वैश्विक बाजार में डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की कीमतों में बढ़ोतरी के रुख के चलते भारतीय कंपनियां आयात सौदे नहीं कर रही हैं। दो माह में कीमतें 528 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 560 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। यही नहीं, एक सरकारी कंपनी को आयात टेंडर इसलिए रद्द करना पड़ा क्योंकि उसमें कम से कम कीमत 575 डॉलर प्रति टन की आई थी। इस स्थिति के चलते डीएपी के अधिक सौदे नहीं हो रहे हैं। अगर यह स्थिति कुछ दिन और जारी रही तो आगामी रबी सीजन में किसानों को डीएपी की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।
उद्योग सूत्रों के मुताबिक करीब माह भर पहले सरकारी कंपनी एनएफएल के टेंडर के लिए 575 डॉलर प्रति टन का दाम आया था। पिछले दो माह में तीन-चार सौदे ही हुए हैं। इनमें 50 हजार टन का एक आयात सौदा सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी ने 559 डॉलर प्रति टन की कीमत पर किया था। यह आयात सौदा चीन की कंपनियों के साथ ही सऊदी अरब की उर्वरक कंपनी मादेन ने किया है। एक उर्वरक कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि डीएपी के स्टॉक की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। ऐसे में अगर आयात सौदे जल्दी नहीं होते हैं तो रबी सीजन में किल्लत पैदा हो सकती है। हालांकि चालू खरीफ सीजन के लिए डीएपी की उपलब्धता में कोई दिक्कत नहीं है।
अप्रैल और मई में डीएपी की कीमतें कम हो गई थीं। उद्योग सूत्रों का कहना है कि चीन ने निर्यात कम कर दिया है। वह चाहता है कि कीमतें 600 डॉलर प्रति टन तक चली जाएं। चीन उर्वरकों का बड़ा निर्यातक है और निर्यात को लेकर उसके फैसले वैश्विक बाजार में कीमतों को सीधे प्रभावित करते हैं। भारत चीन से डीएपी और यूरिया दोनों का आयात करता है। देश में सालाना 100 लाख टन से अधिक डीएपी की खपत होती है और इसका अधिकांश हिस्सा आयात होता है। देश में डीएपी का जो उत्पादन होता है उसके लिए भी रॉक फास्फेट या सल्फ्यूरिक एसिड जैसे कच्चे माल का आयात किया जाता है। देश में पिछले साल (2023-24) में 108.12 लाख टन डीएपी की खपत हुई थी। इसके पहले साल डीएपी की खपत 104.18 लाख टन रही थी।
लेकिन यूरिया के मोर्चे पर सरकार के लिए राहत की खबर है। इसकी की कीमतों में लगातार गिरावट आ रही है। इस समय यूरिया की आयातित कीमत (सीएफआर) 350.50 डॉलर प्रति टन तक आ गई है। हाल में एक भारतीय कंपनी के टेंडर में पश्चिमी तट के लिए 350.50 डॉलर प्रति टन और पूर्वी तट लिए 365 डॉलर प्रति टन की कीमत आई। इस टेंडर में चीन, ओमान और रूस की कंपनियों ने भागीदारी की।
दो साल पहले यूक्रेन और रूस का युद्ध शुरू होने के बाद आई तेजी के चलते यूरिया की कीमत 900 डॉलर प्रति टन को पार कर गई थी। भारत करीब 100 लाख टन यूरिया का आयात करता है। लेकिन पिछले दो साल में नये संयंत्रों में यूरिया उत्पादन शुरू होने से इसके आयात में गिरावट की संभावना है। पिछले साल (2023-24) देश में यूरिया की खपत 357.80 लाख टन रही थी। यह उससे पहले साल में 357.25 लाख टन की खपत से मामूली अधिक है।
उद्योग सूत्रों का कहना है कि यूरिया के मोर्चे पर सरकार को सब्सिडी की बचत होगी। लेकिन डीएपी के मामले में सरकार न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) के तहत प्रति किलो के हिसाब से सब्सिडी देती है। ऐसे में वैश्विक बाजार में डीएपी के रेट बढ़ने के चलते उर्वरक आयातक कंपनियों को नुकसान होगा। मौजूदा सब्सिडी दरों पर भी कंपनियों को मुनाफा नहीं है। ऐसे में अगर कंपनियां आयात के सौदे नहीं करती हैं तो रबी सीजन में मुश्किल आ सकती है। आयातित उर्वरक के सौदे से लेकर उसके किसानों तक पहुंचने में करीब दो माह तक का समय लग जाता है। वहीं रबी सीजन में डीएपी की अधिकांश खपत अक्तूबर और नवंबर में गेहूं और अन्य रबी फसलों की बुवाई के समय ही होती है।