तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने लिए लाये गये विधेयक द फार्म लॉज रिपील बिल, 2021 को लोक सभा ने पारित कर दिया। इन तीन कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी के लिए किसान पिछले एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को गुरू पर्व के मौके पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए इन कानूनों को रद्द करने की घोषणा की थी। उसके बाद 24 नवंबर को कैबिनेट ने इससे संबंधित विधेयक मंजूरी दे दी थी। आज संसद के शीतकालीन सत्र का पहला दिन है और उसमें सरकार ने द फार्म लॉज रिपील विधेयक, 2021 पेश किया, जिसे भारी हंगामे के बीच पारित कर दिया गया। लोक सभा में यह विधेयक मात्र चार मिनट में ही पारित कर दिये गये।
पांच जून, 2020 को अध्यादेशों के जरिये सरकार तीन नये कृषि कानून लेकर आई थी। द फार्मर्स प्रॉडयूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) एक्ट, 2020, फार्मर्स (इंपावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्यूरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020 और आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) कानून, 2020 के नाम से यह कानून लाये गये थे। इनमें पहले दो कानून नये थे और तीसरे कानून में कई बड़े बदलाव कर इसे अधिक उदार बनाया गया था।
सरकार द्वारा लाये गये इन तीन कानूनों के बाद से देश भर में किसान आंदोलन कर रहे हैं। किसानों ने कानूनों को रद्द करने और एमएसपी को कानूनी गारंटी देने की मांग को प्रमुख मुद्दा बना रखा है। प्रधानमंत्री ने कानूनों को रद्द करने की घोषणा के साथ ही किसानों को आंदोलन समाप्त कर घर लौटने की अपील की थी। आज लोक सभा में कानूनों को निरस्त करने से संबंधित विधेयक पारित हो गया है और उम्मीद है कि आज ही राज्य सभा भी इसे पारित कर देगी। राज्य सभा में यह विधेयक दोपहर दो बजे पेश किये जाने की बात संसदीय कार्य मंत्री ने कही है।
कानूनों को रद्द करने की महत्वपूर्ण मांग माने जाने के बाद भी किसान आंदोलनरत हैं। उन्होंने आज का ट्रैक्टर मार्च स्थगित कर दिया था और अब 4 दिसंबर की बैठक में किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा में आगे की रणनीति पर फैसला लिया जाएगा। किसानों का कहना है कि वह एमएसपी को कानूनी गारंटी और दूसरी पांच मांगों पर सरकार के साथ वार्ता करना चाहते हैं। इसलिए अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार किसानों को बातचीत के लिए बुलाती है या नहीं है। पांच राज्यों की विधान सभाओं के लिए अगले कुछ महीनों में चुनाव होने हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड प्रमुख हैं। इसलिए केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार नहीं चाहती कि किसानों के आंदोलन के चलते उसे कोई बड़ा राजनीतिक नुकसान हो।