इंडिय़ा एग्रीकल्चर एडवांसमेंट ग्रुप इंटरनेशनल (आईएएजी) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर कहा है कि जीन एडिटेड प्लांट्स के लिए बॉयो सेफ्टी गाइडलाइंस तैयार करने के मामले में जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएस) और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफएंडसीसी) द्वारा इस संबध में विचार करने और निर्णय लेने से पहले ही इन विभागों मंत्रालयों द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से राय और विचार मांगने से एक गलत मिसाल कायम हुई है। जीन एडिटेड प्लांट के लिए गाइडलाइंस तैयार करने का मामला एक साल से लंबित है और इस वजह से और देरी होगी। जीईएसी और एमओईएफएंडसीसी द्वारा दिशानिर्देशों के शीघ्र अनुमोदन पर चर्चा की जानी चाहिए ताकि देश जीन्- एडिटेड टेक्नोलॉजी का उपयोग करके लाभ उठा सके। इस तकनीक में वैज्ञानिक प्रगति की जबरदस्त क्षमता है और दूसरी तरफ हमारी खाद्य और पोषण सुरक्षा को पूरा करने के लिए भी इसकी जरूरत है।
प्रधानमंत्री को 29 सितंबर को भेजे गेय इस पत्र पर देश और दुनिया के बड़े कृषि वैज्ञानिकों ने हस्ताक्षर किये हैं। इनमें डॉ. गुरदेव सिंह खुश, डॉ आर.एस.परोदा, डॉ आर.बी सिंह, डॉ के. एल. चड्ढा, डॉ. दीपक पेंटल और डॉ. जी. पद्मनाभन सहित 22 विख्यात कृषि वैज्ञानिक शामिल हैं।
पत्र में इस बात पर चिंता व्यक्त की गई है कि पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली जीईएसी द्वारा जीनोम एडिटेड प्लांट्स के लिए जरूरी बॉयो सेफ्टीअसेसमेंट गाइडलाइंस के मसौदे के अनुमोदन में अत्यधिक देरी हो रही है । आईएएजी का कहना है कि साइंटिफिक मेरिट के आधार पर अंतिम निर्णय लेने के बजाय जीईएसी ने एक वर्ष से अधिक की देरी के बाद जीनोम एडिटेड प्लांट्स की सेफ्टी असेसमेंट की ड्राफ्ट गाइडलाइंस पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर डिपार्टमेंट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी (डीबीटी) द्वारा तैयार ड्राफ्ट गाइडलाइंस में एसडीएन1 और एसडीएन2 श्रेणियों के लिए जीएम फसलों की बायो सेफ्टी टेस्ट पर भी उनकी राय मांगी है ।
आईएएजी के अनुसार जीनोम एडिटेड प्लांट्स की एसडीएन-1 और एसडीएन-2 श्रेणियों में किसी दूसरी प्रजाति या आर्गनिज्म (इंपोर्टेड) का डीएनए नहीं होता है , इसलिए इसे ट्रांसजनिक प्रक्रिया के समकक्ष रखने की जरूरत नहीं है। कई देशों ने पारंपरिक ब्रीडिंग और म्युटेशन ब्रीडिंग के माध्यम से विकसित किए गए एसडीएन-1 और एसडीएन-2 उत्पादों पर विचार करने का निर्णय पहले ही ले लिया गया है क्योंकि यह मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित हैं। आईएएजी का कहना है कि उनके हिसाब से यह मामला पूरी तरह से शुद्ध रूप से वैज्ञानिक मामला है इसलिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से इस सबंध में जो राय मांगी है वह गैरजरूरी है और इससे भ्रम पैदा होने की संभावना है। एसडीएन1 और एसडीएन 2 श्रेणी के तहत जीनोम एडिटेड प्लांट्स को किसी नियमाक की आवश्यकता नहीं है और परीक्षण के रूप में ये अन्य किस्मों और कंवेंशनल ब्रीडिंग से तैयार हाइब्रिड किस्मों की तरह ही हैं।
आईएएजी ने पत्र के माध्यम से इन सब तथ्यों को रखते हुए पर्यावरण एवं मंत्रालय और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय को सुझाव दिया है कि बिना किसी और देरी के राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (नास) के बहुमूल्य इनपुट के साथ डिपार्टमेंट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी (डीबीटी) द्वारा तैयार किये गये जीनोम एडिटेड प्लांट्स की बॉयो सेफ्टी असेसमेंट के लिए तैयार मसौदा गाइडलाइंस को मंजूरी दी जाए।
आईएएजी भारतीय मूल के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों का एक समूह हैं जो भारत और विदेशों में रहते है और भारत के कृषि विकास गहरी रुचि रखते हैं। इस समूह ने व्यापक गहन विचार-विमर्श के बाद डीबीटी द्वारा प्रस्तावित दिशानिर्देशों की मंजूरी में मौजूदा गतिरोध को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री से तत्काल हस्तक्षेप हल करने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा है कि विज्ञान के नेतृत्व वाले इनोवेशंस के परिणामस्वरूप ही ग्रीन, व्हाइट और ब्ल्यू रिवोल्यूश हुईं। इसलिए हम भारत में खाद्य और पोषण सुरक्षा प्राप्त करने के लिए नए विज्ञान के लाभों को प्राप्त करना जारी रखें।