सरकार बजट में घाटा कम करने के लिए उर्वरक सब्सिडी में कटौती कर सकती है। मौजूदा वित्त वर्ष में उर्वरक सब्सिडी पर अभी तक 2.2 लाख करोड़ रुपए से अधिक राशि खर्च हो चुकी है। भारत अपनी जरूरत का लगभग एक तिहाई उर्वरक आयात करता है।
चर्चा है कि 2023-24 के बजट में सरकार उर्वरक सब्सिडी बिल घटाकर एक से 1.5 लाख करोड़ रुपए कर सकती है। सरकार को उम्मीद है कि अगले वित्त वर्ष के दौरान विश्व बाजार में उर्वरकों के दाम कम होंगे और घरेलू उत्पादन भी बढ़ेगा। इन दोनों वजहों से सब्सिडी में कटौती करने की गुंजाइश बनेगी। इससे सरकार का घाटा भी कम होगा।
पिछले साल यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से खाद्य पदार्थों और ऊर्जा के दाम काफी बढ़े हैं। खाद्य, उर्वरक और ईंधन सब्सिडी पर सरकार पिछले साल के बजट आवंटन की तुलना में 70% अधिक खर्च कर चुकी है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सरकार अगले बजट में उर्वरक सब्सिडी पर कम खर्च करती है तो उससे उर्वरकों के दाम बढ़ेंगे और अंततः महंगाई बढ़ेगी। बाजार कीमत से कम पर उर्वरक बेचने के लिए सरकार कंपनियों को सब्सिडी देती है। अगर सरकार इसमें कटौती करती है तो किसानों को उनकी अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी।
मौजूदा वित्त वर्ष में उर्वरक सब्सिडी 2.3 से 2.5 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। यह अनुमान फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया का था जिसने यूरिया की फिक्स्ड कास्ट नहीं बढ़ाए जाने पर चिंता जताई थी। एसोसिएशन के अनुसार इससे यूरिया प्लांट के लिए बिजनेस की व्यवहार्यता नहीं रह जाएगी। एसोसिएशन का कहना है कि उर्वरक इंडस्ट्री बहुत ही कम मार्जिन पर चल रही है इसलिए इस सेक्टर में नया निवेश नहीं हो पा रहा है।
जहां तक सरकार के खर्च की बात है तो इस साल के 39.45 लाख करोड़ रुपए के खर्च के प्रावधान का आठवां हिस्सा खाद्य और उर्वरक सब्सिडी का है। अगले साल आम चुनाव तथा इस साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव को देखते हुए खाद्य सब्सिडी कम करना राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।
रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार 2023-24 के बजट में खाद्य और उर्वरक सब्सिडी 3.7 लाख करोड़ करना चाहती है। यह मौजूदा साल की तुलना में 26% कम होगा। चालू साल में खाद्य सब्सिडी 2.7 लाख करोड़ रुपए है। इसे अगले साल 2.3 लाख करोड़ रुपए किया जा सकता है। इसी तरह उर्वरक सब्सिडी का प्रावधान भी घटाकर 1.4 लाख करो रुपए हो सकता है।
सरकार ने कोविड-19 महामारी को देखते हुए मुफ्त खाद्य वितरण योजना चलाई थी। अब उसकी जगह नई योजना ने ले ली है जिस पर सरकार का कम खर्च आने का अनुमान है। नई योजना में गरीबों को साल में मुफ्त अनाज पहले की तुलना में लगभग आधा मिलेगा।
मुफ्त खाद्य वितरण योजना महामारी के समय शुरू की गई थी ताकि गरीबों को खाद्य सुरक्षा मिल सके। दिसंबर 2022 में सरकार ने उस योजना को बंद करते हुए मौजूदा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मुफ्त अनाज देने की घोषणा की। इससे खाद्य सब्सिडी कम होकर जीडीपी का लगभग 0.8% रह जाने का अनुमान है। रूस यूक्रेन युद्ध के कारण 2022 में कमोडिटी के दाम तेजी से बढ़े थे लेकिन बाद में उनमें भी गिरावट आई है। इसलिए भी 2023-24 में उर्वरक सब्सिडी पर खर्च कम रहने का अनुमान है।
कच्चे तेल के दाम में कमी की उम्मीद को देखते हुए भी फर्टिलाइजर उर्वरक सब्सिडी कम रहेगी। सरकार ने उर्वरक कंपनियों के लिए गैस खरीद की संशोधित नीति भी जारी की है जो इसी महीने लागू हुई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे माल और तैयार उर्वरकों की अधिक कीमत के चलते 2022 23 में सब्सिडी की जरूरत काफी बढ़ गई थी। प्राकृतिक गैस महंगा होने के कारण उर्वरक भी महंगे हो गए थे। रेटिंग एजेंसी इक्रा का अनुमान है कि 2023-24 में उर्वरक सब्सिडी का आवंटन दो लाख करोड़ रुपए रह सकता है।
बहरहाल सब्सिडी के नए आंकड़े 1 फरवरी को सामने आएंगे जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में नया बजट पेश करेंगी। यह अगले साल के मध्य में होने वाले आम चुनाव से पहले मौजूदा सरकार का आखिरी पूर्ण बजट होगा।
लोकसभा चुनाव तथा विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार राजकोषीय घाटा भी कम करना चाहती है। मौजूदा वित्त वर्ष में इसके जीडीपी का 6.4% रहने का अनुमान जताया गया था, लेकिन यह पिछले एक दशक के 4% से 4.5% के औसत से काफी ज्यादा है। महामारी के दौरान यह 9.3% तक पहुंच गया था।
अगले साल के आम चुनाव को देखते हुए वैश्विक निवेश फर्म गोल्डमैन साक्स ने अनुमान जताया है कि सरकार इस बार बजट में ग्रामीण क्षेत्र तथा समाज कल्याण पर खर्च बढ़ा सकती है। वित्त वर्ष 2008-09 2013-14 और 2018-19 के बजट में भी ऐसा ही हुआ था।
गोल्डमैन के अनुसार ब्याज और सब्सिडी को छोड़कर बाकी खर्च 2023-24 में जीडीपी का 7.3% रहने का अनुमान है। इस बजट में ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आवास पर फोकस किया जा सकता है। नए बजट में कृषि क्षेत्र पर भी फोकस रह सकता है। इसमें फसलों की पैदावार बढ़ाने और किसानों की गैर कृषि आय बढ़ाने की चर्चा हो सकती है। एग्री इनपुट सेक्टर जैसे एग्रोकेमिकल, उर्वरक इत्यादि को इस बजट से लाभ मिल सकता है। एक और संभावना यह है कि सरकार सब्सिडी की अनुमानित राशि का एक साथ प्रावधान ना करे। आने वाले समय में जरूरत के मुताबिक वह इसके लिए राशि का आवंटन कर सकती है।
मौजूदा वित्त वर्ष में भू राजनैतिक कारणों से गैस की उपलब्धता प्रभावित हुई। इंडस्ट्री भी लंबे समय से फॉस्फोरिक एसिड और अमोनिया जैसे कच्चे माल पर आयात शुल्क कम करने की मांग कर रही है। इंडस्ट्री का कहना है कि इससे देश में बने फॉस्फेटिक उर्वरक आयात की तुलना में प्रतिस्पर्धी हो सकेंगे। यूरिया उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले एलएनजी पर भी आयात शुल्क हटाने की मांग है। देश में यूरिया की खपत लगातार बढ़ रही है।
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इक्रा का अनुमान है कि सरकार उर्वरकों के संतुलित इस्तेमाल के लिए एक रोडमैप तैयार कर सकती है। इससे किसी खास उर्वरक पर अत्यधिक निर्भरता कम होगी। बजट में पर्यावरण हितैषी नैनो उर्वरक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने पर भी फोकस किया जा सकता है। इससे भी सब्सिडी बिल घटाने में मदद मिलेगी।