केंद्र सरकार ने जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) सरसों की किस्म डीएमएच-11 को इनवायरनमेंटल रिलीज की मंजूरी के फैसले को राष्ट्रहित और सार्वजनिक हित का फैसला बताते हुए इसे खाद्य तेलों में आत्मनिर्भता हासिल करने की दिशा में उठाया गया कदम बताया है। सरसों की जीएम किस्म की मंजूरी के बाद इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए दाखिल किये गये अतिरिक्त एफिडेविट में सरकार ने यह बात कही है। केंद्र सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 9 नवंबर, 2022 को 65 प्वाइंट वाला एफिडेविट जमा किया गया। जीएम फसलों की मंजूरी प्रकिया, कानूनी प्रावधान, स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए सुरक्षित मानक, फील्ड ट्रायल, एक्सपर्ट कमेटी, जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी), बॉयोसेफ्टी मानक और मधुमक्खियों पर जीएम फसलों के असर समेत तमाम मुद्दों की विस्तार से जानकारी इस एफिडेविट में दी गई है। एफिडेविट के साथ 20 एनेक्सचर लगाये गये हैं। इनके समेत कुल 772 पेज का एफिडेविट फाइल किया गया है।
रूरल वॉयस को मिली जानकारी के मुताबिक इस एफिडेविट में डीएमएच-11 के शोध और परीक्षणों की विभिन्न स्टेज और उनकी जीईएसी की कई बैठकों में समीक्षा व अतिरिक्त आंकड़े व तथ्य जुटाने के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। इसमें बताया गया है कि जीईएसी की 18 अक्तूबर, 2022 की बैठक में लिये गये डीएमएच-11 को इनवायरनमेंटल रिलीज की सिफारिश के फैसले को सरकार ने 25 अक्तूबर को मंजूरी दी। एफिडेविट में जीएम सरसों के बॉयोसेफ्टी परीक्षणों के लेवल वन और लेवल टू के बारे में भी बताया गया है। साथ ही कहा है कि यह पर्यावरण व स्वास्थ्य की दृष्टि से सुरक्षित है। जीएम सरसों की किस्म डीएमएच-11 के मधुमक्खियों और पोलन पर असर पर राय देने के लिए गठित एक्सपर्ट कमेटी का हवाला देते हुए उसकी सिफारिशों के बारे में भी बताया गया है और कहा गया है कि इस समिति ने डीएमएच-11 के इनवायरनमेंटल रिलीज की सिफारिश की थी। साथ ही कहा गया है कि दो साल तक इसके बीज तैयार करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा इसे उगाने और जरूरी आंकड़े व तथ्य जुटाने के आधार पर सशर्त मंजूरी दी गई है।
एफिडेविट में बहुत विस्तार से स्पष्ट किया गया है कि यह मंजूरी बारनेस, बारस्टार और बार जीन के जरिये पैरंटल लाइन तैयार करने के लिए भी गई है। इसमें बताया गया है कि जीएम सरसों में 3 ट्रांस जीन हैं। बार जो एक मार्कर जीन है और पौधों में बास्ता हर्बिसाइड का प्रतिरोध पैदा करता है, बारनेस जो पुरुष गुण को खत्म (मेल स्टर्लिटी- MS) करता है और बारस्टार जो फर्टिलिटी रिस्टोर (RF) करता है। इन्हें मिट्टी में पाए जाने वाले बैक्टेरियम बेसिलस एमाइलोलिक्वेफेशियंस से लिया गया है।
इन तीनों जीन को पहली बार रेपसीड में इस्तेमाल किया गया था और उससे हाइब्रिड बीज तैयार किया गया। रेपसीड में MS और RF लाइन तथा उनके हाइब्रिड 1996 में कनाडा में जारी किए गए और तब से वहां इसका उत्पादन हो रहा है। अमेरिका में यह 2002 में और ऑस्ट्रेलिया में 2007 से हो रहा है। बेहतर MS और RF सिस्टम उपलब्ध होने से ज्यादा उत्पादन वाले हाइब्रिड तथा बेहतर तेल और खली वाले हाइब्रिड आगे तैयार किए जा सकते हैं।
डीएमच-11 के हार्बिसाइड टॉलरेंट (एचटी) होने के बारे में एफिडेविट में कहा गया है कि यह किस्म हर्बिसाइड टालरेंट है लेकिन इसका उपयोग केवल बीज तैयार करने के लिए गया है। ग्लाइफोसिनेट अमोनिया का उपयोग एक मार्कर की तरह किया गया है ताकि तैयार होने वाले बीज में केवल लक्षित पैरेंटल लाइन के ही पौधे हों। इसके कमर्शियल रिलीज की स्थिति में किसानों को हर्बिसाइड का उपयोग नहीं करना होगा। जीईएसी ने इसकी मंजूरी नहीं दी है। साथ ही ग्लाइफोसिनेट के देश में उपयोग और इसके लिए तय कानूनी प्रावधानों के तथ्य भी एफिडेविट में दिये गये हैं।
डीएमएच-11 हाइब्रिड के लिए जो तकनीक विकसित हुई है उसके जरिए नई हाइब्रिड किस्में तैयार की जा सकेंगी। यह तकनीक कैसे काम करती है उसके बारे में भी विस्तार से जानकारी दी गई है। इसके साथ ही गया है कि डीएमएच-11 की उत्पादकता 25 से 30 फीसदी अधिक है। यह बात इसके फील्ड ट्रायल में साबित हुई है। एफिडेविट में बताया गया है कि गंगानगर, कुम्हेर, भरतपुर, मुरैना, लुधियाना, दिल्ली समेत करीब दर्जन भर स्थानों पर इसका परीक्षण किया गया है।
जहां तक किसानों तक डीएमएच-11 के बीज पहुंचने की बात है तो उसके बारे में गया है कि निर्धारित मानकों के तहत आईसीएआर द्वारा इसे उगाया जाएगा और इसका फील्ड ट्रायल किया जाएगा। इसके बाद जो तथ्य और आंकड़े आएंगे उसके बाद ही इसके कमर्शियल रिलीज का कोई फैसला आईसीएआर द्वारा सीड एक्ट 1966 के तहत तय प्रावधानों के अनुसार लिया जाएगा इस प्रक्रिया में तीन साल लग सकते हैं।
एफिडेविट में कहा गया है कि भारत अपनी जरूरत का 55 से 60 फीसदी खाद्य तेल आयात करता है। इसके चलते कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भारत में सरसों का तेल अधिक उपयोग होता है। वहीं सरसों के बीज में तेल का मात्रा काफी बेहतर है। इसलिए सरकार ने जीएम सरसों के जरिये सरसों का उत्पादन बढ़ाने के लिए यह फैसला लिया है। देश में करीब 80-90 लाख हैक्टेयर में सरसों की खेती होती है। सरसों की फसल का सिंचित क्षेत्रफल 83 फीसदी तक पहुंच गया है। इसके बावजूद उत्पादन में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हो रही है। ऐसे में जीएम सरसों का उत्पादन एक बेहतर विकल्प है। इसका उत्पादन बढ़ने से देश किसानों की आय में भी इजाफा होगा। देश की 45 से 50 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भार करती है।
जीएम किस्म की तिलहन फसलों के तेल को सुरक्षित बताते हुए हवाला दिया गया है कि देश में आयात होने वाला सोयाबीन तेल और कैनोला तेल जीएम किस्मों से ही तैयार होता है। वहीं देश में जीएम कपास के बीज से बनने वाला 12 लाख टन खाद्य तेल खाने में उपयोग रहा है और 65 लाख टन खली का पशुचारे में उपयोग हो रहा है। इसका कोई भी प्रतिकूल असर मानव स्वास्थ्य पर नहीं पड़ा है। वहीं अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया में कैनोला की जीएम किस्मों की खेती करीब डेढ़ दशक से हो रही है। वहां पर मधुमक्खियों या पोलन पर इसका कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट में 3 नवंबर,2022 को जीएम फसलों से जुड़ी अरूणा रोड्रिगस और जीन कैंपेन की पब्लिक इंटरेस्ट पिटीशन पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश में सरकार को अतिक्त एफिडेविट दाखिल करने के लिए कहा था। सरकारी वकील ने इसके लिए इसकी अनुमति मांगी थी। उसी प्रक्रिया में सरकार द्वारा यह एफिडेविट दाखिल किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 10 नवंबर,2022 को तय की थी। सरकार का एफिडेविट 9 नवंबर को दाखिल हुआ। 10 नवंबर की सुनवाई में कोई फैसला नहीं हुआ है अब इस मामले की अगली सुनवाई 17 नवबंर को होगी।