उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों द्वारा गन्ना किसानों को देरी से भुगतान पर ब्याज देने की स्थिति साफ होती जा रही है। इसके लिए राज्य सरकार ने चार पेराई सीजन में 2889.64 करोड़ रुपये के ब्याज भुगतान का आकलन किया है। भुगतान की प्रक्रिया के लिए उसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय से एक सप्ताह का समय मांगा है। उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के समक्ष एक अक्तूबर को हुई सुनवाई में राज्य सरकार के शुगरकेन डेवलपमेंट सचिव और गन्ना आयुक्त की ओर से प्रस्तुत एफिडेविट में चीनी मिलों पर किसानों को गन्ना मूल्य भुगतान में देरी के चलते मिलों पर बकाया ब्याज की राशि का आकलन पेश किया गया है।
उच्च न्यायालय में किसानों की ओर से याचिका दायर करने वाले किसान मजदूर संगठन के समन्वयक वी एम सिंह ने रूरल वॉयस को बताया कि कुल ब्याज की राशि 15 हजार करोड़ रुपये को पार कर जाएगी। अभी इसका आकलन किया जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय में दिये गये एफिडेविट में दी गई राशि के आधार पर 2015-16, 2018-19, 2019-20 और 2020-21 पेराई सीजन की राशि 2889.68 करोड़ रुपये बन रही है। एफिडेविट में 2015-16 से 2023-24 तक के पेराई सीजन में गन्ना मूल्य भुगतान में देरी के चलते बनने वाले ब्याज की देनदारी का ब्यौरा देते हुए कहा गया है कि 2015-16, 2018-19, 2019-20 और 2020-21 की ब्याज देनदारी की राशि लगभग अंतिम है। बाकी के वर्षों में भुगतान की प्रक्रिया के चलते एफिडेविट में दी गई राशि सांकेतिक है और उसके सही आकलन का काम चल रहा है।
वीएम सिंह का कहना है कि कुल ब्याज देनदारी 15 हजार करोड़ रुपये के करीब पहुंच जाएगी। जिन चार साल की ब्याज देनदारी का आकलन लगभग अंतिम है उनके भुगतान पर राज्य सरकार ने जवाब देने के लिए उच्च न्यायालय से समय मांगा है।
असल में चीनी मिलों द्वारा उत्तर प्रदेश में गन्ना भुगतान में देरी होना सामान्य बात रही है। अभी भी कुछ चीनी मिलें ऐसी हैं जिन्होंने दो साल पहले का भुगतान भी पूरा नहीं किया है। चीनी की बेहतर कीमतों और एथेनॉल उत्पादन से होने वाली कमाई के चलते पिछले दो साल में समय पर भुगतान करने वाली चीनी मिलों की संख्या काफी अधिक रही है।
उच्च न्यायालय में गन्ना मूल्य भुगतान में देरी पर ब्याज के मामलों के आगे बढ़ने के चलते चीनी मिलों पर किसानों को समय से भुगतान देने का दबाव बढ़ेगा। राज्य में केवल निजी चीनी मिलें ही देरी से भुगतान नहीं कर रही हैं, बल्कि सरकारी और सहकारी चीनी मिलों द्वारा भी गन्ना आपूर्ति के 14 दिन की तय अवधि के दौरान किसानों को गन्ना मूल्य का भुगतान करने की बजाय देरी से भुगतान करना सामान्य बात रही है। इस मामले में 2006 से जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है।