ग्रीन क्रेडिट नियमों के खतरों से आगाह करते हुए देश के 91 पूर्व अधिकारियों के समूह कॉन्स्टिट्यूशन कंडक्ट ग्रुप (सीसीजी) ने केंद्र सरकार को एक खुला पत्र लिखा है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री को लिखे इस पत्र में समूह ने ग्रीन क्रेडिट नियमों के जरिए जंगलों पर कॉरपोरेट के कब्जे की आशंका जताते हुए इन नियमों को वापस लेने का अनुरोध किया है।
मंगलवार को लिखे इस पत्र में सीसीजी ने ग्रीन क्रेडिट नियमों की खामियों को उजागर करते हुए कहा कि कोई भी धनराशि जंगल और जैव-विविधता वाली वन भूमि की भरपाई नहीं कर सकती है। इसके बावजूद सरकार ग्रीन क्रेडिट के जरिए उद्यमियों और उद्योगपतियों को उनकी परियोजनाओं के लिए वन भूमि के अधिग्रहण को आसान बना रही है। यह पर्यावरण और लोगों की आजीविका के लिए संकट पैदा कर सकता है।
केंद्र सरकार ने पिछले साल ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम की शुरुआत की थी जो पर्यावरण से जुड़े विभिन्न स्वैच्छिक कार्यों के लिए बाजार आधारित तंत्र हैं। 22 फरवरी को जारी ग्रीन क्रेडिट नियमों के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति या निजी संस्था अब राज्य सरकार के नियंत्रण वाले खुले जंगल, झाड़ीदार भूमि, बंजर भूमि और जलग्रहण क्षेत्रों सहित खराब भूमि पर वृक्षारोपण कर ग्रीन क्रेडिट हासिल कर सकती है। इन ग्रीन क्रेडिट का कारोबार किया जा सकता है और इन्हें सीएसआर के कार्यों के रूप में माना जा सकता है।
अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि के डायवर्जन के मामले में प्रतिपूरक वनीकरण को पूरा करने के लिए ग्रीन क्रेडिट का आदान-प्रदान किया जा सकता है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव को लिखे पत्र में सीसीजी ने आरोप लगाया कि सरकार उद्यमियों और उद्योगपतियों को जमीन के बदले जमीन देने की बजाय धन देकर वन भूमि के अधिग्रहण को आसान बनाने की कोशिश कर रही है।
सेवानिवृत्त अधिकारियों के समूह का कहना है कि केवल पेड़ों की गिनती से जंगलों को मापना पूरी तरह से गलत है। सभी वन भूमि, चाहे घास के मैदान, आर्द्रभूमि, रेगिस्तान, झाड़ियं वन, या खुले वन अपने आप में पारिस्थितिक तंत्र हैं। इन क्षेत्रों में वृक्षारोपण करने का मतलब इन और अन्य प्रजातियों के अस्तित्व को समाप्त करना होगा।
सीसीजी का कहना है कि ऐसा लगता है कि सरकार ने इस विश्वास के साथ नियम जारी किए हैं कि वृक्षारोपण प्राकृतिक झाड़ियों की तुलना में अधिक कार्बन अवशोषित करते हैं। जबकि यह सच नहीं है। वृक्षारोपण आम तौर पर तेजी से बढ़ने वाले मोनोकल्चर हैं और यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध तथ्य है कि प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की तुलना में वह कार्बन पृथक्करण के मामले में खराब हैं। देश में प्रतिपूरक वनीकरण के लिए वृक्षारोपण की सफलता पहले ही संदिग्ध है।
ग्रीन क्रेडिट की अवधारणा को प्राकृतिक पर्यावरण के मुद्रीकरण और इसके दोहन के लिए कॉरपोरेट्स को सौंपने के उपाय के तौर पर देखा जा रहा है। वन विभाग को खराब वन भूमि पर वृक्षारोपण करने के लिए फंड देकर अर्जित ग्रीन क्रेडिट के बदले प्राचीन वन भूमि को कॉरपोरेट्स को सौंपना वास्तव में चौंकाने वाला है। ग्रीन क्रेडिट की व्यवस्था को कई विशेषज्ञ अवैज्ञानिक और पर्यावरण के लिए खतरनाक मान रहे हैं।