अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव और इस साल नौ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए इस बात की संभावना ज्यादा है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को चुनावी बजट पेश कर सकती हैं। वैसे भी तकनीकी तौर पर मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह आखिरी पूर्ण बजट होगा। इसलिए इस बात की संभावना बढ़ गई है कि लोगों को राहत देने वाला बजट पेश किया जाएगा ताकि इसका चुनावी लाभ उठाया जा सके। खासकर कृषि क्षेत्र इस बजट से खास उम्मीदें पाले बैठा है क्योंकि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में जिस तरह से किसान सरकार से नाराज रहे हैं, चाहे वह कृषि कानूनों को लेकर हो, किसान आंदोलन हो, एमएसपी की गारंटी देने की मांग हो, खादों की किल्लत की समस्या रही हो या फिर किसानों की आमदनी दोगुनी करने के वादे का पूरा न होना हो। किसानों की नारजगी दूर करने, उन्हें साधने और कृषि क्षेत्र की मांगों को पूरा करने के कदम इस बजट में उठाए जा सकते हैं।
जीएसटी से राहत देने की मांग कृषि क्षेत्र काफी समय से कर रहा है। जबसे जीएसटी लागू हुआ है तभी से इसकी मांग होती रही है। कृषि क्षेत्र की कंपनियों सहित कृषि विशेषज्ञ भी यह कहते रहे हैं कि कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने, उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने के लिए ऐसा किया जाना जरूरी है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक, इंडियन साइंस कांग्रेस के चेयरमैन रहे और मौजूदा समय में एग्रीकल्चर साइंसेज एडवांसमेंट के लिए काम करने वाले संगठन टास के मुखिया पद्मभूषण डॉ. आरएस परोदा भी इससे इत्तेफाक रखते हैं। देश के कृषि क्षेत्र को आगे ले जाने में डॉ. परोदा का योगदान पांच दशक से भी ज्यादा का है। दुनियाभर के कृषि वैज्ञानिकों में उनका नाम महत्वपूर्ण है। रूरल वॉयस ने जब उनसे जानना चाहा कि इस बार के बजट से वे क्या चाहते हैं तो उन्होंने कहा, “कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए मशीनीकरण और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की जरूरत है। इसके लिए इन पर लगने वाले जीएसटी को कम करना जरूरी है। साथ ही फर्टिलाइजर्स, पेस्टिसाइड्स पर भी जीएसटी घटाया जाए। इनके अलावा मंडी टैक्स को भी देशभर में एक समान किया जाए। अभी किसी राज्य में मंडी टैक्स 13-15 फीसदी है तो कहीं 5-7 फीसदी। इसे देशभर में एक समान 5-7 फीसदी किया जाना चाहिए।”
दालों, ऑयल सीड्स पर इम्पोर्ट टैक्स भी बढ़ें
परोदा ने कहा कि अभी देश में दालों और ऑयल सीड्स का काफी आयात किया जा रहा है जिस पर खर्च ज्यादा हो रहा है। इसकी बजाय यहीं इसके उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाए। हम पहले भी ऐसा कर चुके हैं। इसके लिए इम्पोर्ट टैक्स बढ़ाने की आवश्यकता है। इससे न सिर्फ घरेलू उत्पादन बढ़ेगा बल्कि आयात खर्च बचाने में भी मदद मिलेगी। साथ ही कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के भी उपाय किए जाएं, खासकर पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत में जहां अभी कई हरित क्रांतियों की संभावनाएं मौजूद हैं।
जीएसटी काउंसिल की तरह बने फार्मर वेलफेयर काउंसिल
कृषि क्षेत्र को आगे ले जाने और किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए परोदा ने जीएसटी काउंसिल की तरह नेशनल एग्रीकल्चर डेवलपमेंट एंड फार्मर वेलफेयर काउंसिल बनाने की भी वकालत की। उन्होंने कहा, “इसकी आवश्यकता इसलिए भी है कि इससे संवैधानिक रूप से कृषि राज्य का विषय न रहकर राष्ट्र का विषय हो जाएगा। खेती-किसानी के लिए पानी, बीज या खादों जैसी समस्याओं को सुलझाने के लिए एक उच्च स्तरीय को-ऑर्डिनेशन कन्वर्जेंस की आवश्यकता है। नेशनल एग्रीकल्चर डेवलपमेंट एंड फार्मर वेलफेयर काउंसिल के जरिये इन समस्याओं को सुलझाने में आसानी होगी।” उन्होंने मौजूदा फर्टिलाइजर पॉलिसी की समीक्षा करने की भी जरूरत बताई।