रही है। भोजन के साथ ही कुक्कट पालन व एथनाल उत्पादन सहित विविध क्षेत्रों में मक्का का इस्तेमाल होने से न केवल भारत में बल्कि विश्व में भी मक्का की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। इससे देश के किसानों को गेहूं और धान की तुलना में यह फायदे वाली फसल दिख रही है। दूसरी तरफ मक्के की मांग बढ़ने से पिछले साल की तुलना में देश में मक्के का निर्यात लगभग छह गुना बढ़ गया, वित्तीय वर्ष 2021-22 मे 28 करोड़ 79 लाख टन का निर्यात किया गया था जिसकी कीमत 4,675.78 करोड़ रुपए थी।
बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, वियतनाम और मलेशिया जैसे देश भारत से मक्का के प्रमुख आयातक हैं। यह फसल मुख्य रूप से कर्नाटक, मध्य प्रदेश, केरल, बिहार, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश राज्यों में उगाई जाती है। भारत में, मक्के की खेती पूरे साल की जाती है और यह मुख्य रूप से खरीफ की फसल है, जिसके तहत मौसम के दौरान 85 फीसदी खेती की जाती है। रबी मक्के की खेती 15 फीसदी ही की जाती है। जबकि रबी सीजन की मक्के फसल की उपज खरीफ की तुलना में ज्यादा है।
भारत में मक्का के उत्पादन का लगभग 47 फीसदी पोल्ट्री फीड के रूप में उपयोग किया जाता है। बाकी उपज में से, 13 फीसदी का उपयोग पशुधन फ़ीड और भोजन के उद्देश्य के रूप में किया जाता है, 12 फीसदी औद्योगिक उद्देश्यों के लिए, 14 फीसदी स्टार्च उद्योग में, 7 फीसदी प्रसंस्कृत भोजन और 6 फीसदी निर्यात और अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है।
किसान बिहार औऱ छत्तीसगढ़ के कई जिलो में रबी के मौसम में गेहूं की जगह मक्के की खेती करना पसंद करने लगे हैं। गेहूं में अधिक लागत, कम उपज के चलते लोग मक्का की खेती ज्यादा करने लगे हैं। बिहार के ग्राम महदेवा जिला कटिहार के किसान रंजन कुमार ने पांच एकड़ में रबी मक्के की खेती की है। उन्होंने ने बताया कि गेहूं की तुलना में मक्के की खेती लाभदायक है। मक्के में कम पानी कम खाद में भी अच्छी उपज मिल जाती है। दूसरी तरफ गेहूं की खेती में जुताई से लेकर कटाई तक 15 हजार से 16 हजार तक प्रति एकड़ खर्च आ रहा है और गेहूं का उत्पादन 14 से 15 कुंतल प्रति एकड़ मिल पाता है। रबी मक्के का उत्पादन 25 से 26 कुंतल तक प्रति एकड़ मिल जाता है और खर्च 10 से 12 हजार रुपये ही प्रति एकड़ आता है। उन्होंने कहा हमारे यहां गेहूं भी लगभग 2200 रुपये कुंतल बिक रहा है और मक्का भी 2100 से 2200 रुपये कुंतल व्यापारी घर से खरीदारी करके बंग्लादेश को निर्यात कर रहे है और मक्का की बिक्री में कोई परेशानी नही होती है। इस तरह रबी मक्के की फसल खेती हमारे जिले औऱ आसपास के जिलों में मक्का एरिया तेजी एरिया बढ़ रहा है। औऱ गेहूं का एरिया घट रहा है।
वैज्ञानिकों के अनुसार गेहूं की खेती के लिए रात पूरी सर्द और दिन खुला हुआ होना चाहिए। दिन के समय में आर्द्रता कम होनी चाहिए। ठंड का समय जितना लंबा होगा, गेहूं की फसल उतनी ही अधिक होगी। वहीं यहां का मौसम मक्का के लिए उपयुक्त है। मक्का की खेती के लिए गर्म और आर्द्रता के साथ-साथ ठंड और नमी दोनों अनुकूल होता है। इस कारण से यहां मक्का की पैदावार काफी ज्यादा होती है। मौसम अनुकूल नहीं रहने के कारण से गेहूं की खेती कम होती है।
सरकार फसलों के विविधीकरण कार्यक्रम के तहत, विभिन्न पहलों के जरिये किसानों को मक्का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। साथ ही, सरकार ने विभिन्न पहल व पैकेजों से उद्यमियों को भी समर्थन किया है। हरियाणा सरकार भी घटते भूमि जल स्तर को देखते हुए खरीफ में धान की जगह किसानों को मक्के की खेती की सलाह दे रही क्योंकि एक किलो धान की उपज लेने में लगभग 3000 लीटर पानी की जरुरत होती है। एक किलो मक्का में 2450 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है।