घरेलू बाजार में चावल की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के मकसद से सरकार ने गैर बासमती सेला चावल (पारबॉयल्ड राइस) के निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क लगा दिया है। वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग द्वारा 25 अगस्त को जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक सेला चावल पर यह निर्यात तुरंत प्रभाव से लागू हो गया है। सरकार ने 20 जुलाई, 2023 को गैर बासमती सफेद चावल (व्हाइट राइस) के निर्यात पर रोक लगी दी थी। इसके पहले सितंबर 2022 में ब्रोकन राइस के निर्यात पर रोक लगा दी थी उसके साथ की गैर बासमती चावल पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क लगा दिया था। लेकिन यह शुल्क गैर बासमती सेला चावल पर नहीं लगाया गया था। लेकिन 25 अगस्त के नोटिफेकेशन के जरिये अब सेला चावल के निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क लगा दिया गया है। सरकार द्वारा एक साल के भीतर गैर बासमती चावल के निर्यात पर अंकुश लगाने के लिए यह तीसरा कदम उठाया गया है।
भारत ने 2022-23 में 223 लाख टन चावल निर्यात किया था। भारत वैश्विक बाजार में 40 फीसदी हिस्सेदारी के साथ दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश रहा। कुल चावल निर्यात में 177.87 लाख टन गैर बासमती चावल निर्यात किया गया था। जिसमें 78.46 लाख टन पारबॉयल्ड (सेला) चावल निर्यात किया गया था।
सरकार खाद्यान्नों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी से काफी चिंतित है। पिछले एक साल में चावल की कीमतों में 10 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में पिछले फसल वर्ष (2022-23) में चावल का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। लेकिन कीमत फिर भी बढ़ रही है। रूरल वॉयस ने इस बारे में सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों से बात की तो उन्होंने कहा कि इस बात की आशंका है कि गैर बासमती व्हाइट राइस के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद पारबॉयल्ड चावल का निर्यात काफी बढ़ सकता है। उक्त सूत्र ने कहा कि गैर बासमती निर्यात पर रोक के बावजूद चावल का निर्यात 180 से 200 लाख टन तक पहुंच सकता है। जब उनके पूछा गया कि पारबॉयल्ड चावल का निर्यात बढ़ता है तो सरकार क्या कदम उठाएगी तो उन्होंने इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की संभावना से इनकार नहीं किया। हालांकि सरकार ने इसके निर्यात पर अभी प्रतिबंध तो नहीं लगाया लेकिन 20 फीसदी का निर्यात शुल्क लगा दिया। यह कदम इसके निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए उठाया गया है।
भारत द्वारा गैर बासमती व्हाइट राइस के निर्यात पर रोक लगाने के बाद से वैश्विक बाजार में कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। सरकार से ताजा कदम से यह कीमतें और अधिक बढ़ने की आशंका है। इसके साथ ही जिस तरह देश के बड़े हिस्से में मानसून की बारिश काफी कमजोर है उसे देखते हुए धान का रकबा पिछले साल से अधिक रहने के बावजूद चावल उत्पादन में कमी आ सकती है।
सरकार ने पिछले सप्ताह ही प्याज की कीमतों पर अंकुश लगाने और घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के लिए प्याज पर 40 फीसदी निर्यात शुल्क लगाया था। प्याज किसान इसका विरोध कर रहे हैं। सरकार द्वारा गैर बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाने और सेला चावल के निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क लगाने के चलते किसानों को धान की मिलने वाली कीमत प्रभावित हो सकती है। अगले माह से धान की फसल बाजार में आने लगेगी। लेकिन सरकार चुनावी साल के चलते कीमतों में बढ़ोतरी पर रोक लगाने के लिए लगातार कदम उठा रही है क्योंकि महंगाई चुनावी नतीजों को प्रभावित करती रही है।