चालू रबी सीजन में डाइ अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) और कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की उपलब्धता के संकट से सबक लेते हुए सरकार ने डीएपी की आपूर्ति को बेहतर करने के लिए देश में इसकी उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी और आयात सौदों की दीर्घकालिक रणनीति तैयार की है। वैश्विक बाजार में डीएपी और कॉम्प्लेक्स उर्वरकों व उनके कच्चे माल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी के बीच चीन ने निर्यात पर प्रतिबंध लगातार भारत की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। चालू सीजन में पैदा हुई उपलब्धता की दिक्कत जैसी परिस्थिति से बचने के लिए सरकार ने आयात के लिए घरेलू कंपनियों द्वारा दीर्घकालिक आयात सौदे करने और देश में डीएपी उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी की इस रणनीति पर अमल शुरू कर दिया है। उर्वरक मंत्रालय के एक उच्च अधिकारी ने रूरल वॉयस के साथ एक बातचीत में यह जानकारी दी।
उक्त अधिकारी के मुताबिक इस रणनीति के तहत जहां रूस और सउदी अरब स्थित कंपनियों के साथ डीएपी आयात के दीर्घकालिक समझौते किये गये हैं। वहीं द फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावनकोर लिमिटेड (फैक्ट) और राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स (आरसीएफ) जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की उर्वरक कंपनियों में डीएपी उत्पादन क्षमता स्थापित की जा रही है।
उर्वरक मंत्रालय के इस अधिकारी ने रूरल वॉयल को बताया कि आरसीएफ के थाल स्थित परिसर में 900 करोड़ रुपये की लागत से तीन लाख टन सालाना डीएपी की उत्पादन क्षमता का संयंत्र स्थापित किया जा रहा है। वहीं कोच्चि के पास उद्योगमंडल स्थित फैक्ट के संयंत्र में भी तीन लाख टन सालाना डीएपी उत्पादन क्षमता स्थापित की जा रही है। सरकारी कंपनियों के अलावा मध्य प्रदेश के मेदनगर स्थित मध्य भारत फर्टिलाइजर्स कंपनी भी एक लाख टन सालाना डीएपी उत्पादन क्षमता स्थापित कर रही है। यह कंपनी सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) का उत्पादन करती है। वहीं नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (एनएफएल) भी डीएपी और एनपीके की पांच लाख टन की सालाना उत्पादन क्षमता स्थापित कर रही है।
विदेशी कंपनियों के साथ डीएपी के आयात सौदों के तहत सउदी अरब स्थित सेबिक फर्टिलाइजर्स और माडेन फॉस्फोरस के साथ एनएफएल ने डीएपी की दीर्घकालिक आपूर्ति का सौदा किया है। इसके अलावा रूस की कंपनी फॉसएग्रो के साथ पांच साल में दस लाख टन डीएपी आयात का दीर्घकालिक समझौता किया गया है। घरेलू उर्वरक उत्पादक कृभको, फैक्ट, आरसीएफ और एनएफएल ने यह समझौता किया है। इसके तहत लगभग ढाई लाख टन डीएपी का सालाना आयात इन कंपनियों के द्वारा किया जाएगा। वहां से डीएपी की पहली सप्लाई जनवरी, 2022 में शुरू हो जाएगी। रूस से डीएपी के भारत पहुंचने में औसतन 40 दिन का समय लगता है।
उक्त अधिकारी का कहना है कि इस साल चीन द्वारा डीएपी का निर्यात बंद कर देने और कुछ दूसरे कारणों के चलते आपूर्ति प्रभावित हुई है। चीन दुनिया के सबसे बड़े डीएपी निर्यातक देशों में से है और भारत वहां से हर साल करीब 30 लाख टन डीएपी का आयात करता रहा है। वहीं विनियंत्रित उर्वरकों के कच्चे माल और तैयार उर्वरकों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई है। इनके चलते घरेलू स्तर पर उर्वरकों की उपलब्धता का संकट बना। इस परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए ही डीएपी और उसके कच्चे माल की आपूर्ति के लिए दीर्घकालिक आयात सौदों की रणनीति अपनाई गई है ताकि भविष्य में किसी तरह की मुश्किल परिस्थिति के चलते आपूर्ति का संकट पैदा न हो।
इसके साथ ही सरकार डीएपी पर निर्भरता को कम करने के लिए उर्वरकों के उपयोग के पैटर्न में बदलाव पर भी काम कर रही है। सरकार चाहती है कम फॉस्फेट मात्रा वाले कॉम्प्लेक्स उर्वरकों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए। सरकार ने इसी माह मोलेसेस आधारित पोटाश को भी न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) में शामिल करने की घोषणा की है। इसके साथ ही सरकार की कोशिश सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) को बढ़ावा देने की है। लेकिन एसएसपी की गुणवत्ता को लेकर किसानों में भरोसा कम है क्योंकि इसका अधिकांश उत्पादन छोटी कंपनियां करती हैं।
इस सबके बीच लगता है कि सरकार ने रबी सीजन में पैदा संकट से सबक लिया है और वह चाहती है कि आगामी खरीफ सीजन से पहले ही देश में डीएपी का जरूरी स्टॉक बना लिया जाए। इससे किसानों के सामने इस महत्वपूर्ण उर्वरक की उपलब्धता का संकट पैदा नहीं होगा।