रूस-यूक्रेन युद्ध से भारत के ग्रामीण क्षेत्र के लिए विकास की एक नई शुरुआत होगी। इसका असर पूरी अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने और जीडीपी ग्रोथ पर भी दिखेगा। बीती दो तिमाही से ग्रामीण क्षेत्र में आमदनी कम होने और महंगाई अधिक होने के कारण मांग में गिरावट आई है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध से ग्लोबल मार्केट में कमोडिटी के दाम बढ़े हैं। इससे ग्रामीण भारत की भी आमदनी आने वाले समय में बढ़ेगी। ब्रोकरेज फर्म प्रभुदास लीलाधर ने अपनी एक रिपोर्ट में यह अनुमान जताया है।
यूक्रेन गेहूं, सनफ्लावर, जौ, रेपसीड और मक्के के सबसे बड़े निर्यातकों में है। दुनिया में गेहूं निर्यात का 10 फ़ीसदी, सनफ्लावर ऑयल का 47 फ़ीसदी, जौ का 17 फ़ीसदी, रेपसीड का 20 फ़ीसदी और मक्के का 14 फ़ीसदी निर्यात यूक्रेन करता है। रूस की भी सनफ्लावर निर्यात में 25 फ़ीसदी, गेहूं में 18 फ़ीसदी और जौ में 14 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। लेकिन इनका निर्यात प्रभावित होने से भारत के घरेलू बाजार में दाम तेजी से बढ़े हैं। एक साल पहले की तुलना में देखा जाए तो गेहूं की कीमत मार्च में 22 फ़ीसदी, मक्के की 43 फ़ीसदी, सोयाबीन की 45 फ़ीसदी, कपास की 56 फ़ीसदी और जौ कि 67 फ़ीसदी बढ़ी है।
इस मूल्य वृद्धि के आधार पर ब्रोकरेज फर्म का अनुमान है कि गेहूं जैसी रबी फसलों से किसानों को 30,200 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आमदनी होगी। ब्रोकरेज फर्म का आकलन है कि वित्त वर्ष 2020-21 में गेहूं, रेपसीड/सरसों, मक्का, चना और चावल की पूरे देश में उत्पादन लागत 1,591 अरब रुपए थी। यह लागत 2021-22 में बढ़कर 1,722 अरब रुपए हो जाने का अनुमान है। इन फसलों की बिक्री से किसानों को 2020-21 में 3,422 अरब रुपए मिले थे जिसके 2021-22 में 4,132 अरब रुपए हो जाने का अनुमान है। इस तरह 2020-21 में किसानों को 1,831 अरब रुपए का फायदा हुआ था जिसके 2021-22 में 2,409 अरब रुपए हो जाने का अनुमान है। इस तरह एक साल में आमदनी में 32 फ़ीसदी यानी 57,800 करोड़ रुपए की वृद्धि होगी।
रिपोर्ट के मुताबिक इस साल रबी की फसलों की स्थिति काफी अच्छी है और गेहूं, सरसों तथा सोयाबीन के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की तुलना में काफी ऊपर चल रहे हैं। उत्तर प्रदेश और पंजाब में गेहूं की शुरुआती कीमत 22 से 23 रुपए प्रति किलो के आसपास है। दाम एमएसपी से काफी ऊपर चल रहे हैं इसलिए इस वर्ष सरकारी खरीद भी प्रभावित होगी। कुछ कारोबारियों का यह भी मानना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते ग्लोबल सप्लाई चेन प्रभावित होने से आने वाले दिनों में गेहूं की कीमतों में और 20 फ़ीसदी तक बढ़ोतरी हो सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में अभी गेहूं के भाव 22 से 28 रुपए किलो चल रहे हैं जबकि एक साल पहले 18 से 19 रुपए किलो थे। शरबती गेहूं की कीमत तो 30 से 35 रुपए किलो तक पहुंच गई है। इसी तरह सोयाबीन के भाव पिछले साल के 40 से 50 रुपए किलो की तुलना में इस बार 70 से 80 रुपए किलो हो गए हैं।
एमएसपी से तुलना करें तो सोयाबीन के दाम अभी एमएसपी से 73 फ़ीसदी, जौ के 68 फ़ीसदी, कपास के 63 फ़ीसदी, मक्का के 6 फ़ीसदी, रेपसीड/सरसों के 37 फ़ीसदी, गेहूं के 10 फ़ीसदी, चावल के 5 फ़ीसदी और चना के 3 फ़ीसदी ऊपर चल रहे हैं।
ब्रोकरेज फर्म के अनुसार जनवरी में कृषि निर्यात 30 फ़ीसदी बढ़ा है, और अनुमान है कि गेहूं और जौ जैसी कमोडिटी, जिनका रूस और यूक्रेन बड़े पैमाने पर निर्यात करते थे, के भारतीय निर्यातकों को अच्छी कमाई होने की उम्मीद है।
प्रभुदास लीलाधर का कहना है कि खेती करने वाले परिवारों की 52 फ़ीसदी आमदनी कृषि और डेरी से होती है। हाल के दिनों में दूध बेचने वाली सरकारी सहकारी कंपनियों ने दाम बढ़ाए हैं। इससे भी किसानों की आमदनी बढ़ेगी। ग्लोबल मार्केट में भी दूध के दाम 15 से 20 फ़ीसदी बढ़े हैं।
2021 में लगातार तीसरे साल मानसून सामान्य रहा था जिससे फसलों की उपज भी अच्छी रही। स्काईमेट ने 2022 में भी मानसून सामान्य रहने की उम्मीद जताई है। ब्रोकरेज फर्म ने ग्रामीण इलाकों में आमदनी बढ़ने से एफएमसीजी, ऑटोमोबाइल, खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायनों की मांग बढ़ने की उम्मीद जताई है। एफएमसीजी सेक्टर को पिछली दो-तीन तिमाही से ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में कमी का सामना करना पड़ रहा है।