अखिल भारतीय किसान सभा ने कपास के आयात पर कस्टम ड्यूटी हटाने के केंद्र सरकार के फैसले की कड़ी निंदा की है। संगठन का कहना है कि सरकार ने यह फैसला टेक्सटाइल कंपनियों को फायदा पहुंचाने के मकसद से किया है। सरकार ने 14 अप्रैल से 30 सितंबर 2022 तक कपास के आयात पर कस्टम ड्यूटी से छूट देने का निर्णय लिया है। अभी तक इन पर सेस और सरचार्ज समेत लगभग 11 फ़ीसदी आयात शुल्क लगता था।
किसान सभा का कहना है कि सरकार का यह फैसला किसानों को उनकी कपास की उचित कीमत सुनिश्चित किए बगैर लिया गया है। इस फैसले से चीन, ब्राजील, अमेरिका और अन्य देशों से सस्ती कपास का आयात होने लगेगा। एक सक्षम खरीद व्यवस्था और मूल्य स्थिरीकरण फंड (पीएसएफ) के अभाव में इस फैसले से पहले से ही संकटग्रस्त कपास किसान और प्रभावित होंगे। कच्चे सिल्क के आयात पर शुल्क हटाया गया था तब भी ऐसा ही देखने को मिला था। सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के कपाट बेल्ट में ही सबसे अधिक किसान आत्महत्याएं होती हैं।
संगठन के अनुसार सरकार का दावा है कि यह फैसला कच्चे माल की कमी से जूझ रही टैक्सटाइल इंडस्ट्री की सहूलियत के लिए किया गया है। वित्त मंत्रालय का कहना है कि देश में उम्मीद से कम कपास उत्पादन होने और कपास के दाम बढ़ने के चलते आयात शुल्क हटाने का फैसला लिया गया है। इससे घरेलू इंडस्ट्री निर्यात के मामले में तो प्रतिस्पर्धी होगी लेकिन इसका घरेलू उपभोक्ताओं को कोई फायदा नहीं मिलेगा किसान सभा का कहना है कि टेक्सटाइल इंडस्ट्री कभी भी सस्ते कच्चे माल का फायदा उपभोक्ताओं को नहीं देती है। उनका एकमात्र मकसद अपना मुनाफा बढ़ाना होता है।
इससे एक दिन पहले बुधवार को भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ के अनुसंधान संघ-कॉटन डेवलपमेंट रिसर्च एसोसिएशन के स्वर्ण जयंती समारोह में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि कपास का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने व किसानों की प्रगति के लिए सरकार तत्पर है व अनेक योजनाओं के जरिये निरंतर काम कर रही है। तोमर ने कहा कि कपास सेक्टर में करोड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ है, वहीं कैश क्राप की दृष्टि से किसानों के लिए कपास की खेती का महत्व है। कपास के क्षेत्र में किसानों की मेहनत, वैज्ञानिकों का अनुसंधान तथा उद्योगों का योगदान है, वहीं उत्पादकता बढ़ाने को भारत सरकार बहुत गंभीरता से ले रही है।