राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन का कहना है कि सरकार की तरफ से गन्ने के एफआरपी में 15 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी को खूब प्रचारित किया जा रहा है। जबकि वास्तव यह बढ़ोतरी केवल 7.75 रूपये की है। सरकार ने एफआरपी के लिए गन्ने की चीनी की रिकवरी के आधार को 0.25 फीसदी बढ़ाकर 10.25 फीसदी कर दिया है जबकि पिछले साल तक एफआरपी का आधार 10 फीसदी चीनी की रिकवरी था। ऐसे में सरकार ने जो फार्मूला लागू किया उसके बाद यह बढ़ोतरी घटकर 7.75 रुपये प्रति क्विटंल की है और देश में गन्ना उत्पादन के अनुमान के आधार पर किसानों को करीब 2600 करोड़ रुपये का घाटा होगा। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी एम सिंह ने एक प्रेस कांफ्रेंस में यह बातें कहीं।
उन्होंने कहा कि गन्ना उत्पादन सीजन 2022-23 के लिए एफआरपी 290 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 305 रुपये प्रति क्विंटल किया जाना किसी भी तरह से किसान के हित में नहीं है। किसानों की गन्ना उत्पादन लागत ही लगभग 304 रूपये क्विंटल तक आती है । इसलिए गन्ना का एफआरपी कम से कम 450 रुपए क्विंटल तय किया जाना चाहिए । वी एम सिंह ने कहा कि उनका संगठन 16 अगस्त को उत्तर प्रदेश की हर तहसील पर गन्ना मूल्य 450 रुपए प्रति क्विंटल तक कराने और कोर्ट के आदेश के अनुसार किसानों को ब्याज दिलवाने के लिए लिए ज्ञापन देगा । संगठन ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि वह गन्ना किसानों की समस्या का निराकरण करें।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन का कहना है कि जब एफआरपी 290 थी, तब किसान को इसके बाद 0.1 फीसदी अधिक रिकवरी पर 2.90 रुपए अधिक मिलते थे। यानि कि 10.25 फीसदी रिकवरी पर 297.25 रुपए मिलते थे। आगामी साल के एफआरपी के आधार पर अगर किसान को 10.25 फीसदी रिकवरी मिलती है तो उसे 312.62 रुपए मिलते। यही नहीं नये फैसले के मुताबिक जब रिकवरी 9.5 फीसदी से उपर और 10.25 फीसदी से कम होगी तो इसी आधार पर कटौती होगी। अगर 9.6 फीसदी की रिकवरी हुई तो किसान को 285 रुपए मिलेंगे जो पिछले वर्ष के 290 रुपए से भी कम है। आंकड़ों के हेर फेर में किसान हर बार मार खाता है।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया कहा है कि इस पूरे विषय पर पुनर्विचार करे और किसान की उत्पादन लागत में बढ़ोतरी के हिसाब से एफआरपी तय करे। संगठन का कहना है कि सरकार ने गन्ना उत्पादन के खर्चे का रेट 162 रुपए प्रति क्विंटल बताया है और 88 फीसदी ऊपर देते हुए 305 का मूल्य तय किया है। जबकि हकीकत है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में 2018 में तत्कालीन गन्ना मंत्री ने सदन में एक प्रश्न के जवाब में बताया कि गन्ना अनुसंधान केंद्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में उत्पादन की लागत 294 रुपए प्रति क्विंटल होती है और पिछले साल यानी 2021-22 में सरकारी आंकड़ों की माने तो ये लागत 304 रुपए बैठती है जिसके आधार पर सरकार के 50 फीसदी अधिक देने के वायदे के अनुसार कम से कम 450 रुपए क्विंटल होता है।
संगठन का कहना है कि पिछले कुछ सालों से चीनी की मिनिमम सेलिंग प्राइस (एमएसपी) लागू कर दी गई है जिसके कारण थोक बाजार में 34 से 36 रुपए प्रति किलो बिक रही हैं। यही नहीं पूरा हिसाब लगाए तो, एक क्विंटल गन्ने में लगभग 10.50 से 11 फीसदी चीनी का औसत आता है, 33 किलो बगास जिससे बिजली, कागज, गत्ता आदि बनता है औऱ पांच किलो मोलासिस, जिससे इथेनॉल, इंडस्ट्रियल अल्कोहल व शराब बनती है और प्रेस मड (मैली) से जैविक खाद बनाकर चाय बागान को बेचते हैं।
मिलों को घाटा दिखाकर राज्य सरकार के गन्ना रेट तय करने के अधिकार को मिल मालिकों ने 1996 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी और 5/5/2004 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने राज्य सरकार के अधिकार को बरकरार रखा जिससे किसानों को एसएपी मिल रही है। इसलिए उत्तर प्रदेश के किसानों को एफआरपी से कोई ताल्लुक नहीं है। यह 15 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार में लागू नहीं है जहां सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 5/5/2004 और 4/4/2020 के आदेश के तहत राज्य सरकार को एसएपी निर्धारित करने का अधिकार है।
संगठन का कहना है कि आज देश में गन्ने से जुड़े लगभग 5 करोड़ परिवार हैं और गन्ना किसान राष्ट्र की खपत से ज्यादा चीनी पैदा करता है। गन्ना किसानों का दुर्भाग्य यह है कि गन्ना महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में तो है पर केंद्र में गन्ने का विभाग नहीं है जिसके कारण किसान की पीड़ा, खास तौर पर सही रेट, समय से भुगतान और विलंब पर ब्याज केंद्रीय मंत्रिमंडल पास नहीं पहुंच पाती।