मिट्टी, जल और जैव विविधता जैसे भू संसाधनों का इस समय जिस तरह कुप्रबंधन और दुरुपयोग हो रहा है उससे पृथ्वी पर पाई जाने वाली अनेक जीव प्रजातियों के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। इसमें मानव प्रजाति भी है। संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन टू कॉम्बैट डिजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) की नई रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है। ग्लोबल लैंड आउटलुक-2 शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट ने कहा गया है कि पृथ्वी पर 40 फ़ीसदी भूक्षेत्र डिग्रेड हो चुका है। आधुनिक इतिहास में इससे पहले कभी इतना खतरा महसूस नहीं किया गया और हम इन खतरों के असर और उसकी व्यापकता को कमतर आंकने का जोखिम नहीं उठा सकते।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भू संसाधनों का संरक्षण, उनकी पुनर्स्थापना तथा उनका दीर्घकालिक तरीके से इस्तेमाल समूचे विश्व के स्तर पर अनिवार्य हो गया है। इसे बड़ा संकट मानते हुए इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। हमारे दीर्घकालिक सर्वाइवल और संपन्नता के लिए सब कुछ अभी की तरह जारी नहीं रखा जा सकता है। यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहिम हाएव के अनुसार आधुनिक कृषि ने पृथ्वी का चेहरा जिस तरह बदला है, उतना किसी अन्य मानव गतिविधि ने नहीं किया। हमें वैश्विक खाद्य प्रणाली पर तत्काल पुनर्विचार करने की जरूरत है क्योंकि 80 फ़ीसदी वनों की कटाई, 70 फ़ीसदी ताजे जल के इस्तेमाल के लिए यही उत्तरदायी है। इसके अलावा जैव विविधता को सबसे अधिक नुकसान भी इसी से हुआ है।
रिपोर्ट में 2050 तक तीन अलग-अलग परिदृश्य के मुताबिक अनुमान जताए गए हैं। पहला है अगर सब कुछ अभी की तरह चलता रहा। अगर भूमि और प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण अभी की तरह जारी रहा तथा खाद्य, चारे, फाइबर और बायो एनर्जी की डिमांड बढ़ती रही, भूमि प्रबंधन के तरीके और जलवायु परिवर्तन इसी तरह मिट्टी का क्षरण करते रहे, उत्पादकता और यील्ड में गिरावट जारी रही तथा कृषि क्षेत्र के विस्तार से प्राकृतिक क्षेत्रों में कमी आई तो वर्ष 2050 तक दक्षिण अमेरिका के आकार के बराबर 1.6 करोड़ वर्ग किलोमीटर भूमि का डिग्रेडेशन हो जाएगा। सहारा अफ्रीका के क्षेत्र से सबसे अधिक प्रभावित होंगे। इसके अलावा 2015 से 2050 तक भूमि का उपयोग बदलने और मिट्टी की गुणवत्ता घटने से 69 गीगा टन अतिरिक्त कार्बन का उत्सर्जन होगा। यह मौजूदा सालाना ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 17 फ़ीसदी के बराबर होगा।
दूसरा आकलन है कि अगर 5 करोड़ वर्ग किलोमीटर या 5 अरब हेक्टेयर भूमि को एग्रोफोरेस्ट्री ग्रेजिंग मैनेजमेंट और अन्य तरीकों से पुनर्स्थापित किया जाए तो वर्ष 2050 तक फसलों की यील्ड ज्यादातर विकासशील देशों में पहले अनुमान की तुलना में 5 से 10 फ़ीसदी बढ़ जाएगी। मिट्टी के बेहतर स्वास्थ्य से यील्ड में सुधार होगा।इसका सबसे अधिक लाभ मध्य पूर्व, उत्तर अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और सहारा अफ्रीका क्षेत्र में होगा। इससे खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि पर भी अंकुश लगेगा। रेनफेड इलाकों में मिट्टी में पानी को ग्रहण करने की क्षमता 4 फ़ीसदी बढ़ेगी। वर्ष 2015 से 2050 तक कार्बन उत्सर्जन 17 गीगा टन बढ़ेगा, जैव विविधता में कमी आएगी लेकिन उतनी तेजी से नहीं जितनी अभी हो रही है। जैव विविधता में होने वाले 11 फ़ीसदी नुकसान को वापस पाया जा सकेगा।
तीसरी परिस्थिति विशेष इकोसिस्टम के लिहाज से महत्वपूर्ण प्राकृतिक क्षेत्रों के संरक्षण के जरिए भूमि की पुनः स्थापना की है। इस विकल्प में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2050 तक 40 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के प्राकृतिक इलाके का रेस्टोरेशन हो सकेगा जो भारत और पाकिस्तान के क्षेत्रफल के बराबर होगा। इसका सबसे अधिक फायदा दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया तथा लैटिन अमेरिका में मिलेगा। संरक्षण के उपायों से भूमि का क्षरण रुकेगा। पहले विकल्प में जैव विविधता को जितने नुकसान का अनुमान व्यक्त किया गया है उसमें से एक तिहाई को बचाया जा सकेगा। इसके अलावा पहले विकल्प की तुलना में 83 गीगा टन कम कार्बन उत्सर्जन होगा।
रिपोर्ट में कुछ और महत्वपूर्ण बातें भी बताई गई हैं। इसमें कहा गया है कि अगर भूमि रेस्टोरेशन करने के साथ-साथ मिट्टी के क्षरण, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और जैव विविधता के नुकसान को कम किया जाए तो इसका आर्थिक लाभ 125 से 140 लाख करोड़ डॉलर सालाना होगा। यह 2021 में दुनिया की जीडीपी 93 लाख करोड़ डॉलर के डेढ़ गुना के बराबर होगा। इसमें कहा गया है कि भूमि क्षरण से लगभग दुनिया की लगभग आधी आबादी प्रभावित है। क्षरण हो चुकी भूमि को रिस्टोर करने में अगर एक डॉलर का खर्च किया जाता है तो उससे होने वाला फायदा 7 से 30 डॉलर तक का होगा। अभी दुनिया के 40 फ़ीसदी से अधिक क्षेत्र में खेती होती है।