विदेशों से आयात होने वाले सेब के चलते भारतीय सेब उद्योग काफी चुनौतियों का सामना कर रहा है। साल दर साल भारतीय सेब उद्योग की लाली फीकी पड़ रही है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत में विदेशी सेबों का आयात वित्त वर्ष 2023-24 में 33.98 फीसदी बढ़ गया। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में वित्त वर्ष 2023-24 में 5.1 लाख टन सेबों का आयात हुआ, जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में यह 3.7 लाख टन था।
ईरान से आयात होता है सबसे ज्यादा सेब
भारत में सबसे ज्यादा सेब का आयात ईरान, तुर्की, इटली, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड और अमेरिका से होता है। पिछले कुछ वर्षों में इन देशों से आयात होने वाले सेब में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में ईरान से 1.37 लाख टन सेब का आयात हुआ, जो वित्त वर्ष 2022-23 के 80,346 टन के मुकाबले 71.77 फीसदी अधिक रहा। इसी तरह तुर्की से सेब का आयात वित्त वर्ष 2023-24 में 9 फीसदी अधिक रहा। वित्त वर्ष 2023-24 में तुर्की से 1.17 लाख टन सेब का आयात हुआ, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 1.07 लाख टन था।
अफगानिस्तान से सेब का आयात 2400 फीसदी बढ़ा
पिछले कुछ वर्षों में अफगानिस्तान से भी सेब का आयात काफी तेजी से बढ़ा है। वित्त वर्ष 2022-23 में अफगानिस्तान से 1,508 टन सेब का आयात हुआ था, जो वित्त वर्ष 2023-24 में 2400 फीसदी बढ़कर 37,837 टन पहुंच गया। इसी तरह, वित्त वर्ष 2023-24 में पोलैंड से सेब का आयात 33,409 टन रहा, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 26,323 टन था। इसके अलावा, दक्षिण अफ्रीका से वित्त वर्ष 2023-24 में 27,738 टन सेब का आयात हुआ, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 19,256 टन था। अमेरिका से सेब का आयात वित्त वर्ष 2023-24 में 20,540 टन रहा, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 4,486 हजार टन था।
विदेशी सेब भारतीय सेब को कैसे दे रहे चुनौती
भारत में विदेश से जो सेब आयात होता है, उस पर अभी 50 फीसदी आयात शुल्क (इंपोर्ट ड्यूटी) लगता है, जो पहले 75 फीसदी था। केंद्र सरकार ने जून 2023 में यह शुल्क घटाकर 50 फीसदी कर दिया था, जिसे अब 100 फीसदी करने की मांग की जा रही है। हिमाचल प्रदेश फल एवं सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान ने रूरल वॉयस को बताया कि विदेश से आयात होने वाला सेब भारतीय सेब के मुकाबले सस्ता होता है। इस वजह से भारतीय सेब की डिमांड पर असर पड़ता है और दाम कम मिलते हैं। उन्होंने कहा कि बागवान लंबे समय से आयात शुल्क बढ़ाकर 100 फीसदी करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक यह मांग पूरी नहीं हुई है। इससे हर साल हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के लाखों बागवानों को नुकसान हो रहा है।
उन्होंने कहा कि सेब सीजन खत्म होने के बाद कई बागवान अपना सेब कोल्ड स्टोर में रखते हैं, ताकि बाद में अच्छी कीमत पर बेच सकें। लेकिन, विदेशी सेब सस्ता होने के चलते बागवानों को दाम नहीं मिलता और उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि भारतीय सेब की डिमांड घटने के चलते कोल्ड स्टोर में अभी तक पिछले साल का सेब बचा हुआ है। इसके चलते बाजार में हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के नए सेब की डिमांड कम है। उन्होंने कहा कि बीते सीजन का स्टोर में रखा सेब बागवानों के लिए चिंता का सबब बन गया है। वैसे ही इस साल हिमाचल में कम बारिश और फंगल बीमारियों के चलते सेब के उत्पादन पर असर पड़ा है। अगर स्थिति ऐसी ही रही, तो आने वाले दिनों सेब की डिमांड और घट सकती है। इससे बागवानों को और नुकसान उठाना पड़ सकता है।