केंद्रीय पूल में गेहूं और चावल का स्टॉक एक जुलाई, 2023 को पांच साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। दूसरी ओर भले ही उत्तरी राज्यों में भारी बारिश के चलते बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई हो लेकिन इस सचाई को स्वीकार करना होगा कि मानसून पर अल नीनो का असर है और देश का बड़ा हिस्सा सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहा है। इसके चलते चालू खरीफ सीजन में चावल उत्पादन को लेकर आशंका पैदा होती जा रही है। ताजा आंकडों के मुताबिक अभी तक देश में धान का क्षेत्रफल पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब 10 फीसदी कम है। एक समय था जब कोरोना के दौरान सरकार ने नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट (एनएफएसए) के तहत मिलने वाले पांच किलो खाद्यान्न के अलावा पांच किलो अतिरिक्त खाद्यान्न 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त में दिया था। यह इसलिए संभव हो सका था क्योंकि केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का भारी स्टॉक मौजूद था। लेकिन अब यह स्थिति नहीं है।
भारतीय खाद्य निगम के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, केंद्रीय पूल में गेहूं और चावल का 711.04 लाख टन का स्टॉक है, जो 1 जुलाई, 2018 के बाद से पांच साल में सबसे कम है। इसमें गेहूं की मात्रा 301.45 लाख टन और चावल की मात्रा 409.59 लाख टन है। यही वजह है कि खरीफ सीजन के उत्पादन को लेकर आशंकित केंद्र सरकार ने कर्नाटक को अन्न भाग्य योजना में मुफ्त वितरित होने वाले पांच किलो चावल के लिए केंद्रीय पूल से चावल देने से इनकार कर दिया है। यही नहीं भारतीय खाद्य निगम की ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस) के तहत गेहूं और चावल खरीदने के लिए राज्यों के बोली लगाने पर भी रोक लगा दी है।
अहम बात यह है कि केंद्र सरकार द्वारा अप्रैल 2020 से दिसंबर 2022 की अवधि में केंद्रीय पूल से पांच किलो अतिरिक्त खाद्यान्न मुफ्त देने के चलते प्रति व्यक्ति दस किलो खाद्यान्न दिया गया। इसके साथ ही भारत ने पिछले तीन साल में गेहूं और चावल का भारी निर्यात किया। लेकिन पिछले साल गेहूं के उत्पादन में कमी और घरेलू बाजार में दाम बढ़ने के चलते सरकार ने मई 2022 में गेहं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था जो अभी तक जारी है। यही नहीं केंद्र सरकार ने 12 जून, 2023 को गेहूं के स्टॉक पर 31 मार्च, 2024 तक के लिए स्टॉक लिमिट भी लागू कर दी ताकि कीमतों को नियंत्रित रखा जा सके। वहीं चावल के मामले में सरकार ने पिछले साल जहां पहले ब्रोकन राइस के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया, वहीं गैर-सेला और गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 20 फीसदी का निर्यात शुल्क भी लगा रखा है।
मौजूदा स्थिति को देखते हुए इस बात के कयास लगाये जा रहे हैं कि सरकार गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा सकती है। इसकी वजह जहां घरेलू बाजार में चावल की कीमतों में वृद्धि को माना जा रहा है, वहीं खरीफ सीजन में चावल उत्पादन को लेकर पैदा हो रही आशंका को एक वजह के रूप में देखा जा रहा है।
अप्रैल 2020 से दिसंबर 2022 के बीच लाभार्थियों को दस किलो प्रति व्यक्ति प्रति माह गेहूं और चावल देने के चलते केंद्रीय पूल से 2020-21 में 929 लाख टन, 2021-22 में 1056 लाख टन और 2022-23 में 927 लाख टन खाद्यान्न का उठाव हुआ। जबकि 2013-14 में एनएफएसए लागू होने के बाद के सात साल में औसतन 625 लाख टन खाद्यान्न का केंद्रीय पूल से उठाव हुआ था।
इसके अलावा 2020-21 से तीन साल तक देश के खाद्यान्नों का सबसे अधिक निर्यात भी हुआ। इसमें 2021-22 में 9.66 अरब डॉलर के 212 लाख टन चावल का निर्यात हुआ, वहीं 2022-23 में 11.14 अरब डॉलर के 223 लाख टन चावल का निर्यात हुआ। वहीं 2021-22 में 2.12 अरब डॉलर के 72 लाख टन गेहूं का निर्यात हुआ, जबकि 2022-23 में 1.52 अरब डॉलर के 47 लाख टन गेहूं का निर्यात हुआ।
भारत से गेहूं और चावल का निर्यात (लाख टन में)
साल (अप्रैल से मार्च) |
गैर बासमती |
बासमती |
कुल चावल |
गेहूं |
|
2012-13 |
66.88 |
34.60 |
101.48 |
65.15 |
|
2013-14 |
71.48 |
37.54 |
109.03 |
55.72 |
|
2014-15 |
82.26 |
37.02 |
119.28 |
29.15 |
|
2015-16 |
63.74 |
40.45 |
104.19 |
6.14 |
|
2016-17 |
68.13 |
40.00 |
108.13 |
2.62 |
|
2017-18 |
86.33 |
40.52 |
126.85 |
2.30 |
|
2018-19 |
75.34 |
44.15 |
119.49 |
1.83 |
|
2019-20 |
50.36 |
44.55 |
94.91 |
2.17 |
|
2020-21 |
130.88 |
46.32 |
177.19 |
20.86 |
|
2021-22 |
172.61 |
39.48 |
212.09 |
72.35 |
|
2022-23 |
177.87 |
45.61 |
223.47 |
46.93 |
|
स्रोतः केंद्रीय वाणिज्य विभाग
अब वैसी स्थिति नहीं है क्योंकि सरकार के पास केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का वैसा स्टॉक नहीं है। यही वजह है कि चावल नहीं मिलने की स्थिति में कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने चुनावी वादे के तहत अन्न भाग्य योजना के तहत बीपीएल लाभार्थियों को पांच किलो चावल की बजाय 34 रुपये प्रति किलो की कीमत के हिसाब से 170 रुपये प्रति माह का नकदी देने का फैसला किया है। वैसे भी अगर केंद्र सरकार चाहती भी तो वह अभी राज्यों को मुफ्त अनाज के चुनावी वादों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त खाद्यान्न नहीं दे सकती है। बात केवल कांग्रेस की राज्य सरकार की ही नहीं है, बल्कि वह बाकी राज्यों में यहां तक कि भाजपा की राज्य सरकारों के लिए भी ऐसी योजनाओं लिए अतिरिक्त खाद्यान्न देने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में देश में पहली बार परिस्थितिवश राज्य स्तर पर मुफ्त राशन के लिए एक बड़ी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजना शुरू हो गई है।
इसके पीछे की वजह केंद्रीय पूल में खाद्यान्न के स्टॉक पर नजर डालें तो स्थिति साफ होती है। 1 जुलाई, 2023 को केंद्रीय पूल में गेहूं और चावल का कुल स्टॉक 2018 के बाद से पांच साल के सबसे कम स्तर पर है। ऐसे में सरकार का दायित्व बनता है कि वह किसी भी मौसमी बदलाव के चलते पैदा होने वाली मुश्किल स्थिति के लिए इस स्टॉक का सावधानी पूर्वक इस्तेमाल करे। यही वजह है कि केंद्र सरकार इस मामले में काफी सावधानी बरत रही है।
केंद्रीय पूल में 1 जुलाई को खाद्यान्न स्टॉक (लाख टन में)
साल |
गेहूं |
चावल** |
कुल खाद्यान्न |
2013 |
423.97 |
315.08 |
739.05 |
2014 |
398.01 |
276.60 |
674.61 |
2015 |
386.80 |
216.71 |
603.51 |
2016 |
301.81 |
246.69 |
548.50 |
2017 |
322.75 |
264.68 |
587.43 |
2018 |
418.01 |
275.57 |
693.58 |
2019 |
458.31 |
354.63 |
812.94 |
2020 |
549.91 |
394.31 |
944.22 |
2021 |
603.56 |
491.10 |
1094.66 |
2022 |
285.10 |
472.18 |
757.28 |
2023 |
301.45 |
409.59 |
711.04 |
बफर मानक* |
275.80 |
135.40 |
411.20 |
*1 जुलाई को केंद्रीय पूल में न्यूनतम खाद्यान्न स्टॉक के मानक
** चावल और चावल के अनुपात में बिना मिलिंग किया गया धान
स्रोत: भारतीय खाद्य निगम
हालांकि केंद्रीय पूल में जो खाद्यान्न स्टॉक है वह जरूरत के हिसाब से काफी है लेकिन असल चिंता चालू खरीफ सीजन में चावल के उत्पादन की है। जहां इस साल राजनीतिक रूप से कई महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहीं साल 2024 के अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में सरकार नहीं चाहेगी कि गेहूं और चावल जैसे खाद्यान्नों की कीमतों में वृद्धि चुनावी मुद्दा बने। इसलिए वह मानसून की स्थिति और धान की फसल की स्थिति पर बारीकी से नजर रखे हुए है। जैसा कि उपर कहा गया है कि जहां कई उत्तरी राज्य भारी बारिश के चलते बाढ़ की स्थिति का सामना कर रहे हैं। वहीं बड़े चावल उत्पादक राज्यों में बारिश का स्तर सामान्य से कम है।
16 जुलाई तक दीर्घकालिक औसत के आधार पर तेलंगाना में बारिश 24.2 फीसदी कम है, वहीं आंध्र प्रदेश में यह 16.1 फीसदी कम और छत्तीसगढ़ में 21 फीसदी कम बनी हुई है। जबकि ओडिशा में सामान्य से 23.1 फीसदी कम, झारखंड में 41.4 फीसदी कम, बिहार में 32.3 फीसदी कम और पश्चिम बंगाल में 37.2 फीसदी कम बारिश हुई है। असल में इस साल अल नीनो का प्रभाव अधिक है। यही वजह है कि उक्त राज्यों में कम बारिश होना अल नीनों का असर माना जा सकता है। उत्तर और उत्तर पश्चिम राज्यों में राजस्थान और गुजरात में जहां पहले बिपरजॉय तूफान और उसके बाद पश्चिमी विक्षोभ और मानसून की जुगलबंदी के चलते भारी बारिश हुई है।
प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में बारिश में कमी के चलते ही खरीफ सीजन के 399.5 लाख हेक्टेयर के सामान्य क्षेत्रफल के मुकाबले 14 जुलाई, 2023 तक धान का रकबा केवल 123.18 लाख हेक्टेयर तक ही पहुंचा है जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले करीब 10 फीसदी कम है। इस स्थिति का असर चावल के निर्यात पर भी पड़ सकता है। जून के माह में खाद्यान्न महंगाई दर 12.7 फीसदी रही है। इसके लिए चावल और और गेहूं के घरेलू दामों में बढ़ोतरी मुख्य वजह है। वहीं वैश्विक बाजार में चावल की कीमतों में बढ़ोतरी का रुख है।
संयुक्त राष्ट्र के फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन (एफएओ) के खाद्यान्न महंगाई सूचकांक में चावल का मूल्य सूचकांक जून में 126.2 के स्तर पर पहुंच गया जो एक साल पहले के मुकाबले 13.9 फीसदी अधिक है। यही नहीं भारत से निर्यात होने वाले सेला चावल के लिए 421 से 428 डॉलर प्रति टन की कीमत मिल रही जो अप्रैल 2018 के बाद का उच्चतम स्तर है। वहीं अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के मुताबिक 2022-23 में 40.4 फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश रहा।
हालांकि, गेहूं के मामले में स्थिति वैश्विक बाजार में बेहतर है और रूस व यूक्रेन की भारी आपूर्ति के चलते गेहूं की कीमतें काफी कम हो गई हैं। ऐसे में अगर भारत को कीमतों पर नियंत्रण लिए गेहूं आयात करना पड़े तो यह बहुत महंगा नहीं पड़ेगा लेकिन चावल के मामले में ऐसा नहीं है। वैसे भी अगर दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश आयात करने की स्थिति में आता है तो यह वैश्विक कीमतों में भारी तेजी की स्थिति पैदा कर सकता है।
वैश्विक बाजार में जहां गेहूं के निर्यातक देशों की संख्या काफी अधिक है लेकिन चावल के मामले में ऐसा नहीं है। ऐसे में सरकार के पास खाद्यान्न को लेकर विकल्प काफी सीमित हो गये हैं। इसलिए अब राजनीतिक फायदे के लिए खाद्यान्न की बजाय राज्य व केंद्र सरकार के स्तर पर लाभार्थियों को नकदी का विकल्प अधिक व्यावहारिक है।