निर्यात मूल्यों के आधार पर विश्व खाद्यान्न बाजार में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2022 में 7.79 फीसदी रही। पिछले पांच वर्षों के दौरान देश से निर्यात होने वाली शीर्ष 10 कृषि जिंसों और भारत के कृषि उत्पादों के शीर्ष 10 आयातक देशों के आधिकारिक ब्यौरे में यह बात सामने आई है।
भारत के खाद्यान्न निर्यात में पिछले कुछ वर्षों में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है। संयुक्त राष्ट्र कॉमट्रेड के आंकड़ों के अनुसार, विश्व खाद्यान्न निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 2010 में 3.38 फीसदी थी जो 2022 में बढ़कर 7.79 फीसदी पर पहुंच गई है। सरकार ने खाद्यान्न सहित कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए राज्य/जिला स्तर पर कई कदम उठाए हैं। इसी का नतीजा है कि खाद्यान्न निर्यात बाजार में भारत की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी हुई है।
कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए राज्यों के स्तर पर कार्य योजनाएं तैयार की गई हैं और कई राज्यों में राज्य स्तरीय निगरानी समितियां (एसएलएमसी), नोडल एजेंसियां और क्लस्टर स्तरीय समितियां बनाई गई हैं। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए देश और उत्पाद-विशिष्ट कार्य योजनाएं भी बनाई गई हैं। वाणिज्य विभाग के तहत निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) एक वैधानिक निकाय है। यह खाद्यान्न सहित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यातकों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एपीडा खरीदारों और विक्रेताओं की बैठकें (बीएसएम) आयोजित करने सहित अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों और प्रदर्शनियों में भागीदारी करता है। साथ ही आयातक देशों के साथ व्यापार में तकनीकी बाधाएं (टीबीटी) दूर करने, बाजार पहुंच के मुद्दे उठाने के अलावा विभिन्न देशों में निर्यात के अवसर तलाशता रहता है। इसके अलावा, एपीडा की ओर से चावल और पोषक अनाज के लिए निर्यात संवर्द्धन मंच (ईपीएफ) की स्थापना की गई है। ईपीएफ इन उत्पादों के उत्पादन और निर्यात से संबंधित विकास की पहचान करने और पूर्वानुमान लगाने, निर्यात की संपूर्ण उत्पादन/आपूर्ति श्रृंखला में हितधारकों तक पहुंचने और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक नीतिगत हस्तक्षेप और अन्य उपायों के लिए सिफारिशें करने का प्रयास करता है।
कृषि और संबंधित उत्पादों के उत्पादन और मार्केटिंग में सामूहिक अर्थव्यवस्थाओं का लाभ उठाने के उद्देश्य से किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) की स्थापना की गई है। इससे उत्पादन की औसत लागत कम करने में मदद मिलती है जिससे विदेशी बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता बढ़ती है।