सरकार द्वारा जून, 2020 में लाये गये तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ चले किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बीच सहमति के बिंदुओं में शामिल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर समिति गठित करने के मुद्दे पर कदम उठाये हुए सरकार ने फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को अधिक प्रभावी बनाने के लिए समिति का गठन कर दिया है। पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल इस समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं। इसमें संयुक्त किसान मोर्चा के तीन प्रतिनिधि भी होंगे। हालांकि अभी उनके नाम तय नहीं हैं। इस बीच एसकेएम के सदस्यों ने संकेत दिये हैं कि मोर्चा इस समिति में शामिल नहीं होगा। विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से अधिक समय तक चले आंदोलन के बाद पिछले साल नवंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी और तभी एमएसपी पर समिति बनाने की बात भी कही थी। इस तरह घोषणा के करीब 8 महीने बाद सरकार ने यह समिति बनाई है।
सरकार द्वारा सोमवार को समिति गठित करने संबंधी जारी गजट में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की 12 जुलाई,2022 की अधिसूचना को प्रकाशित किया गया है। इसके मुताबिक समिति में नीति आयोग के सदस्य (कृषि) रमेश चंद, कृषि अर्थशास्त्री सीएससी शेखर, आईआईएम अहमदाबाद के सुखपाल सिंह और कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के वरिष्ठ सदस्य नवीन पी सिंह शामिल किए गए हैं।
किसान प्रतिनिधि के तौर पर राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किसान भारत भूषण त्यागी को भी समिति में रखा गया है। अधिसूचना के मुताबिक संयुक्त किसान मोर्चा के 3 सदस्य समिति में होंगे जिनके नाम मोर्चा उपलब्ध कराएगा। अन्य किसान संगठनों के सदस्यों में गुणवंत पाटिल, कृष्णबीर चौधरी, प्रमोद कुमार चौधरी, गुनी प्रकाश और सैयद पाशा पटेल को इसमें रखा गया है। इनके अलावा सहकारी संगठन इफको के चेयरमैन दिलीप संघाणी और सीएनआरआई के महासचिव विनोद आनंद भी समिति का हिस्सा होंगे। कृषि विश्वविद्यालयों के वरिष्ठ सदस्य, केंद्र सरकार के पांच सचिव स्तर के अधिकारी और कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, सिक्किम तथा उड़ीसा के मुख्य सचिव को भी समिति में शामिल किया गया है।
अधिसूचना के मुताबिक यह समिति मौजूदा एमएसपी व्यवस्था को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के उपायों पर विचार करेगी। यह सीएसीपी को अधिक स्वायत्तता देने पर भी अपने सुझाव देगी। सीएसीपी ही हर साल फसलों के एमएसपी की सिफारिश करता है।
अधिसूचना के मुताबिक यह समिति कृषि मार्केटिंग व्यवस्था को मजबूत करने के उपायों पर गौर करेगी। इसका मकसद घरेलू और निर्यात बाजार में अधिक अवसर उपलब्ध कराकर किसानों को उनकी उपज की अधिक कीमत दिलाना है।
समिति प्राकृतिक खेती, फसल विविधीकरण और लघु सिंचाई योजना को बढ़ावा देने पर भी अपने सुझाव देगी। समिति यह भी बताएगी कि कृषि विज्ञान केंद्र और अन्य अनुसंधान एवं विकास संस्थानों को नॉलेज सेंटर के तौर पर कैसे विकसित किया जा सकता है।
सरकार के इस कदम पर संयुक्त किसान मोर्चा की कोर कमेटी के सदस्य और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह ने रूरल वॉयस को बताया कि मोर्चा ने जिस कमेटी के गठन की मांग की थी यह समिति उससे मेल नहीं खाती है। जिन अधिकारियों ने तीन कृषि कानूनों का समर्थन किया था या उनको लागू करने में भूमिका निभाई थी वह इसमें शामिल हैं। साथ ही हमारी मांग है कि सरकार पहले एमएसपी की कानूनी गारंटी दे और उसे लागू करने के लिए जरूरी कदम सुझाने के लिए कमेटी का गठन करे। लेकिन सरकार ने एमएसपी की कानूनी गारंटी की कोई बात नहीं की है और वह मौजूदा एमएसपी व्यवस्था को प्रभावी बनाने की बात कर रही है। साथ ही प्राकृतिक खेती, फसल विविधिकरण, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) को प्रभावी बनाने से मुद्दे इसमें जोड़कर इसे एक बड़ा एजेंडा दे दिया गया है। इसलिए ऐसी कमेटी में जहां हमारे मुद्दों का विरोध करने वाले लोेगों का वर्चस्व है वहां संयुक्त मोर्चा और भारतीय किसान यूनियन के प्रतिनिधियों के शामिल होने के कोई मायने नहीं हैं। संयुक्त किसान मोर्चा की कमेटी के दूसरे सदस्य और स्वराज अभियान के सदस्य योगेंद्र यादव ने भी एक बयान जारी कर समिति को किसानों के साथ छलावा बताया है।
हालांकि यह मार्च के पहले ही तय हो गया था कि सरकार को जो समिति बनाएगी उसका दायरा बड़ा होगा। उस समय राज्यों की विधान सभा चुनावों के चलते इसे टाल दिया गया था। मार्च में भी रूरल वॉयस ने एक खबर प्रकाशित कर समिति के संभावित स्वरूप की जानकारी दी थी। किसान संगठनों की समिति के गठन पर रुख को देखते हुए लगता है कि बड़े किसान संगठन इस समिति से उसी तरह दूर रह सकते हैं जिस तरह उन्होंने किसान आंदोलन का हल निकालने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति से खुद को दूर रखा था।