गेहूं पर सरकार की मुश्किलें बढ़ी, सरकारी खरीद पिछले साल के स्तर पर

इस बार फिर गेहूं की सरकारी खरीद में पंजाब और हरियाणा ने अहम भूमिका निभाई और यह साबित किया है कि देश की खाद्य सुरक्षा के मामले में अभी भी इन दोनों राज्यों पर सबसे अधिक दारोमदार है।

सरकार द्वारा रिकार्ड गेहूं उत्पादन के दावों के बीच हकीकत साफ होने लगी है। गेहूं की कीमतें देश के अधिकांश हिस्सों में चालू रबी मार्केटिंग सीजन (आरएमएस 2024-25) के लिए तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2275 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर चली गई हैं। जबकि गेहूं की सरकारी खरीद पिछले साल के 262.02 लाख टन के आसपास ही रह सकती है जो अभी 255.24 लाख टन तक पहुंची है। देश के प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड समेत सभी जगह गेहूं कटाई हो चुकी है और अब बाजार में आवक भी बहुत कम रह गई है। ऐसे में सरकारी खरीद केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालय और भारतीय खाद्य निगम द्वारा तय 372.90 लाख टन के सरकारी लक्ष्य से करीब 100 लाख टन कम रह सकती है।

गेहूं की कम सरकारी खरीद और 1 अप्रैल, 2024 को केंद्रीय पूल में 16 साल के सबसे कम स्टॉक को देखते हुए इस साल देश में गेहूं आयात की स्थिति पैदा सकती है। गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने की सीमित क्षमता के बीच सरकार चुनावों के बाद इस बारे में विचार कर सकती है। वैसे भी यूक्रेन और रूस का गेहूं जुलाई से बाजार में आने लगता है। फिलहाल गेहूं आयात पर 40 फीसदी का शुल्क लागू है। जिसके चलते अभी आयात व्यवहार्य नहीं है।

गेहूं की सरकारी खरीद के आंकड़ों से सरकार के उत्पादन के अनुमान और खरीद लक्ष्य पर भी सवाल उठने लाजिमी है। कृषि मंत्रालय की ओर से जारी दूसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2023-24 में देश में गेहूं का उत्पादन 11.20 करोड़ टन रहेगा जो अब तक का सर्वाधिक है। गत वर्ष 11.05 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। इस साल गेहूं की फसल के लिए बेहद अनुकूल मौसम के चलते पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गेहूं की पैदावार अच्छी रही है और किसानों के मुताबिक यह पिछले चार साल में सबसे बेहतर है।

आईसीएआर के संस्थान आईआईडब्ल्यूबीआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने रूरल वॉयस को बताया कि हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी यूपी में इस साल पांच टन प्रति हैक्टेयर से अधिक का उत्पादन लेने वाले किसानों की बड़ी संख्या रही है।

लेकिन मध्य भारत और खासतौर से मध्य प्रदेश में इस साल दिसंबर के असामान्य तापमान और फरवरी-मार्च में बेमौसम की बारिश और ओलावृष्टि ने गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाया है।

आईसीएआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के मुताबिक मध्य प्रदेश में कई जगह गेहूं की उत्पादकता 15-20 फीसदी तक प्रभावित हुई है। मध्य भारत कंसोर्सियम ऑफ एफपीओ के सीईओ योगेश द्विवेदी ने रूरल वॉयस को बताया कि कई जगह उत्पादन 25 फीसदी तक प्रभावित रहा है। लेकिन हैरानी की बात है कि मार्केट के सिगनल के बावजूद सरकार उत्पादन के अनुमानों  में अभी तक अपने रुख में कोई बदलाव करती नहीं दिखती है।

अभी तक देश में कुल 255.24 लाख टन की गेहूं की सरकारी खरीद हुई है। पंजाब में 122.31 लाख टन, हरियाणा में 70.32 लाख टन, मध्य प्रदेश में 45.66 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है। वहीं उत्तर प्रदेश में 8.47 लाख टन, राजस्थान में 8.35 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद की गई।

मध्य प्रदेश में सरकारी खरीद के आंकड़े गेहूं उत्पादन प्रभावित होने की ओर साफ इशारा करते हैं। साल 2019-20 में मध्यप्रदेश ने 129.42 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद के साथ पंजाब को पीछे छोड़कर देश में पहला स्थान हासिल कर लिया था। उस साल पंजाब में 127.14 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। जबकि देश में गेहूं की कुल खरीद 389.93 लाख टन रही थी।

इसके अगले साल 2020-21 में सरकारी खरीद अभी तक के रिकार्ड स्तर 433.44 लाख टन पर पहुंच गई। लेकिन तब मध्य प्रदेश गेहूं की सरकारी खरीद में दूसरे स्थान पर आ गया। उस साल उत्तर प्रदेश में 56.41 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी जबकि इस साल यूपी 10 लाख टन तक पहुंचने के लिए भी स्ट्रगल कर रहा है।

इस बार फिर गेहूं की सरकारी खरीद में पंजाब और हरियाणा ने अहम भूमिका निभाई और यह साबित किया है कि देश की खाद्य सुरक्षा के मामले में अभी भी इन दोनों राज्यों पर सबसे अधिक दारोमदार है। मध्यप्रदेश और राजस्थान में गेहूं के एमएसपी के ऊपर 125 रुपये प्रति क्विटंल बोनस देने से सरकारी खरीद का दाम 2400 रुपये प्रति क्विटंल है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में सरकारी खरीद कम रहने की एक बड़ी वजह प्राइवेट ट्रेड द्वारा एमएसपी से ऊंचे दामों पर खरीद करना है।

मध्य प्रदेश में बेहतर गुणवत्ता का गेहूं 2400 रुपये प्रति क्विटंल से अधिक दाम पर ही बिका। कारोबारियों का कहना है कि वहां कम गुणवत्ता का गेहूं ही सरकारी खरीद में आया। बड़े पैमाने पर वहां किसानों द्वारा बेहतर दाम की उम्मीद में गेहूं का स्टॉक भी बचाकर रखा गया है क्योंकि पिछले साल कीमतें 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक चली गई थी।

पिछले साल सरकार ने बड़े स्तर पर खुले बाजार की बिक्री के तहत गेहूं की बिक्री कर कीमतों को नियंत्रित करने की लगातार कोशिश की थी। लेकिन इस साल केंद्रीय पूल में गेहूं के स्टॉक का 16 साल का सबसे कम स्तर, सरकारी खऱीद का लक्ष्य से करीब 100 लाख टन कम रहना है और कीमतों का सरकारी खरीद सीजन के दौरान ही एमएसपी से अधिक रहना, ऐसे कारक हैं जो अगले कुछ माह में कीमतों में बढ़ोतरी की जमीन तैयार कर चुके हैं। साथ ही गेहूं उत्पादन के सरकार के अनुमानों पर भी सवाल खड़े करते हैं।