थोक महंगाई एक साल से भी ज्यादा समय से लगातार दहाई अंकों में बनी हुई है और इसका असर देर से सही, लेकिन खुदरा महंगाई दर पर भी पड़ने का खतरा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को जारी अपनी सालाना रिपोर्ट में यह चेतावनी दी है। रिपोर्ट में आरबीआई ने कहा है कि औद्योगिक कच्चे माल की ऊंची कीमतों, परिवहन और लॉजिस्टिक्स लागत में वृद्धि और सप्लाई चेन में बाधाओं से कोर मुद्रास्फीति पर लगातार दबाव बना हुआ है।
केंद्रीय बैंक के अनुसार मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट की महंगाई में तेज वृद्धि हुई है। अभी थोक महंगाई दर और खुदरा महंगाई दर के बीच काफी अंतर है, लेकिन जब कंपनियां बढ़ती इनपुट लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर डालेंगी तो खुदरा महंगाई बढ़ने का भी जोखिम रहेगा। अभी अर्थव्यवस्था की गति सुस्त होने के कारण निर्माता बढ़ती लागत का पूरा बोझ उपभोक्ताओं पर नहीं डाल रहे हैं। इसमें कहा गया है कि यूक्रेन रूस युद्ध के परिणामस्वरूप कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोतरी ने दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह भारत में भी महंगाई को बढ़ाया है।
बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने हाल ही में कुछ कदम उठाए हैं, इनका जिक्र भी रिपोर्ट में किया गया है। सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती की, स्टील और प्लास्टिक उद्योग में इस्तेमाल होने वाले कुछ कच्चे माल पर आयात शुल्क हटा दिया, आयरन ओर और आयर पेलेट्स पर निर्यात शुल्क बढ़ाया गया, गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया, चीनी निर्यात को मुक्त से रेस्ट्रिक्टेड कैटेगरी में डाला गया और दो साल तक 20-20 लाख टन क्रूड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल आयात पर ड्यूटी न लगाने का फैसला किया है।
ईंधन से लेकर सब्जियों और खाद्य तेल, सबकी कीमतों में वृद्धि से थोक महंगाई अप्रैल में 15.08 प्रतिशत की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई। खुदरा महंगाई भी आठ साल के उच्चतम स्तर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई। महंगाई बढ़ने के कारण ही रिजर्व बैंक ने इस महीने की शुरुआत में रेपो रेट 40 आधार अंक बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत कर दिया था।
रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट में गया गया है कि फरवरी 2022 के अंत से भू-राजनीतिक तनाव ने विश्व अर्थव्यवस्था को एक बड़ा झटका दिया है। भू-राजनीतिक झटकों का तत्काल प्रभाव मुद्रास्फीति पर पड़ा है, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में शामिल करीब तीन-चौथाई वस्तुओं पर जोखिम है। कच्चे तेल, धातुओं और उर्वरकों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि ने वैश्विक व्यापार को झटका दिया है। इससे व्यापार घाटा और चालू खाता घाटा बढ़ा है। आगे महंगाई की राह काफी अनिश्चित अधीन है और मुख्य रूप से भू-राजनीतिक स्थिति पर निर्भर करेगा।