मानसून की बेरुखी का असर खरीफ की प्रमुख फसलों की बुवाई पर साफ दिखने लगा है। इसकी वजह से धान की बुवाई का रकबा 26 फीसदी घट गया है। जबकि दालों की कुल बुवाई के रकबे में भले ही 2 फीसदी की कमी आई है लेकिन सबसे ज्यादा कमी अरहर की बुवाई में आई है। अरहर का रकबा 79.44 फीसदी घट गया है। मूंगफली के रकबे में बढ़ोतरी की वजह से तिलहन बुवाई के कुल रकबे में तो वृद्धि दर्ज की गई है लेकिन सोयाबीन का रकबा 17.23 फीसदी और सूरजमुखी का रकबा 65.78 फीसदी घट गया है। खरीफ के मक्के की बुवाई 24.29 फीसदी और कपास की बुवाई 14 फीसदी घटी है। कम बुवाई का असर खरीफ फसलों के उत्पादन पर पड़ेगा जिससे खाद्य महंगाई भड़कने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
भारत मौसम विभाग (आईएमडी) के 29 जून तक के आंकड़ों के मुताबिक देशभर में मानसून की बारिश सामान्य से 13 फीसदी कम रही है। वैसे भी इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून एक हफ्ते की देरी से 8 जून को आया था। उसके बाद बिपरजॉय चक्रवात की वजह से यह कमजोर बना रहा। आईएमडी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत में मानसून की बारिश सामान्य से 20 फीसदी कम रही है। इस इलाके में सबसे खराब स्थित बिहार और झारखंड की है जहां सामान्य से क्रमशः 69 फीसदी और 47 फीसदी कम बारिश हुई है। पिछले साल की तरह इस साल भी बिहार सूखे की तरफ बढ़ता जा रहा है।
ताजा आंकड़ों में आईएमडी ने बताया है कि मध्य भारत में सामान्य से 12 फीसदी और दक्षिण प्रायद्वीपीय भारत में 45 फीसदी कम बारिश हुई है। उत्तर पश्चिम भारत ही ऐसा है जहां सामान्य से 40 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में सामान्य से 58 फीसदी और उत्तराखंड में सामान्य से 20 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है। जबकि पश्चिमी राजस्थान में सामान्य से 298 फीसदी और पूर्वी राजस्थान में सामान्य से 114 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है।
दूसरी तरफ, कृषि मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को जारी खरीफ बुवाई के आंकड़ों में बताया गया है कि 30 जून तक खरीफ की प्रमुख फसल धान की बुवाई का रकबा घटकर 26.55 लाख हेक्टेयर रह गया है। पिछले साल इसी अवधि में यह 36.05 लाख हेक्टेयर था। इसी तरह, दलहन की कुल बुवाई का रकबा पिछले साल के 18.51 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 18.15 लाख हेक्टेयर रह गया है। दलहन फसलों के रकबे में सबसे ज्यादा गिरावट अरहर में आई है। अरहर का रकबा पिछले साल के 5.40 लाख हेक्टेयर के मुकाबले सिर्फ 1.11 लाख हेक्टेयर रह गया है। वहीं उड़द का रकबा बढ़कर 1.72 लाख हेक्टेयर हो गया है जो पिछले साल 1.61 लाख हेक्टेयर था। मूंग के रकबा 8.73 लाख हेक्टेयर की तुलना में बढ़कर 11.23 लाख हेक्टेयर हो गया है। अन्य दालों का रकबा 2.47 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 4 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है।
आंकड़ों के मुताबिक, खरीफ की एक अन्य प्रमुख फसल मक्का की बुवाई का रकबा 24.29 फीसदी घटकर 8.10 लाख हेक्टेयर रह गया है। पिछले साल 30 जून तक 10.70 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हुई थी। इसी तरह, कपास की बुवाई का रकबा 47.04 लाख हेक्टेयर से घटकर 40.49 लाख हेक्टेयर रह गया है। हालांकि, गन्ने की बुवाई का रकबा 52.92 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 54.40 लाख हेक्टेयर हो गया है।
जहां तक तिलहन फसलों की बात है तो इनकी बुवाई का कुल रकबा 18.81 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 21.55 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है। मूंगफली के रकबे में सबसे ज्यादा वृद्धि की वजह से तिलहन का कुल रकबा बढ़ा है। मूंगफली का रकबा 11.74 लाख हेक्टेयर की तुलना में इस साल समीक्षाधीन अवधि तक बढ़कर 15.77 लाख हेक्टेयर हो गया है। मगर सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति सूरजमुखी और सोयाबीन की है। सूरजमुखी का रकबा 76 हजार हेक्टेयर से घटकर सिर्फ 26 हजार हेक्टेयर रह गया है। वहीं सोयाबीन का रकबा 5.57 लाख हेक्टेयर की तुलना में 4.61 लाख हेक्टेयर पर आ गया है।