फूड सिस्टम्स डायलॉग (एफएसडी) इंडिया 2023 में पहली बार इंडिया फूड सिस्टम्स ट्रांसफॉर्मेशन हब पेश किया गया। इसका उद्देश्य संबंधित पक्षों और हितधारकों के प्रयासों को एकीकृत करके भारत की खाद्य प्रणाली में सतत परिवर्तन को संभव बनाना है। इंडिया फूड सिस्टम्स ट्रांसफॉर्मेशन हब (आई-एफएसटीएच) फूड एंड लैंड यूज कोएलिशन इंडिया और भारत कृषक समाज का संयुक्त प्रयास है।
आई-एफएसटीएच के बारे में फोलू इंडिया के कंट्री कोऑर्डिनेटर डॉ. केएम जयहरि ने कहा, "यह सूचना और संसाधन के बीच के अंतर की पहचान करने और निवेश की सबसे अनुकूल विधि को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक ज्ञान और कामकाज के तरीकों का एक केन्द्र है।"
भारत कृषक समाज के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ ने कहा, “यह मंच भारतीय खाद्य प्रणालियों पर जानकारी के एकल खुले स्रोत के रूप में सभी क्षेत्रीय संगठनों के बीच बहुस्तरीय साझेदारी को सक्षम बनाएगा। हमारा लक्ष्य ब्लॉक स्तर सहित सभी पत्रकारों का एक व्यापक डाटाबेस तैयार करना भी है। आई-एफएसटीएच 2024 में लॉन्च होगा।”
फूड सिस्टम्स डायलॉग (एफएसडी) इंडिया 2023 के दूसरे दिन की शुरुआत नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद द्वारा 'भविष्य के विकास में कृषि को एक इंजन के रूप में विकसित करने पर पुनर्विचार' विषय पर एक पेपर प्रस्तुति के साथ हुई। उन्होंने कहा, “विभिन्न राज्यों में कृषि और गैर-कृषि विकास के अलग-अलग तरीके हैं। भविष्य के विकास के पथ पर अग्रसर होने के दौरान कृषि को बढ़ावा देने पर पुनर्विचार करने के लिये हमें सफलताओं और विफलताओं के उपलब्ध अनुभवों से सीख लेनी होगी।''
खाद्य प्रणालियों से जुड़े विभिन्न विषयों पर एक विशेष सत्र आयोजित किया गया जिसमें वक्ताओं ने कार्यबल में लिंग समावेशन, पोषण में अंतर, वर्तमान कृषि प्रणालियां और वित्त पोषण जैसे विषयों पर अपने विचार पेश किये। इन वक्ताओं में 4एसडी फाउंडेशन के रणनीतिक निदेशक सर डेविड नाबरो, एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की अध्यक्ष डॉ. सौम्या स्वामीनाथन, कृषि मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव फैज अहमद किदवई और नाबार्ड के डीजीएम कुलदीप चंद शामिल थे।
भारत कृषक समाज और फूड एंड लैंड यूज कोएलिशन इंडिया द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एफएसडी 2023 खाद्य प्रणाली में सतत परिवर्तन शुरू करने के लिए पर्याप्त क्षमता वाले नीति परिदृश्यों की पहचान करना चाहता है। साथ ही स्टार्टअप के विकास को बढ़ावा देने और शुरुआती मौके उपलब्ध कराए जाने पर भी जो देता है। यह उन सटीक लघु और दीर्घकालिक उपायों पर जोर देगा जिन्हें परिवर्तन के लिए लागू करने की आवश्यकता है।
इस तीन दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट के संस्थापक निदेशक प्रोफेसर प्रभु पिंगली ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जलवायु के अनुरूप ढल जाने वाली कृषि प्रणाली के साथ खाद्य सुरक्षा हासिल करना संभव है। उन्होंने कहा कि इनपुट उपयोग दक्षता, फसल और पशुधन प्रणालियों का विविधीकरण और अंतर-क्षेत्रीय ऊर्जा, विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके खाद्य सुरक्षा और जलवायु शमन (ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन रोकना) के बीच तालमेल बढ़ाया जा सकता है।
इस मौके पर पूर्व कृषि सचिव टी नंद कुमार ने कहा, “भारत ने जो वैश्विक घोषणाएं की हैं उनसे खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन होगा। हो सकता है कि यह एक राष्ट्रीय प्रयास के रूप में न हो, बल्कि अनेक स्थानीय प्रयासों के रूप में हो। हमारे लिए चुनौती अपने लोगों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए अपनी धारणाओं और विकल्पों को बदलने की होगी। जब किसान, जनता और जलवायु तीनों के बीच तालमेल बैठेगा तभी यह परिवर्तन संभव होगा। हम जिस इंडिया फूड सिस्टम ट्रांसफार्मेशन हब की योजना बना रहे हैं, वह इस बदलाव को आगे बढ़ाने में सहायक होगा।''
4एसडी फाउंडेशन के रणनीतिक निदेशक सर डेविड नाबरो ने अपने संबोधन में कहा: “सीओपी28 (COP28) में खाद्य प्रणालियों पर चर्चाओं में मुख्य जोर समावेश पर रहा। ऐसा करने के लिए हमें अधिकार क्षेत्र के भीतर कार्य करने की आवश्यकता है, विशेषकर भू परिदृश्य के स्तर पर। भारत में यह संरचना मौजूद है। हमें इसका लाभ उठाने पर ध्यान देना चाहिए।”