भारत ने वर्ष 2016-17 से लेकर 2022-23 तक सात वर्षों में कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक 5 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है। यह कहना है नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद का। वे शनिवार को नई दिल्ली में कृषि अर्थशास्त्रियों की अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस (ICAE) को संबोधित कर रहे थे।
अपने संबोधन में उन्होंने विकास की रणनीतियों में कृषि क्षेत्र पर फोकस किए जाने का श्रेय सरकार को दिया। उन्होंने कहा कि वर्ल्ड बैंक के पिछले 10 वर्षों के आंकड़े देखें तो दुनिया भर में कृषि क्षेत्र की जीडीपी की वृद्धि दर भारत में सबसे अधिक रही है। उन्होंने यह भी कहा कि विश्व जीडीपी में कृषि क्षेत्र का हिस्सा वर्ष 2006 में 3.2 प्रतिशत था। यह हाल के वर्षों में बढ़कर 4.3 प्रतिशत हो गया है।
प्रो. रमेश चंद के अनुसार वित्त वर्ष 2006-07 में वैश्विक आर्थिक संकट के बाद कृषि क्षेत्र की विकास दर बाकी गैर-कृषि सेक्टर की तुलना में अधिक रही है। ऐसा विश्व स्तर पर देखने को मिला है। कृषि क्षेत्र के महत्व को रेखांकित करते हुए नीति आयोग के सदस्य ने कहा कि पिछले 15 वर्षों के दौरान कृषि क्षेत्र के विकास ने अनेक देशों की अर्थव्यवस्था को गिरने से बचाया है। वर्कफोर्स के बड़े हिस्से को रोजगार देने का जिम्मा आज भी कृषि क्षेत्र पर है, क्योंकि कृषि से लेबर फोर्स को बाहर निकलने में इंडस्ट्री सेक्टर का रिकॉर्ड बहुत ही खराब रहा है।
उन्होंने कहा कि मौजूदा चुनौतियां आर्थिक और मानव विकास में कृषि क्षेत्र की भूमिका को नए सिरे से रेखांकित करती हैं। इसलिए हर स्तर पर कृषि क्षेत्र पर नए तरीके से फोकस करने की आवश्यकता है।
इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ एग्रीकल्चरल इकोनॉमिस्ट की तरफ से इस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जा रहा है। 2 अगस्त को शुरू हुई यह कॉन्फ्रेंस 7 अगस्त तक चलेगी। भारत में यह कॉन्फ्रेंस 65 वर्षों के बाद हो रही है। इस वर्ष के कॉन्फ्रेंस की थीम सस्टेनेबल कृषि खाद्य प्रणाली की और ट्रांसफॉर्मेशन है। इसमें जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण, उत्पादन की बढ़ती लागत तथा युद्ध जैसी वैश्विक चुनौतियां से जूझते हुए सस्टेनेबल खेती का समाधान तलाशना है। इसमें करीब 75 देशों के लगभग एक हजार प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं।