भारत में कृषि क्षेत्र के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी की तत्काल आवश्यकता

हाल ही ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (TAAS) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में इस मुद्दे पर चर्चा की गई। इस कार्यक्रम के नतीजों को तास ने एक पॉलिसी ब्रीफ के रूप में जारी किया। “कृषि में सार्वजनिक-निजी भागीदारी: आगे का रास्ता” ब्रीफ में कहा गया है कि अगर कृषि को 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य में महत्वपूर्ण योगदान देना है, तो इस क्षेत्र में सालाना 4% से 5% वृद्धि दर को बनाए रखना होगा। इसे हासिल करने के लिए कई प्रमुख बाधाओं को पार करना भी आवश्यक होगा।

लंबे समय से देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाने वाला कृषि क्षेत्र एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। पैदावार में ठहराव, प्राकृतिक संसाधनों की कमी और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे ने भारतीय किसानों पर बड़ा प्रभाव डाला है। यह स्थिति न केवल किसानों की आय, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा उत्पन्न कर रही है। जैसे-जैसे देश की जनसंख्या बढ़ रही है और तरह-तरह के उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों की मांग में इजाफा हो रहा है, भारत की कृषि प्रणाली को लोगों की जरूरतें पूरी करने के लिए एक बदलाव की आवश्यकता महसूस हो रही है। इन चुनौतियों के मद्देनजर कृषि में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) की मांग तेजी से बढ़ रही है। यह भागीदारी एक रास्ता पेश करती है, इनोवेशन को बढ़ावा देने, कृषि निर्यात बढ़ाने और लाखों किसानों की आजीविका बेहतर करने की एक रूपरेखा प्रदान करती हैं।

हाल ही ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (TAAS) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में इस मुद्दे पर चर्चा की गई। इस कार्यक्रम के नतीजों को तास ने एक पॉलिसी ब्रीफ के रूप में जारी किया। “कृषि में सार्वजनिक-निजी भागीदारी: आगे का रास्ता” ब्रीफ में कहा गया है कि भारत का कृषि क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 17% का योगदान देता है और एक बड़ी आबादी को रोजगार प्रदान करता है। अगर कृषि को 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य में महत्वपूर्ण योगदान देना है, तो इस क्षेत्र में सालाना 4% से 5% वृद्धि दर को बनाए रखना होगा। इसे हासिल करने के लिए कई प्रमुख बाधाओं को पार करना भी आवश्यक होगा। इस पॉलिसी ब्रीफ का संपादन तास चेयरमैन डॉ. आर.एस. परोदा तथा अन्य ने किया है। 

पॉलिसी ब्रीफ में इन बाधाओं के बारे में बताते हुए कहा गया है कि तकनीकी प्रगति के बावजूद प्रमुख फसलों की पैदावार स्थिर हो गई है। इससे आपूर्ति और मांग के बीच अंतर बढ़ता जा रहा है। यह ठहराव न केवल खाद्य सुरक्षा बल्कि किसानों की आय के लिए भी खतरा बन गया है। इसके अलावा प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण भी एक बड़ी समस्या है। पानी के अत्यधिक दोहन, उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मिट्टी का क्षरण और जैव विविधता का नुकसान भारतीय कृषि के आधार को गंभीर रूप से कमजोर कर रहा है।

जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख समस्या है। बाढ़, सूखा और अनिश्चित मानसून जैसी चरम मौसम घटनाएं सामान्य हो गई हैं। इससे किसानों के लिए उत्पादन बनाए रखना कठिन होता जा रहा है। कृषि आय में गिरावट भी एक बड़ी चिंता है। बढ़ती लागत, अस्थिर बाजार और छोटी होती जोतों की वजह से किसानों की आय में कमी आ रही है। इस स्थिति ने ग्रामीण संकट को व्यापक बना दिया है और कृषि को आजीविका के रूप में अनिश्चित बना दिया है।

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए भारतीय कृषि को नई तकनीक और इनोवेशन को अपनाना होगा जो उत्पादकता बढ़ा सकें, संसाधनों का अधिक कुशलता से उपयोग कर सकें और जलवायु परिवर्तन के प्रति रोधी क्षमता मजबूत कर सकें। मार्कर-असिस्टेड सेलेक्शन (MAS), आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों और जीन संपादन जैसी तकनीकें फसल उत्पादन में वृद्धि कर सकती हैं और कीटों, बीमारियों और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकती हैं।

डिजिटल उपकरण और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) मौसम, मिट्टी की स्थिति और फसल स्वास्थ्य पर वास्तविक समय में डेटा प्रदान कर सकते हैं। इससे किसानों को बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलेगी और उनकी खेती की पद्धतियों को बेहतर किया जा सकेगा। जैव प्रौद्योगिकी से भी जलवायु-सहिष्णु और बायोफोर्टिफाइड फसलों का विकास किया जा सकता है, जो बदलते मौसम के कारण खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

पॉलिसी ब्रीफ में कहा गया है कि इन तकनीकों की पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिए भारत को कृषि अनुसंधान और इनोवेशन में निवेश बढ़ाना होगा। वर्तमान में, भारत अपनी कृषि जीडीपी का केवल 0.61% अनुसंधान पर खर्च करता है, जो वैश्विक औसत से काफी कम है। आईसीएआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च (NIAP) के हाल के अध्ययन से पता चलता है कि कृषि अनुसंधान में निवेश किए गए हर एक रुपये पर 13.85 रुपये का रिटर्न मिलता है। यह तथ्य इस क्षेत्र में निवेश की आवश्यकता को दर्शाता है।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) भारतीय कृषि में इनोवेशन और ट्रांसफॉर्मेशन के लिए एक शक्तिशाली साधन के रूप में उभरा है। जहां सार्वजनिक क्षेत्र की उत्कृष्टता अनुसंधान, बुनियादी ढांचे और जर्मप्लाज्म विकास में है, वहीं निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता  बीज उत्पादन, मार्केटिंग और वितरण में है। किसान हित में इन दोनों क्षेत्रों को मिलाकर नई तकनीक का विकास और प्रसार तेज किया जा सकता है।

हालांकि, पीपीपी की सफलता के लिए कुछ प्रमुख चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। सार्वजनिक क्षेत्र समाज कल्याण को प्राथमिकता देता है, जबकि निजी क्षेत्र लाभ पर ध्यान केंद्रित करता है। इन अलग-अलग उद्देश्यों को साथ लाना बड़ी चुनौती हो सकती है। सार्वजनिक और निजी संस्थाओं के बीच अक्सर अविश्वास की स्थिति रहती है। सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र को लाभ केंद्रित और किसान कल्याण के प्रति कम चिंतित मानता है, जबकि निजी क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र को अक्षम और नौकरशाही से ग्रस्त समझता है।

दोनों क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), लाइसेंसिंग और अनुसंधान सुविधाओं तक पहुंच से संबंधित नीतियों को व्यवस्थित करने की जरूरत है। भारतीय कृषि में सफल पीपीपी के उदाहरण कम ही हैं। इसलिए उन्हें अपनाना कठिन है। जब सफलता प्राप्त होती है, तब भी परिणामों को मान्य बनाने के लिए अक्सर पर्याप्त डेटा का अभाव होता है।

इन चुनौतियों के बावजूद भारतीय कृषि में सार्वजनिक-निजी सहयोग के लिए अनेक अवसर हैं। सार्वजनिक संस्थान और निजी कंपनियां मिलकर जलवायु-सहिष्णु, अधिक उपज देने वाली और बायोफोर्टिफाइड फसलों के विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं। इस तरह की पहल से नाइट्रोजन और पानी के उपयोग में सुधार और खरपतवार के प्रति सहिष्णु किस्मों का विकास जैसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं का भी समाधान हो सकता है। 

सार्वजनिक अनुसंधान संस्थान अपने इनोवेशन के व्यावसायीकरण का लाइसेंस निजी कंपनियों को दे सकते हैं। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि किसानों को बेहतर बीज और तकनीक प्राप्त हो। सार्वजनिक-निजी भागीदारी किसानों को धान की डायरेक्ट सीडिंग (DSR) और अधिक घनत्व वाली पौधारोपण प्रणाली (HDPS) जैसी नई कृषि पद्धतियों के लिए प्रशिक्षित कर सकती है। इससे संसाधनों का संरक्षण करते हुए उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है।

पॉलिसी ब्रीफ में सरकार को कृषि में पीपीपी की पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिए एक अनुकूल नीति बनाने की सलाह दी गई है। बौद्धिक संपदा अधिकार, अनुसंधान सुविधाओं तक पहुंच और डेटा शेयरिंग से संबंधित नीतियों को अधिक पारदर्शी और पूर्वानुमान योग्य बनाने की आवश्यकता है। इसके अलावा करों में राहत या सब्सिडी जैसी प्रोत्साहन योजनाएं निजी क्षेत्र को कृषि अनुसंधान में निवेश के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं।

भारत अन्य देशों की सफलताओं से भी सीख सकता है। उदाहरण के लिए, ब्राजील के EMBRAPA और मलेशियन एग्रीकल्चरल रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यू (MARDI) ने दिखाया है कि कैसे सार्वजनिक-निजी सहयोग कृषि में इनोवेशन को बढ़ावा दे सकता है, और किसानों को सस्ती, उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों तक पहुंच सुनिश्चित कर सकता है। भारत के कृषि क्षेत्र को मजबूत करने और इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए पॉलिसी ब्रीफ में जो सिफारिशें दी गई हैं, उनमें बड़े पैमाने पर अनुसंधान संस्थानों, जैव प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाओं और जीएम फसलों के परीक्षण शामिल हैं।