प्याज ने हर किसी को रुलाया है, चाहे वह किसान हों या उपभोक्ता - सभी ने इसका अनुभव किया है। यहां तक कि सरकारों को भी इसका खमियाजा भुगतना पड़ा है, खासकर अगर संकट चुनावों के आसपास हुआ हो। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि दुनिया भर में प्याज की मांग और आपूर्ति के कारण कीमतों में उतार-चढ़ाव का एक लंबा इतिहास रहा है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, अगले महीने सितंबर की शुरुआत में आपूर्ति में संभावित कमी के चलते प्याज की खुदरा कीमत 60-70 रुपये प्रति किलो तक पहुंच सकती है। इस समय खुदरा बाजार में प्याज 25-30 रुपये किलो मिल रहा है।
क्रिसिल की रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल सितंबर की बजाय अगस्त के अंत तक खुले बाजार में रबी स्टॉक में काफी गिरावट आने की उम्मीद है। इससे प्याज की कम उपलब्धता का समय 15-20 दिन बढ़ जाएगा जिससे बाजार में आपूर्ति में कमी और कीमतें बढ़ने की संभावना है। रिपोर्ट में इसके लिए असामान्य मौसम की स्थिति को जिम्मेदार ठहराया गया है। क्रिसिल ने कहा है कि प्याज उत्पादन क्षेत्रों में इस साल मार्च में बेमौसम बारिश की वजह से फसल की गुणवत्ता प्रभावित हुई। इससे रबी के प्याज की जीवन अवधि 6 महीने से घटकर 4-5 महीने रह गई जिससे भंडारण संबंधी चिंताएं बढ़ गईं और किसानों ने घबराहट में बिक्री शुरू कर दी।
रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी महीने में ज्यादा तापमान के कारण प्रमुख उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र (कुल उत्पादन का 49 फीसदी), मध्य प्रदेश (22 फीसदी) और राजस्थान (6 फीसदी) में रबी की प्याज जल्दी पक गई जिसकी वजह से इसकी कटाई जल्दी हो गई। रबी की प्याज आम तौर पर मार्च में बाजार में आती है। जल्दी कटाई की वजह से फरवरी में ही यह बाजार में उपलब्ध हो गई। आमतौर पर फरवरी में खरीफ सीजन की देर से बोई गई फसल की आपूर्ति होती है। मगर इस बार खरीफ और रबी दोनों की फसल फरवरी में एक साथ बाजार में आने से दाम में भारी गिरावट देखी गई जिससे किसानों को काफी नुकसान हुआ। रबी का स्टॉक आमतौर पर सितंबर के अंत तक की मांग को पूरा करने के लिए रखा जाता है। इसके बाद की मांग को खरीफ की फसल द्वारा पूरा किया जाता है। कुल प्याज उत्पादन में रबी सीजन के प्याज की हिस्सेदारी 70 फीसदी है।
क्रिसिल ने कहा है कि रबी प्याज की कम जीवन अवधि और फरवरी-मार्च में घबराहट के कारण बिक्री की वजह से अगस्त के अंत में आपूर्ति एवं मांग में असंतुलन से प्याज की कीमतों में वृद्धि दिखाई देने की उम्मीद है। लेकिन आशा की एक किरण यह भी है कि अक्टूबर में खरीफ फसल की आवक शुरू होने पर प्याज की आपूर्ति में सुधार होना चाहिए जिससे कीमतों में कमी आएगी। हालांकि, क्रिसिल ने कहा है कि रबी सीजन में प्याज की कम कीमत ने किसानों में खरीफ की बुवाई को लेकर निराशा भर दी है। इसकी वजह से इस साल खरीफ सीजन में प्याज की बुवाई का रकबा 8 फीसदी घटने और उत्पादन 5 फीसदी कम होने की आशंका है।
हालांकि, रिपोर्ट में उत्पादन में बड़ी गिरावट की आशंका नहीं जताई गई है क्योंकि सालाना उत्पादन 2.90 करोड़ टन होने का अनुमान है जो पिछले पांच वर्षों (2018-22) के औसत से 7 फीसदी अधिक है। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब टमाटर की कीमतें 250 रुपये प्रति किलो के पार पहुंच गई हैं।
अभी हाल ही में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कृषि मंत्रालय से कीमतों में किसी भी संभावित बढ़ोतरी से बचने के लिए त्योहारी मौसम के दौरान खरीफ की प्याज को अधिक प्रोत्साहन देने के लिए कहा था। आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर में प्याज की कीमतें बढ़ जाती हैं क्योंकि रबी सीजन का प्याज खत्म हो जाता है और खरीफ सीजन के प्याज का भंडारण ज्यादा समय के लिए नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसकी जीवन अवधि एक-डेढ़ महीने से ज्यादा नहीं होती है।
उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने कहा कि सर्दियों में त्योहारी अवधि के दौरान खरीफ प्याज महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उस दौरान उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए हमने कृषि मंत्रालय से खरीफ प्याज को और अधिक प्रोत्साहन देने का अनुरोध किया है। चालू कैलेंडर वर्ष में देश का प्याज उत्पादन 319 लाख टन होने का अनुमान है जो पिछले वर्ष के 324 लाख टन से थोड़ा कम है।
प्याज का उत्पादन तीन मौसमों में होता है - रबी, खरीफ और खरीफ में देर से की गई बुवाई। 219 लाख टन रबी की फसल पहले ही आ चुकी है। बाकी 100 लाख टन खरीफ और देर से बोई गई वैरायटी से आएगी जो सर्दियों के मौसम में प्याज की मांग को पूरा करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने बफर स्टॉक के लिए 3 लाख टन प्याज की खरीद की है। उन्होंने कहा कि जैसे ही पूरे कैलेंडर वर्ष में प्याज की उपलब्धता सुनिश्चित हो जाएगी कीमतें गिर जाएंगी। यदि उत्पादन को भंडारण से जोड़ दिया जाए तो कीमतों में बढ़ोतरी से बचा जा सकता है।
प्याज कारोबारियों का मानना है कि संभावित मांग और आपूर्ति के अंतर को देखते हुए कीमतों पर नियंत्रण के लिए एनसीसीएफ, एमएमटीसी और नेफेड जैसी सरकारी खरीद एजेंसियां किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) और क्लस्टर-आधारित व्यापार संगठनों के साथ मिलकर 3-4 लाख टन प्याज का स्टॉक बाजार में जारी कर सकती हैं। हालांकि, खरीफ की लेट वैरायटी के बाजार में आने तक कीमतें हर साल की तरह ऊंची बनी रह सकती है।