पराली की समस्या से निपटने और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पिछले पांच वर्षों में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किए गए विभिन्न पहलों के प्रभाव का आकलन करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने आईआईएम-रोहतक को सौंपी है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि विस्तृत परामर्श और विश्लेषण से जो निष्कर्ष सामने आएंगे वे पराली के प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे और गतिविधियों को मजबूती व विस्तार देने में सहायक होंगे।
आईआईएम रोहतक के निष्कर्ष छोटे और सीमांत किसानों के लिए बुनियादी ढांचा स्थापित करने और अधिक ज्ञान, बेहतर पहुंच व विस्तारित अवसरों वाली योजना लागू करने में भी सरकार की मदद करेंगे। पराली प्रबंधन के लिए जरूरी कृषि मशीनरी की खरीद पर सरकार एक केंद्रीय योजना के तहत सब्सिडी भी दे रही है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के लिए वित्त वर्ष 2018-19 से लेकर 2022-23 तक इस योजना के तहत 3,318 करोड़ रुपये की कुल राशि स्वीकृत की गई है। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने के कारण दिल्ली-एनसीआर की हवा खराब होने की विकट समस्या से निपटने के लिए यह योजना लागू की गई थी।
कृषि मंत्रालय के मुताबिक, इन राज्यों ने फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के 38 हजार से अधिक कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) स्थापित किए हैं। केंद्रीय योजना के तहत स्थापित इन सीएचसी और इन चार राज्यों के किसानों को 2.42 लाख से अधिक मशीनों की आपूर्ति की गई है।" इस योजना के तहत पांच वर्षों के दौरान इन राज्यों द्वारा पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए किए गए विभिन्न पहलों के प्रभाव का आकलन करने के लिए ही भारतीय प्रबंधन संस्थान, रोहतक को लगाया गया है।
आईआईएम-रोहतक पराली प्रबंधन के लिए उपलब्ध अलग-अलग मशीनरी का जिलावार आकलन करेगा। इसमें धान की पराली के प्रबंधन के लिए किसानों, सहकारी समितियों और कस्टम हायरिंग सेंटर जैसी विभिन्न संस्थाओं के पास उपलब्ध प्रत्येक मशीन के औसत उपयोग का आकलन शामिल है। साथ ही बेहतर क्षेत्र क्षमताओं के आधार पर इन मशीनों के इस्तेमाल का विश्लेषण भी किया जाएगा। इसके अलावा केंद्रीय योजना के तहत आपूर्ति की गई मशीनों की गुणवत्ता और लागत की तुलना खुले बाजार में मिलने वाली मशीनों की गुणवत्ता और लागत से भी की जाएगी।