धान की पराली का स्थानीय स्तर पर प्रबंधन करने के लिए सरकार ने फसल अवशेष प्रबंधन के दिशानिर्देशों में संशोधन किया है। साथ ही इसके लिए जरूरी मशीनरी की खरीद पर वित्तीय सहायता भी दी जा रही है। कृषि मंत्रालय की एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिशानिर्देशों में संशोधन की जानकारी देते हुए कहा कि भारत सरकार किसानों को पराली प्रबंधन में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की संयुक्त सचिव एस रुक्मणि ने कृषि मंत्रालय और सीआईआई द्वारा पराली प्रबंधन के लिए स्वच्छ एवं हरित समाधान पर नई दिल्ली में आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यशाला में कहा, “हमने फसल अवशेष प्रबंधन पर संशोधित दिशानिर्देश जारी किए हैं और अब पराली के स्थानीय प्रबंधन को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके लिए 65 फीसदी तक की सब्सिडी के जरिये से मशीनरी की पूंजीगत लागत के लिए वित्तीय सहायता की पेशकश कर रहे हैं, जबकि उद्योग को परिचालन लागत के लिए 25 फीसदी का योगदान करने की आवश्यकता होगी।”
सीआईआई ने एक बयान में कहा कि एस रुक्मणि ने इस बात पर जोर दिया कि पराली आमदनी का जरिया बन सकती है। उन्होंने पराली की आपूर्ति श्रृंखला पर सरकार की पहल का उल्लेख करते हुए कहा कि पराली का इस्तेमाल करने वाले उद्योगों को इसमें शामिल करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत इसे बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि धान की पराली के कई उपयोग हैं लेकिन इन उद्योगों के लिए कोई मजबूत आपूर्ति श्रृंखला उपलब्ध नहीं है।
खेतों में पराली जलाने के मुद्दे पर सीआईआई नेशनल एग्रीकल्चर काउंसिल के चेयरमैन और आईटीसी लिमिटेड के ग्रुप हेड (कृषि एवं आईटी बिजनेस) एस शिवकुमार ने कहा कि हर समस्या में एक समाधान छिपा होता है लेकिन लगभग सभी समाधान नई समस्याएं पैदा करते हैं। यह एक सतत यात्रा है और पराली प्रबंधन का मुद्दा कोई अपवाद नहीं है। उदाहरण के लिए, एक फसल की कटाई और अगली की बुआई के बीच की छोटी अवधि को देखते हुए पराली जलाना एक समाधान की तरह लगता था लेकिन इससे मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो जाती है और भारी प्रदूषण पैदा होता है। उन्होंने कहा कि यह समझने के लिए कि संपूर्ण समाधान में क्या बाधा आ रही है हमें यह समझने की जरूरत है कि कमियां कहां हैं। चाहे जागरूकता के संदर्भ में हो, लागत के मुद्दे हो या निवेश हो जो हमें पीछे खींच रहा है, प्रत्येक क्षेत्र को अद्वितीय चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा जिन्हें दूर किया जाना चाहिए।
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के उपायुक्त अरविंद मेश्राम ने संशोधित दिशानिर्देशों के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि हैप्पी सीडर, सुपर सीडर और अन्य मशीनें धान की पराली को मिट्टी में मिलाने में मदद कर सकती हैं जिससे मिट्टी को समृद्ध करके किसानों को लाभ होगा। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन परियोजना से किसानों को धान की पुआल बेचने से आय होगी, जबकि उद्योगों को निरंतर आपूर्ति होती रहेगी।
इसी साल जुलाई में केंद्र सरकार ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में पराली जलाने से होने वाली समस्या के समाधान के लिए स्थानीय स्तर पर पराली प्रबंधन को सक्षम बनाने के लए फसल अवशेष प्रबंधन दिशानिर्देशों को संशोधित किया था। संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार, धान की पराली आपूर्ति श्रृंखला के लिए लाभार्थी/एग्रीगेटर (किसान, ग्रामीण उद्यमी, किसानों की सहकारी समितियां, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) और पंचायतें) और पराली का इस्तेमाल करने वाले उद्योगों के बीच द्विपक्षीय समझौते के तहत तकनीकी-वाणिज्यिक पायलट परियोजनाएं स्थापित की जाएंगी।