शतकवीर बनने की ओर अग्रसर प्याज की कीमतों को थामने के लिए सरकार ने प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 800 डॉलर प्रति टन तय कर दिया है। किलो में यह 67 रुपये प्रति किलो बैठता है यानी इस कीमत से कम मूल्य पर प्याज का निर्यात नहीं किया जा सकेगा। हालांकि, सरकार ने पहले से प्याज के निर्यात पर 40 फीसदी शुल्क लगा रखा है जिससे निर्यात लगभग ठप है। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि सरकार के इस कदम का कीमतों पर फिलहाल बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा और अभी करीब एक महीने तक महंगे प्याज से उपभोक्ताओं का सामना होता रहेगा।
केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के एक बयान में कहा गया है कि यह फैसला 29 अक्टूबर से 31 दिसंबर, 2023 तक प्रभावी रहेगा। घरेलू बाजार में प्याज की उपलब्धता बढ़ाने के लिए सरकार ने बफर स्टॉक के तहत 2 लाख टन अतिरिक्त प्याज खरीदने का भी फैसला किया है। इस साल अभी तक बफर स्टॉक के लिए 5 लाख टन प्याज की सरकारी खरीद हो चुकी है जिसमें से 1.70 लाख टन बाजार में उतारा जा चुका है। एनसीसीएफ और नेफेड के जरिये देश के चुनिंदा बाजारों में उपभोक्ताओं को 25 रुपये प्रति किलो की दर पर किफायती प्याज मुहैया कराया जा रहा है।
शेतकारी संगठन के पूर्व अध्यक्ष और भारत स्वतंत्र पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष अनिल घनवत ने रूरल वॉयस से कहा, “सरकार के इस कदम का कीमतों पर फिलहाल ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि जब स्टॉक है ही नहीं तो कोई भी कदम उठाया जाए कीमतों को बढ़ने से रोकना मुश्किल है। वैसे भी प्याज निर्यात भारी भरकम शुल्क की वजह से पहले से लगभग ठप ही है। नई फसल आने के बाद ही कीमतें नियंत्रण में आ सकती है। इसके अलावा, कीमतों को थामने के लिए आयात ही एकमात्र विकल्प है लेकिन शिपमेंट आने और आयातित प्याज के उपभोक्ताओं तक पहुंचने में भी करीब-करीब एक महीने लग ही जाएंगे।”
राजधानी दिल्ली सहित देश के ज्यादातर इलाकों में प्याज की खुदरा कीमत 70-90 रुपये प्रति किलो पर पहुंच चुकी है। इसकी सबसे बड़ी वजह रबी की प्याज के स्टॉक का लगभग खत्म होना और खरीफ की नई फसल आने में देरी होना है। आमतौर पर इस समय तक खरीफ की नई फसल आ जाती थी लेकिन इस बार मानसून की अनियमितता के चलते खरीफ की बुवाई में देरी हुई जिससे कटाई में देरी हो रही है। खरीफ की नई फसल आने में अभी दो-तीन हफ्ते की देर है। तब तक उपभोक्ताओं को महंगा प्याज ही खाना पड़ेगा।